Jammu Kashmir News in Hindi: जम्मू कश्मीर में जनता ने इस बार 2 गजब का संदेश देते हुए दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को धूल चटा दी. यही नहीं, जनता ने इस बार 2 निर्दलीयों को देश की सबसे बड़ी पंचायत भी भेजा है.
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Jammu Kashmir Lok Sabha Election Result 2024: जम्मू कश्मीर ने लोकसभा चुनावों में इस बार 58 प्रतिशत से अधिक मतदान के साथ इतिहास रच दिया, जिसने पिछले चालीस सालों के सभी रिकार्ड तोड़ दिए. यह चुनाव जम्मू कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के लिए भी बड़ा झटका भी रहा, जो भारी अंतर से चुनाव हार गए. महबूबा मुफ्ती नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मियां अल्ताफ से 2.8 लाख से अधिक वोटों के अंतर से हार गईं. इससे भी बड़ा झटका और अप्रत्याशित परिणाम उमर अब्दुल्ला का रहा, जो जेल में बंद निर्दलीय उम्मीदवार इंजीनियर राशिद से हार गए. इंजीनियर ने दो लाख से अधिक वोटों के के अंतर से उमर अब्दुल्ला को हरा दिया.
इंजीनियर राशिद ने जीती बारामूला सीट
शेख अब्दुल राशिद जिन्हें इंजीनियर राशिद के नाम से भी जाना जाता है, उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की लंगेट विधानसभा सीट से पूर्व विधायक रहे हैं. इंजीनियर ने लगातार दो बार विधानसभा सीट जीती और अवामी इत्तेहाद पार्टी के नाम से पार्टी का नेतृत्व करते हैं. इंजीनियर 2019 से जेल में बंद हैं. उन पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकी फंडिंग मामले में केस दर्ज कर रखा है और दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया है. वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार होने वाले पहले मुख्यधारा के राजनेता हैं. रशीद ने इस बार लोकसभा चुनाव एक निर्दलीय के तौर पर लड़ा था. राशिद के बेटे अबरार राशिद ने बारामूला के लोगों को इस जीत का श्रेय दिया, जिन्होंने चुनाव प्रचार में उनका साथ दिया.
अबरार राशिद (बेटे) ने कहा, "यह उन लोगों की जीत है, जो चुनाव प्रचार में हमारे साथ शामिल हुए थे और आज जब उमर अब्दुल्ला ने अपनी हार स्वीकार की है, तो इसका श्रेय उन युवाओं को जाता है, जिन्होंने अपना पैसा खर्च किया और हमारे साथ रहे." जिस समय इंजीनियर लंगेट विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे, तब उन्हें अलगाववादियों का समर्थक भी माना जाता था. इस बीच उमर ने एक्स पर एक स्टोरी के लिंक को शेयर किया है. इस स्टोरी में रशीद की जीत को अलगाववादी सोच की जीत बताया गया है.
'राशिद की जीत से अलगावादियों के हाथ होंगे मजबूत'
इस लिंक को कैप्शन लिखा हुआ था, शेयर करते हुए उमर अब्दुल्ला ने लिखा, 'राशिद की जीत बिना किसी संदेह के अलगाववादियों को सशक्त बनाएगी और कश्मीर के पराजित इस्लामी आंदोलन को आशा की एक नई भावना देगी. अलगाववाद को चुनावी राजनीति में वापस लाने के प्रयासों ने नई दिल्ली को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उदय और भाजपा के साथ उसके गठबंधन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया. हालांकि, इससे हिंसक अलगाववादियों को सशक्त बनाने का काम हुआ, न कि उन्हें मुख्यधारा में लाने का. राजनीति में हेरफेर करने की कोशिश के अप्रत्याशित परिणामों की चेतावनी.' हालांकि ये उमर अब्दुल्ला के शब्द नहीं थे, लेकिन आज सोशल मीडिया पर इन्हें शेयर करने का मतलब उन्हीं विचारों का समर्थन करना समझा गया है.
एक और आश्चर्यजनक जीत दर्ज हुई लद्दाख संसदीय सीट पर जहां से निर्दलीय उम्मीदवार हाजी हनीफा जान जीत गए. हाजी पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस से जुड़े थे और लद्दाख में इसी पार्टी के जिला अध्यक्ष थे. उन्होंने इस संसदीय चुनाव में अकेले जाने का फैसला किया क्योंकि इंडिया एलायंस ने नामग्याल को अपना उम्मीदवार बनाया था. नामग्याल को अपना उम्मीदवार बनाए जाने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस की कारगिल इकाई ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया था.
बीजेपी ने जम्मू की 2 सीट बरकरार रखी
2023 में, हनीफा LAHDC कारगिल में बारो निर्वाचन क्षेत्र के लिए कारगिल चुनाव मात्र 66 वोटों से हार गए थे. जब उमर अब्दुल्ला ने लद्दाख सीट से एक अलग उम्मीदवार को मैदान में उतारने का फैसला किया, तो हाजी ने पार्टी छोड़कर अकेले लड़ने का फैसला किया. इससे पहले, हमने यह भी देखा था कि कैसे विजियानिक सोनम वांगचुक ने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग की थी, जिसके लिए उन्होंने 21 दिनों की लंबी भूख हड़ताल की थी और यूटी को अनुच्छेद 244 की छठी अनुसूची के तहत लाने के लिए कहा था. भारतीय संविधान के अनुसार, लद्दाखियों को विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक शक्तियां देने के लिए स्वायत्त जिला परिषद के निर्माण की सुविधा प्रदान की गई. ऐसा कहा जाता है कि इन सभी घटनाओं ने मिलकर हाजी की जीत में बड़ी भूमिका निभाई.
हाजी हनीफा ने कहा, "लद्दाख के लोगों ने मुझे बड़ा जनादेश दिया है और अगले पाँच सालों तक मैं लद्दाख के मुद्दों के लिए काम करूंगा, चाहे वह संसद में हो या संसद से बाहर" जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में कुल छह सीटें हैं, जिनमें से दो पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है, जबकि कश्मीर क्षेत्र में दो पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने जीत हासिल की है और दोनों ही जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में बहुत प्रसिद्ध नहीं थे, लेकिन एक व्यक्ति के रूप में दोनों का बहुत सम्मानजनक है और जम्मू क्षेत्र में दो सीटें भाजपा ने बरकरार रखी हैं.