Lok Sabha Chunav: 'बैलट पेपर पर लगे थे केमिकल, सब वोट कांग्रेस को...' जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जनसंघ ने लड़ी कानूनी लड़ाई
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Lok Sabha Chunav: 'बैलट पेपर पर लगे थे केमिकल, सब वोट कांग्रेस को...' जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जनसंघ ने लड़ी कानूनी लड़ाई

Ballot Paper Election Rigging: EVM को लेकर आरोप लगते हैं कि वोट कोई भी दे, मिलते एक पार्टी को हैं, ऐसे ही इंदिरा गांधी के समय में एक बार केमिकल लगे बैलट पेपर के आरोप लगे थे. 1971 का लोकसभा चुनाव था और दावा किया गया कि धांधली हुई है. केमिकल लगा होने के कारण में बाद में अपने आप वोट दिखाई देने लग जाते. 

Lok Sabha Chunav: 'बैलट पेपर पर लगे थे केमिकल, सब वोट कांग्रेस को...' जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जनसंघ ने लड़ी कानूनी लड़ाई

Ballot Paper vs EVM: इस बार इलेक्शन सीजन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM से ज्यादा चर्चा चुनावी बॉन्ड की हो रही है. हालांकि दिसंबर में जब कांग्रेस एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारी थी तब दिग्विजय सिंह जैसे कई नेताओं ने ईवीएम पर दोष मढ़ा था. कांग्रेस से पहले जब भाजपा हारती थी तब उधर से भी ऐसी ही आवाजें उठती थीं. इस बीच, एक अमेरिकी लीगल ड्रामा टीवी सीरीज 'दि गुड फाइट' में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव पर आधारित कहानी दिखाई जा रही है. एक एपिसोड में आरोप लगाए गए कि मशीन में जो भी बटन दबे थे, वो रिपब्लिकन टैली में ही जुड़े. ऐसा उन इलाकों में हुआ जहां ट्रंप या रिपब्लिकन की स्थिति अच्छी नहीं थी. बाद में 2020 में ट्रंप और उनके समर्थकों ने इसी तरह राष्ट्रपति चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे. वैसे आज के तकनीकी युग में ही धांधली के आरोप नहीं लगे रहे, दशकों पहले इंदिरा गांधी के दौर में भी ऐसा रोचक केस सामने आया था. 

केमिकल वाले बैलट पेपर का इस्तेमाल?

पहली बार 1971 के आम चुनाव में धांधली के गंभीर आरोप लगाए गए. तब तक धांधली का मतलब बूथ कैप्चरिंग माना जाता था लेकिन वो आरोप थोड़े अलग थे. इसमें फिल्मी स्टाइल जैसा तड़का था. लोग बड़े रोचक तरीके से खबरें पढ़ा करते थे. दरअसल, भारतीय जनसंघ के वरिष्ठ नेता बलराज मधोक ने आरोप लगाए थे कि बड़ी संख्या में बैलट पेपर के साथ छेड़छाड़ हुई है. उन्होंने दावा किया कि कुछ ऐसे केमिकल का इस्तेमाल हुआ है, जो वोटिंग के समय तो दिखाई नहीं देता लेकिन बाद में अपने आप पेपर पर दिखाई देने लगता है. 

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जनसंघ के अध्यक्ष रहे मधोक ने आरोप लगाया कि इस केमिकल की मदद से सुनिश्चित किया गया कि 100 प्रतिशत वोट कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह 'गाय और बछड़े' पर ही पड़े. तब इंदिरा के गुट वाली पार्टी कांग्रेस (आर) थी. मधोक ने आंकड़े भी सामने रख दिए. उन्होंने कहा कि 3 करोड़ 26 लाख 78 हजार 987 मतपत्रों पर केमिकल का इस्तेमाल हुआ है और उन्हें 326 निर्वाचन क्षेत्रों में भेजा गया. 

मधोक ने दावा किया कि उन्हें किसी अनजान शख्स ने गुप्त सूचना दी है. उन्होंने कहा कि मतदान से कुछ दिन पहले लखनऊ में जनसंघ दफ्तर पर एक पत्र आया था. बताया गया कि लेटर लिखने वाला रायबरेली के डाक बंगले में था, जहां से इंदिरा गांधी चुनाव लड़ रही थीं. उसने सुना था कि पास वाले कमरे में कुछ कांग्रेसी नेता इंदिरा की पक्की जीत की बातें कर रहे थे क्योंकि निश्चित प्रतिशत में केमिकल वाले बैलट पेपर का इस्तेमाल हुआ था. मतपत्रों पर पहले ही उनके पक्ष में मुहर लगा दी गई थी. हालांकि मधोक ने यह नहीं बताया था कि केवल उन्हें ही लेटर क्यों भेजा गया. 

'किस्सा कुर्सी का' सीरीज यहां पढ़िए

चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद एक और लेटर मधोक के पास आया. इसमें कहा गया, 'उन्हें 350 सीटें मिलीं. दूसरी पार्टियों के तकरीबन सभी बड़े नेता हार गए. कुछ लोगों का मानना है कि गरीबी हटाओ नारे ने काम किया. कुछ कह रहे कि कांग्रेस ने काफी पैसा खर्च किया था....'

मधोक ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र

18 मार्च 1971 को मधोक ने राष्ट्रपति को लिखा और केमिकल वाले बैलट पेपर के रहस्य से परदा उठाने की मांग की. 30 मार्च तक जवाब नहीं मिला तो उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त से अपील की. आरोप खारिज हो गए.

आखिर में वह दिल्ली हाई कोर्ट चले गए. दिलचस्प यह है कि कोर्ट ने उसी साल सितंबर में बैलट पेपर की जांच का आदेश दे दिया. सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और स्टे ले लिया. 

बाद में मधोक ने लिखा, 'जस्टिस हेगड़े और जस्टिस खन्ना ने 22 अक्टूबर 1971 के अपने फैसले में अपील खारिज कर दी लेकिन ट्रायल कोर्ट के आदेश को संशोधित किया. उन्होंने कुछ सौ बैलट के एक सैंपल के जांच के आदेश दिए.'

मधोक के मुताबिक आदेश में कहा गया, 'आज के समय में विज्ञान ने काफी प्रगति की है. जो चीजें कुछ साल पहले असंभव लगती थीं वह आज संभव हो गई हैं. जो चीजें पहले कल्पना मानी जाती थीं, अब हकीकत है. ऐसे में हम बिना जांच किए याचिककर्ता के आरोपों को खारिज करने में असमर्थ हैं.' 

TOI की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट के एक जज ने सैंपल की जांच की थी और 800 बैलट पेपर कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मिले जबकि मधोक के पक्ष में 550 वोट पड़े थे. मधोक चुनाव हार गए थे. कोर्ट ने आखिर में यही कहा कि कोई फ्रॉड नहीं हुआ है. मधोक ने अपने आरोपों को पंक्तिबद्ध करते हुए 1973 में किताब भी लिखी. हालांकि जल्द ही उन्हें नए नेतृत्व (अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी) ने पार्टी से ही निकाल दिया. वैसे, इसकी वजह उनकी किताब नहीं थी.

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