आईआईटी से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को विश्वभर में बेहतरीन प्रतिभाओं के रूप में जाना जाता है. इनमें से कई छात्र जब अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं, तो उनके सामने विदेशी कंपनी में शानदार नौकरियों, अच्छी सैलरी और बेहतर सुविधाएं मिलने का लालच बहुत बड़ा होता है.
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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को विश्वभर में बेहतरीन प्रतिभाओं के रूप में जाना जाता है. इनमें से कई छात्र जब अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं, तो उनके सामने पश्चिमी देशों में शानदार नौकरियों, अच्छी सैलरी और बेहतर सुविधाएं मिलने का लालच बहुत बड़ा होता है. लेकिन कुछ ऐसे भी आईआईटीयन हैं, जिन्होंने विदेश के चकाचौंध से दूर रहकर अपनी मातृभूमि भारत की सेवा करने का फैसला किया. उन्होंने पश्चिम के आकर्षण को ठुकराकर भारत लौटने का निर्णय लिया और देश की प्रगति में अपना योगदान दिया.
इन आईआईटीयनों ने अपनी प्रतिभा और ज्ञान का उपयोग भारत की समस्याओं के समाधान में किया है. उन्होंने स्टार्टअप शुरू किए, अनुसंधान किया और सरकार की विभिन्न योजनाओं में भाग लिया. इनके कामों से न केवल भारत का नाम रोशन हुआ है बल्कि देश के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान मिला है. आगे भी आईआईटी से पास होकर युवा अपने देश का नाम रौशन करें, इसके लिए आईआईटी के पूर्व छात्रों ने एक ऐसी किताब लिखी है, जो देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का सोर्स बन सकती है. इस किताब में उन 100 आईआईटियन की कहानियां हैं जिन्होंने विदेशों में जाने के बजाय भारत में ही रहकर देश की सेवा करने का फैसला किया. इनमें नारायण मूर्ति, नंदन नीलकेणी जैसे दिग्गज उद्यमी और इंदौर के जाने-माने शिक्षाविद अचल चौधरी भी शामिल हैं.
'100 महान आईआईटियन: राष्ट्र की सेवा को समर्पित' नामक इस किताब का संपादन आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र कमांडर वी.के. जेटली ने किया है. इस किताब में उन आईआईटियंस की कहानियां हैं जिन्होंने पश्चिम के आकर्षण को ठुकरा कर अपनी मातृभूमि में बने रहने या लौटने का निर्णय लिया और भारत की प्रगति में योगदान दिया.
इंदौर के आर्किटेक्ट अचल चौधरी की प्रेरणादायक कहानी
किताब में इंदौर के जाने-माने शिक्षाविद और आईपीएस ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन के चेयरमैन आर्किटेक्ट अचल चौधरी की भी कहानी शामिल है. आईआईटी खड़गपुर से डिग्री लेने के बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. उनकी कहानी बताती है कि कैसे उन्होंने विदेश जाने के बजाय भारत में ही रहकर शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का फैसला किया.