In Between The Lines: 'इन बिटवीन द लाइन्स' बताती है कैसी होती है थेरेपिस्ट की लाइफ
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In Between The Lines: 'इन बिटवीन द लाइन्स' बताती है कैसी होती है थेरेपिस्ट की लाइफ

Book Review: ये किताब आपको उस इंसानियत से जोड़ती नजर आएगी, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. ये आपको ज़िंदगी के करीब ले जाएगी, आप अलाइव फील करेंगे.

In Between The Lines: 'इन बिटवीन द लाइन्स' बताती है कैसी होती है थेरेपिस्ट की लाइफ

'In Between The Lines' By Antara jain: एक किताब पढ़ना यानी सैकड़ों-हजारों अनुभवों को कुछ घंटों या दिनों में जी लेना. और, अगर किताब किसी ऐसी पर्सनेलिटी या प्रोफेशन पर बेस्ड हो, जो खुद हर रोज जिंदगी के अलग-अलग रंगों की जीता है, तो समझिए कि आपके पास कई जिंदगियों को कुछ घंटों या दिनों में जीने का मौका है. लेखक अंतरा जैन की 'इन बिटवीन द लाइन्स' ऐसी ही किताब है, जो आपको जिंदगी के उस कोने को एक्सप्लोर कराएगी, जहां जिसे समझना मुश्किल होता है.

'इन बिटवीन द लाइन्स', पर्सन सेंटर्ड थेरेपिस्ट की 30-हफ्ते की डीप, ट्रांसपेरेंट और मीनिंगफुल जर्नी पर बेस्ड किताब है. इसमें थेरेपिस्ट अपने क्लाइंट्स के साथ-साथ खुद को भी अंदरूनी तौर पर एक्सप्लोर कर रहा है. वह अपने क्लाइंट और खुद के अकेलेपन को समझने की कोशिश करता है. इस किताब में थेरेप्यूटिक रिलेशन की डायनेमिक झलक नजर आएगी.

इस किताब को पढ़ते हुए आपको जिंदगी की बारीकियों को समझने का मौका मिलेगा और साथ ही ये भी पता चलेगा कि असल में थेरेपिस्ट के रूम में बैठना कैसा होता है. आपको पता चलेगा कि थेरेपिस्ट की ज़िंदगी भी उलझी हुई होती है, जिसमें लोनलीनेस, कॉन्फ्लिक्ट्स और इनसिक्योरिटीज भरी होती हैं. किताब में उन पलों की झलक दिखेगी, जहां थेरेपिस्ट खुद से ही जूझ रहा होता है, सच्चाई की तलाश में भटकता है और अपने अंदर के बच्चे (जो हम सबमें उम्र के साथ कहीं मर जाता है) के साथ नया रिश्ता बनाने की कोशिश करता है.

ये किताब आपको उस इंसानियत से जोड़ती नजर आएगी, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. ये आपको ज़िंदगी के करीब ले जाएगी, आप अलाइव फील करेंगे. इसकी कहानी आपको ऐसी लगेगी, जैसे वही जिंदगी की सच्चाई हो. इसका हर पन्ना आपको सस्पेंस में डाल सकता है, जिससे आपको इसे और पढ़ने का मन करेगा. 

एक बार आप इसे पढ़ना शुरू करेंगे तो हो सकता है कि फिर आप खुद इसे आखिर तक पढ़ना चाहेंगे. आखिर में शायद आप समझ पाएंगे कि थेरेपिस्ट और क्लाइंट के बीच का रिश्ता कैसा होता है. इसमें क्या उतार-चढ़ाव आते हैं और कैसे क्लाइंट के साथ-साथ थेरेपिस्ट खुद भी इमोशनल परेशानियों के बीच फंसा हुआ सा महसूस करता है.

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