G-20 Summit: पिछले साल हुए जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने का मौका भारत को मिला. पाकिस्तान को कभी इस तरह के बड़े आयोजन की जिम्मा नहीं मिला, लेकिन क्या पाकिस्तान जी-20 का मेंबर है? चलिए जानते हैं यहां कि कब और क्यों बना थी ये अहम बॉडी...
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Is Pakistan Part of G20 Group: भारत ने पिछले साल जी-20 की मेजबानी करके साबित कर दिया कि देश पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रहा है. 9 और 10 सितंबर 2023 को राष्ट्रीय दिल्ली में जी-20 का शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ था, जिसमें बड़ी-बड़ी शख्सियतें शामिल हुईं. जी-20, जैसा कि नाम से एकदम स्पष्ट है कि ये 20 देशों का एक समूह है, जिसका हिस्सा भारत भी है, लेकिन सबसे जरूरी सवाल है कि क्या पाकिस्तान भी इस ग्रुप का मेंबर है? ये ग्रुप क्यों बना और कैसे काम करता है? आइए जानते हैं जी-20 से जुड़ी सभी अहम बातें...
19वां शिखर सम्मेलन
जी-20 जिसे 'ग्रुप ऑफ ट्वेंटी' के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी सबसे पहली बैठक साल 2008 में अमेरिका के वॉशिंगटन में हुई. अब तक इसकी कुल 18 बैठकें हो चुकी हैं. जी-20 के राष्ट्राध्यक्षों एवं शासनाध्यक्षों का 19वां शिखर सम्मेलन 18 और 19 नवंबर 2024 को ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हो रहा है. ब्राजील की अध्यक्षता में जी-20 बैठक का फोकस 'एक न्यायपूर्ण विश्व और एक सतत ग्रह का निर्माण' पर केंद्रित है.
कब और क्यों बना G20 ग्रुप?
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 1999 में जब एशिया में आर्थिक संकट आया था, तब तमाम देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों ने मिलकर एक फोरम बनाने की सोची, जहां पर ग्लोबल इकनॉमिक और फाइनैंशियल मुद्दों पर चर्चा की जा सके. इसके बाद साल 2007 में पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी का साया मंडरा रहा था, तब इस समूह के स्तर को बढ़ाया गया और इसे वित्त मंत्रियों के लेवल से ऊपर उठाकर हेड ऑफ स्टेट लेवल का बना दिया गया. अब इस बैठक में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होते हैं.
वैसे तो इस ग्रुप का फोकस अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना रहा है, लेकिन समय के साथ इसका दायरा बढ़ता रहा. इसमें सस्टेनेबल डेवलपमेंट, हेल्थ, एग्रीकल्चर, एनर्जी, एनवायरमेंट, क्लाइमेट चेंज और एंटी करप्शन जैसे मुद्दे भी जुड़ते चले गए.
जी-20 ग्रुप के मेंबर देश
इस समूह का हिस्सा 19 देश और एक यूरोपियन संघ हैं, जिसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, साउथ अफ्रीका, तुर्किए, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल हैं. इस ग्रुप का 20वां सदस्य यूरोपियन यूनियन है. अब अफ्रीकन यूनियन भी इसका हिस्सा होगा. इस तरह से इस क्लब के 21 सदस्य बन जाएंगे, लेकिन पाकिस्तान के 22 सदस्य बनने के फिलहाल तो कोई आसार नहीं आ रहे.
इसके अलावा हर साल अध्यक्ष देश, कुछ देशों और संगठनों को मेहमान के तौर पर भी आमंत्रित करता है. भारत ने बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशिस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई को इनवाइट किया था.
पाकिस्तान नहीं है जी-20 का हिस्सा
इन नामों को पढ़कर साफ जाहिर है कि पाकिस्तान जी-20 का हिस्सा नहीं है. जब दुनिया की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं का यह संगठन बना, तब इसमें कुछ ही देश शामिल थे. जैसे-जैसे दूसरे कई देश मजबूत हुए, वे भी इसका हिस्सा बनते गए. जब यह ग्रुप बना तो इसमें उन देशों को शामिल किया गया, जो दुनिया की बड़ी या बड़ी तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं थीं, उस समय तक पाकिस्तान दूर-दूर तक इस दौड़ में शामिल नहीं था. वहीं, पिछले कुछ समय से इसकी हालत और भी बदतर हो चुकी है. वहीं, साल 2020 आते तक भारत की GDP पाकिस्तान से 10 गुना से भी ज्यादा थी.
पाकिस्तान को क्यों दूर रखा जी20 से?
आबादी के लिहाज से पाकिस्तान दुनिया का 5वां सबसे बड़ा देश है. क्षेत्रफल के हिसाब से भी ये 33वें नंबर पर आता है. देश में खनिज संपदा का बड़ा भंडार है. कम समय में ही इसने न्यूक्लियर हथियार भी बना लिए. बावजूद इसके पाक को जी20 जैस अहम बॉडी में जगह नहीं मिल सकी. इसकी वजह पाकिस्तान की कमजोर इकोनॉमी या फिर आतंक से बार-बार जुड़ता रहा नाम हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान को ज्यादातर देश आतंकियों को शरण देने वाले मुल्क की तरह देखते हैं.
जी20 की ताकत
इस ग्रुप के सदस्य देशों के पास दुनिया की 85 फीसदी जीडीपी, 75 प्रतिशत ग्लोबल ट्रेड, दुनिया की 2/3 आबादी है. इसकी बैठकों में लिए गए फैसले दुनिया की इकोनॉमी पर बड़ा प्रभाव डालते हैं.
जी20 कैसे काम करता है?
जी20 की अध्यक्षता जिस भी देश को मिलती है, वह उस साल की बैठकें आयोजित करता है और इसका एजेंडा पेश करता है. जी20 दो समानांतर ट्रैक पर काम करता है. पहला है फाइनेंस ट्रैक, जिसमें सभी देशों के वित्त मंत्री और सेंट्रल बैंक के गवर्नर मिलकर काम करते हैं. दूसरा है शेरपा ट्रैक, जिसमें हर देश का एक शेरपा लीड होता है, जो पहाड़ों में किसी भी मिशन को आसान बनाने और अपने-अपने देश के प्रमुख का काम आसान करने का जिम्मा उठाते हैं. इसके साथ ही सभी मेंबर देशों के शेरपा, बैठकों के जरिए अलग-अलग मुद्दों पर आपसी सहमति बनाने की कोशिश करते हैं.