China Economy: विशाल वैश्विक जनसंख्या की दौड़ में भारत 1,428 मिलियन की आबादी के साथ सबसे आगे बनकर उभरा है, जो चीन की 1,425 मिलियन से अधिक है. यह एक कांटे की जनसंख्या प्रतियोगिता है लेकिन जब आप दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर डालेंगे तो समानता दूर-दूर तक कहीं नहीं दिखती.
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China Economy: विशाल वैश्विक जनसंख्या की दौड़ में भारत 1,428 मिलियन की आबादी के साथ सबसे आगे बनकर उभरा है, जो चीन की 1,425 मिलियन से अधिक है. यह एक कांटे की जनसंख्या प्रतियोगिता है लेकिन जब आप दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर डालेंगे तो समानता दूर-दूर तक कहीं नहीं दिखती. विश्व बैंक के द्वारा जारी 2022 के आंकड़ों के अनुसार चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 17.96 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की संभावना है. जबकि भारत का तुलनात्मक रूप से मामूली 3.39 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया है. चिंता की बात यह है कि यह आर्थिक खाई बढ़ती ही जा रही है.
(ऊपर दिया गया ग्राफ़ चीन (लाल रंग में) और भारत (नीले रंग में) के बीच सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बढ़ते अंतर को दर्शाता है.)
1980 को याद करें तो चीन और भारत के आर्थिक स्थिति लगभग समान थी, जीडीपी संख्या भी लगभग स्थिर थी. यहां तक कि भारत ने पूर्व में पड़ोसी देश की तुलना में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में मामूली बढ़त भी हासिल की. लेकिन चीन ने चौंकाते हुए 1980 से 2010 के बीच चौतरफा विकास किया और अपनी अर्थव्यवस्था को 10 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ाया.
रिपोर्ट के मुताबिक चीन के आर्थिक विकास में कई कारकों ने काम किया है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि चीन के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है, जो इसकी विकास कहानी में एक अतिरिक्त आयाम जोड़ता है.
2022 में, चीन ने 61 प्रतिशत महिला श्रम बल भागीदारी दर का दावा किया, जबकि भारत केवल 24 प्रतिशत पर काफी पीछे रह गया. एक्सपर्ट की मानें तो चीन में कार्यबल में महिलाओं की उच्च भागीदारी इसकी समाजवादी विरासत और उसके बाद के आर्थिक सुधारों और माओत्से तुंग (चीनी कम्युनिस्ट नेता और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक) के निधन के बाद खुलेपन का एक संयोजन है. पीपुल्स रिपब्लिक की स्थापना के बाद पारित विवाह कानून सहित महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए की गई पहल के कारण यह बदलाव तेजी से देखने को मिला.
एक शोध के अनुसार 2021 तक चीन में 15-64 आयु वर्ग की लगभग 478.3 मिलियन महिलाएं थीं, जबकि भारत में समान आयु वर्ग में 458.2 मिलियन महिलाएं थीं. उस वर्ष महिला श्रम बल भागीदारी दर ने एक आश्चर्यजनक रूप से अलग तस्वीर पेश की; चीन के कार्यबल की संख्या 338.6 मिलियन थी, जबकि भारत की संख्या मात्र 112.8 मिलियन थी. इसलिए, भले ही भारत का कार्य-आयु जनसांख्यिकीय समूह आकार में लगभग चीन जैसा ही था, लेकिन इसकी श्रम शक्ति काफ़ी छोटी थी.
(यह एक इंटरैक्टिव डेटा चार्ट है.)
सवाल यह उठता है कि हम कब उम्मीद कर सकते हैं कि भारत अपनी श्रम शक्ति के मामले में चीन से आगे निकल जाएगा? अध्ययन से पता चलता है कि निकट भविष्य में ऐसा नहीं होगा, लेकिन आशा की किरण है. अगर हम मान लें दोनों देशों के लिए श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) अपने नवीनतम स्तर पर स्थिर बनी हुई है, इस मील के पत्थर तक पहुंचने में लगभग 27 साल लगेंगे. यह अनुमान लगाया गया है कि केवल 2051 में ही भारत श्रम बल संख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाएगा, यह मानते हुए कि अन्य सभी कारक अपरिवर्तित रहेंगे. ये अनुमान वर्ष 2100 तक के संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या अनुमान पर आधारित हैं.