Success Story: 1000₹ महीने के ल‍िए काम, थ‍ियेटर में स्‍नैक्‍स बेचे; आज 5000 करोड़ की कंपनी के माल‍िक
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Success Story: 1000₹ महीने के ल‍िए काम, थ‍ियेटर में स्‍नैक्‍स बेचे; आज 5000 करोड़ की कंपनी के माल‍िक

Balaji Wafers Ltd Story: 10000 रुपये के न‍िवेश से च‍िप्‍स बनाने के साथ शुरू हुआ कारोबार आज 5000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. चंदूभाई विरानी के आज देशभर में चार प्‍लांट हैं और इनमें 7000 लोग काम करते हैं.

Success Story: 1000₹ महीने के ल‍िए काम, थ‍ियेटर में स्‍नैक्‍स बेचे; आज 5000 करोड़ की कंपनी के माल‍िक

Chandubhai Virani Success Story: हर सफल इंसान के पीछे उसका सालों का संघर्ष होता है. संघर्षों के दम पर खुद को अलग मुकाम पर पहुंचने वाले ऐसे ही सफल कारोबारी हैं चंदूभाई विरानी (Chandubhai Virani) हैं. कभी 1000 रुपये महीने के ल‍िए काम करने वाले व‍िरानी आज 5000 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की कंपनी के माल‍िक हैं. मेहनत, दृढ़ न‍िश्‍चय, दूरदर्श‍िता और धैर्य का ही फल है क‍ि जीरो से शुरुआत करने वाले व‍िरानी ने आज यह मुकाम हास‍िल क‍िया है. चंदूभाई का शुरुआती जीवन काफी संघर्षभरा रहा. एक साधारण परिवार में जन्‍म लेने वाले चंदूभाई ने 10वीं तक पढ़ाई की है. कुछ अच्‍छा करने की उम्‍मीद में उनके प‍िता पर‍िवार को लेकर ढुंढोराजी (गुजरात) श‍िफ्ट हो गए थे.

नुकसान हुआ तो बंद करना पड़ा ब‍िजनेस

ज‍िंदगी की शुरुआत में चंदूभाई, उनके दो भाई मेघजीभाई और भिखूभाई ने राजकोट में 20,000 रुपये से एग्रीकल्‍चर इक्‍युपमेंट का ब‍िजनेस शुरू क‍िया. उनका यह ब‍िजनेस नहीं चला और उन्‍हें इसे दो साल में ही बंद करना पड़ा. लेक‍िन इस ब‍िजनेस में उन पर काफी कर्ज हो गया. बाद में तीनों भाइयों ने पर‍िवार का खर्च चलाने के ल‍िए छोटे-मोटे काम क‍िये. उन्‍होंने सिनेमा हॉल की सीटें र‍िपेयर करने से से लेकर फिल्मी पोस्टर चिपकाने और कैंटीन में काम करने तक हर काम क‍िया. एग्रीकल्‍चर इक्‍युपमेंट का ब‍िजनेस करने के दौरान उन पर इतना कर्ज हो गया क‍ि पर‍िवार की माली हालत काफी खराब हो गई.

थ‍ियेटर की सीट र‍िपेयर और कैंटीन का ठेका
कर्ज बढ़ने पर वह मकान का क‍िराया तक नहीं दे पाए और उनके मन में यही डर था क‍ि मकान माल‍िक उनसे घर खाली करा लेगा. इतना सब‍ होने पर भी उन्‍होंने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत के दम पर पूरा लोन चुका दिया. इसके बाद उन्‍होंने कैंटीन का ठेका ल‍िया. यह ठेका उन्‍हें 1000 रुपये महीने पर म‍िला. अच्‍छी सर्व‍िस देने पर धीरे-धीरे उनकी पहचान बन गई. इस दौरान चंदूभाई ने वहां पर आने वाले लोगों के बीच वेफर्स की दीवानगी को देखा. मौका देखकर उन्होंने 10,000 रुपये के न‍िवेश के साथ घर पर च‍िप्‍स बनाना शुरू कर द‍िया. यहां से चंदूभाई की क‍िस्‍मत ने पलटी मारी और उन्‍होंने हजारों करोड़ का ब‍िजनेस खड़ा कर द‍िया.

1992 में बालाजी वेफर्स की शुरुआत
चंदूभाई के होममेड च‍िप्‍स की क्‍वाल‍िटी को लोगों ने खूब पसंद क‍िया. यहां से उन्‍हें नई पहचान म‍िली और वह ज‍िंदगी में एक बार फ‍िर से बड़ा कदम उठाने के ल‍िए प्रेर‍ित हुए. च‍िप्‍स की ब‍िक्री से कमाए गए पैसे को उन्‍होंने जमा क‍िया. इसके बाद उन्‍होंने 1989 तक बैंक लोन और कमाए गए पैसे से राजकोट के अजी GIDC में गुजरात की उस समय की सबसे बेहतरीन आलू वेफर्स बनाने वाली फैक्‍ट्री शुरू की. इसके तीन साल बाद ही 1992 में विरानी ब्रदर्स ने 'बालाजी वेफर्स प्राइवेट लिमिटेड' (Balaji Wafers Private Ltd) की शुरुआत की. रोचक तथ्‍य यह रहा क‍ि ब्रांड का नाम हनुमान जी की एक छोटी सी मूर्ति से प्रेरित था, इस मूर्त‍ि को तीनों ही भाई बहुत मानते थे.

बाजार में 12% की हिस्सेदारी
आज, 'बालाजी वेफर्स' का कारोबार अलग मुकाम पर पहुंच गया है. स्‍नैक्‍स बनाने वाली कंपनियों में यह बड़ा नाम है. बालाजी बेफर्स की देशभर में चार बड़ी फैक्ट्रियां हैं. इन फैक्‍ट्र‍ियों में रोजाना 65 लाख किलो आलू से भी ज्‍यादा आलू की खपत है. इन फैक्‍ट्र‍ियों में हर रोज एक करोड़ किलो नमकीन बनती है. डीएनए की र‍िपोर्ट के अनुसार चंदूभाई व‍िरानी बालाजी वेफर्स 43,800 करोड़ रुपये के स्‍नैक्‍स मार्केट में 12% की हिस्सेदारी वाली बड़ी कंपनी है. यह देश की तीसरी सबसे बड़ी स्‍नैक्‍स बेचने वाली कंपनी है. कंपनी ने मार्च 2023 तक 5000 करोड़ रुपये का कारोबार किया था. कंपनी की तरफ से 7000 लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है, इनमें से आधी महिलाएं हैं.

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