जापान और ब्रिटेन के बाद अब चीन का नंबर! 30 सालों में सबसे खराब हाल में ड्रैगन, विदेशी कंपनियों में मची भगदड़
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जापान और ब्रिटेन के बाद अब चीन का नंबर! 30 सालों में सबसे खराब हाल में ड्रैगन, विदेशी कंपनियों में मची भगदड़

China Economic Crisis:  ग्लोबल इकोनॉमी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. कोविड के बाद से दुनिया की बड़ी इकोनॉमी आर्थिक संकट से गुजर रही है. दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है तो वहीं जापान और ब्रिटेन जैसे देश मंदी का शिकार हो गई है. जर्मनी की हालात भी ठीक नहीं है.

china economy slowdown

China FDI: ग्लोबल इकोनॉमी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. कोविड के बाद से दुनिया की बड़ी इकोनॉमी आर्थिक संकट से गुजर रही है. दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है तो वहीं जापान और ब्रिटेन जैसे देश मंदी का शिकार हो गई है. जर्मनी की हालात भी ठीक नहीं है. लंबे वक्त से जर्मनी की इकोनॉमी ग्रोथ में थहराव की स्थिति बनी हुई है. चीन से भी डराने वाली खबरें आ रही हैं. चीन का रियल एस्टेट संकट इतना गहराता जा रहा है कि उसने आर्थिक विकास को प्रभावित कर दिया है. जापान-जर्मनी के बाद अब चीन पर मंदी का खतरा मंडराने लगा है. 

चीन की इकोनॉमी खराब, विदेशी निवेश तीन दशक के निचले स्तर पर  

चीन की आर्थिक सेहत तो अब जगजाहिर हो गई है. चीन का रियल एस्टेट मंदी खस्ताहाल हो गया है. वहीं अब विदेशी कंपनियां चीन से भागने लगी है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी तमाम संकटों से जूझ रही है. ताजा आंकड़े शी जिनपिंग सरकार की टेंशन बढ़ाने के लिए काफी है. चीन में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) 30 सालों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. 1993 के बाद से ये सबसे खराब दौर है, जब चीन में विदेशी कंपनियों का निवेश गिरता जा रहा है. एक ओर जहां जिनपिंग सरकार विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही हैं तो वहीं चीन की आर्थिक हालात और रियल एस्टेट के संकट को देखते हुए विदेशी कंपनियों में भागमभाग मचा है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज ने आंकड़ें जारी किए, जो चीन की टेंशन बढ़ाने के लिए काफी है.  

चीन से भाग रही विदेशी कंपनियां 

आंकड़ों के अनुसार बैलेंस ऑफ पेमेंट में चीन का  डायरेक्ट फॉरेन इन्वेंटमेंट 1993 के बाद से सबसे कम है.  साल 2023 में चीन का एफडीआई मात्र 33 बिलियन डॉलर था, जो साल 2022 में 82 फीसदी कम है. नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिकल डेटा के आंकड़ों के मुताबिक चीन में विदेशी इंडस्ट्रियल फर्म्स के मुनाफे में कमी आई है, जो पिछले साल पहले की तुलना में 6.7 फीसदी कम रहा. चीन की सरकार की नीतियों, अमेरिका से तनाव, चीन के रवैया और कोविड के बाद के बाद चीन की खस्ताहालत के चलते विदेशी कंपनियों का मोहभंग हो रहा है. चीन में घटते विदेशी निवेश के साथ चीन का शेयर बाजार भी गिरता जा रहा है.    

भारत के पास अच्छा मौका

चीन में एफडीआई घटने का मतलब है कि ज्यादातर विदेशी कंपनियां चीन से दूरी बढ़ा रही है.इन कंपनियों को अब नए ठिकाने की तलाश होगी. जापान, जर्मनी, ब्रिटेन की हालात पहले से खराब है. ऐसे में भारत के बाद एक अच्छा मौका है, इन कंपनियों को आकर्षित कर भारत में निवेश बढ़ाने के लिए आमंत्रित करने का. ये भारत के लिए बड़ा मौका साबित हो सकता है. जिस तरह से दुनिया के बड़े देशों की हालात है, ऐसे में भारत विदेशी कंपनियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन सकता है. हालांकि बीते कुछ समय से विदेशी कंपनियों ने भारत का रूख भी किया है. आईफोन बनाने वाली कंपनी एप्पल, माइक्रोन जैसी बड़ी कंपनियां भारत आ चुकी है. इलेक्ट्रिक कार मेकर कंपनी टेस्ला भारत आने के लिए बेताब है. भारत सरकार विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए जिस तरह से सरकारी नीतियों पर काम कर रही है, ऐसा लग रहा है कि भारत जल्द ही अपने अनुमान से पहले तीसरी इकॉनमी का लक्ष्य हासिल कर लेगा.  

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