कैमिकल्स के बजाए ऑर्गेनिक तरीके से गन्ने की खेती कर रहा किसान, हर साल हो रही तगड़ी कमाई
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कैमिकल्स के बजाए ऑर्गेनिक तरीके से गन्ने की खेती कर रहा किसान, हर साल हो रही तगड़ी कमाई

Sugarcane Farming: दूसरे इलाकों में जहां अक्सर नहर के पानी और कैमिकल्स से गन्ना उगाया जाता है, जिससे स्वाद और पैदावार दोनों प्रभावित होते हैं, वहीं मंडकोला के किसान ट्यूबवेल के पानी और ऑर्गेनिक फार्मिंग के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे गन्ना ज्यादा मीठा और ज्यादा मात्रा में पैदा होता है. 

कैमिकल्स के बजाए ऑर्गेनिक तरीके से गन्ने की खेती कर रहा किसान, हर साल हो रही तगड़ी कमाई

Sugarcane Cultivation: हरियाणा के मंडकोला का गन्ना पूरे भारत में अपनी मिठास के लिए फेमस है. इसकी मिठास का रहस्य पानी की गुणवत्ता और नैचुरल फार्मिंग के तरीकों में है. दूसरे इलाकों में जहां अक्सर नहर के पानी और कैमिकल्स से गन्ना उगाया जाता है, जिससे स्वाद और पैदावार दोनों प्रभावित होते हैं, वहीं मंडकोला के किसान ट्यूबवेल के पानी और ऑर्गेनिक फार्मिंग के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे गन्ना ज्यादा मीठा और ज्यादा मात्रा में पैदा होता है. 

सब्जियां भी उगाते हैं मेदीराम 
मेदीराम उन किसानों में से हैं जो सिर्फ गन्ना ही नहीं बल्कि कई तरह की सब्जियां और अन्य फसलें जैसे भिंडी, लौकी, तुरई, मूंगफली, मक्का, ज्वार और बाजरा भी उगाते हैं. उनका कहना है कि "इस तरह से खेती करने से फसल खराब होने का जोखिम कम होता है और साल भर आमदनी होती रहती है." कृषि जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक मंडकोला में खेती करने के तरीकों के बारे में बताते हुए मेदीराम कहते हैं कि "मंडकोला के किसानों ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल बंद कर दिया है, और उसकी जगह प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं और फसल को मजबूत बनाती हैं. जैविक खेती करने की वजह से ही यहां का गन्ना इतना बेहतर होता है."

सिंचाई का तरीका 
मेदीराम के खेतों में गन्ना इसलिए खास है क्योंकि इसकी सिंचाई साफ सुथरे ट्यूबवेल के पानी से की जाती है. मेदीराम बताते हैं कि "पहले मैं कुएं से पानी निकालने के लिए पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करता था, जिसमे काफी मेहनत लगती थी. पूरे खेत की सिंचाई करने में लगभग आठ दिन लग जाते थे. इस समस्या से निजात पाने के लिए मैंने ज्यादा बेहतर तरीकों को अपनाने का फैसला किया और ट्यूबवेल लगवाए." उनका ये विचार तब और आगे बढ़ा जब सरकार ने खेतों में बिजली पहुंचाई, जिससे मेदीराम ट्यूबवेल लगवा सके. उन्होंने सरकार से लगभग 2600-2700 रुपये का लोन भी लिया. इससे सिंचाई के लिए लगने वाला समय और मेहनत काफी कम हो गई, जिससे ज्यादा खेती हो सकी और पैदावार भी बढ़ गई. 

परंपरागत तरीकों के साथ नए तरीके
मेदीराम उन दिनों को याद करते हैं जब उनके घर में गेहूं की रोटी सिर्फ खास मौकों पर ही मिलती थी, क्योंकि उस इलाके में गेहूं कम होता था. इसकी बजाय वो बेसन और मोटे अनाज की रोटी खाते थे. आजकल ये अनाज कम खाने को मिलते हैं, क्योंकि अब खाने की आदतें बदल गई हैं. इन बदलावों के बावजूद मेदीराम की खेती करने की परंपरागत तरीकों में भरोसा बना हुआ है, साथ ही वो नए तरीकों को भी अपनाते हैं. वो बाकी किसानों को भी कम मुनाफा देने वाली और ज्यादा बीमारी लगने वाली फसलें जैसे चना कम उगाने की सलाह देते हैं और ज्यादा मुनाफा देने वाली और कम बीमारी लगने वाली फसलों को उगाने के लिए कहते हैं. 

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