संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि महिलाओं के लिए अफगानिस्तान दुनिया का सबसे दमनकारी देश है और यहां औरतों को अपने मौलिक अधिकारों से भी वंचित होना पड़ता है.
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इस्लामाबादः यूं तो महिलाओं पर जुल्म और जबर्ददस्ती हर मुल्क की कहानी है. प्रोग्रेसिव माने जाने वाले यूरोप और अमेरिका में भी महिलाएं भेदभाव की शिकार होती हैं. लेकिन अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से यह देश महिलाओं और लड़कियों के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा दमनकारी देश बन गया है. यहां की महिलाएं कई बुनियादी अधिकारों से भी वंचित हैं. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को इस संदर्भ में रिपोर्ट किया है.
औरतों को घरों में कर दिया है कैद
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जारी एक बयान में, संयुक्त राष्ट्र मिशन ने कहा कि अफगानिस्तान के नए शासकों ने ऐसे नियम लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया है, जो ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों को प्रभावी रूप से उनके घरों में कैद कर दिया है. अधिक उदार रुख के शुरुआती वादों के बावजूद, तालिबान ने अगस्त 2021 में सत्ता पर कब्जा करने के बाद से महिलाओं के लिए कठोर कानून लागू किए हैं. दो दशकों के युद्ध के बाद अमेरिका और नाटो सेना अफगानिस्तान से वापस हो गई है और देश पर तालिबान ने फिर से कब्जा कर लिया है.
शिक्षा और रोजगार पर लगाया प्रतिबंध
तालिबान ने छठी कक्षा के बाद लड़कियों की शिक्षा और पार्कों और जिम जैसे सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के ताने पर प्रतिबंध लगा दिया है. महिलाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों में काम करने से भी रोक दिया गया है. उन्हें खुद को सिर से पैर तक ढंकने का आदेश दिया गया है.संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि और अफगानिस्तान में मिशन की प्रमुख रोजा ओटुनबायेवा ने कहा, “अफगान महिलाओं और लड़कियों को सार्वजनिक क्षेत्र से बाहर धकेलने के उनके व्यवस्थित, जानबूझकर और व्यवस्थित प्रयासों को देखना व्यथित करने वाला है.“
1.16 करोड़ अफगान महिलाओं को सहायता की जरूरत
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र महिला के लिए विशेष प्रतिनिधि एलिसन डेविडियन ने कहा, “तालिबान अपने ही नागरिकों को जो नुकसान पहुंचा रहा है, उसका प्रभाव महिलाओं और लड़कियों से परे है.“ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बयान के मुताबिक, 1.16 करोड़ अफगान महिलाओं और लड़कियों को मानवीय सहायता की जरूरत है. हालांकि, तालिबान गैर-सरकारी संगठनों के लिए काम करने वाली महिलाओं पर प्रतिबंध लगाकर अंतर्राष्ट्रीय सहायता के प्रयासों को और कमजोर कर दिया है.
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