जंग की वजह से वैश्विक तापमान बढ़ने का खतरा; नेचुरल गैस बढ़ा रहा है संकट
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जंग की वजह से वैश्विक तापमान बढ़ने का खतरा; नेचुरल गैस बढ़ा रहा है संकट

International climate summit in Egypt: मिस्र के शर्म अल-शेख में छह से 18 नवंबर तक आयोजित होने वाले इस वर्ष के सीओपी 27 सम्मेलन में विकसित देशों से विकासशील देशों को जलवायु योजनाओं को और तेज करने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद है. इस सम्मेलन में भारत ने 2024 तक नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य को प्राप्त करने पर दिया जोर है. 

मिस्र के शर्म अल-शेख में गुरुवार को COP27 संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान ग्लोब दिखाते हुए प्रदर्शनकारी

शर्म अल-शेखः यूक्रेन में जंग के हालात के बाद बड़ी तादाद में प्राकृतिक गैस उत्पादन की कोशिशों ने भविष्य में वैश्विक तापमान में इजाफे को सीमित करने के पहले ही किए जा रहे नाकाफी  प्रयासों को और कमजोर कर दिया है. एक नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर नामक संस्था द्वारा मिस्र में अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता में गुरुवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन पर रूस के हमले की वजह से पैदा हुए ऊर्जा संकट के चलते तरल और अन्य प्राकृतिक गैसों के उत्पादन की योजना और इससे संबंधित परियोजनाओं के निर्माण से 2030 तक हवा में हर साल करीब दो अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ जाएगी.

70 फीसदी प्रस्तावित नई गैस उत्पादन इकाइयां उत्तर अमेरिका में 
क्लाइमेट एनालिटिक्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और जलवायु वैज्ञानिक बिल हेयर ने कहा कि दुनिया का तापमान औद्योगिक काल से पहले के मुकाबले में 1.1 से 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और 2015 में पेरिस में तयशुदा सीमा के लिहाज से वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की संभावना कम ही दिखती है. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘ऊर्जा संकट पर यह प्रतिक्रिया अपेक्षा से ज्यादा है जिसे रोका जाना चाहिए.’’ हेयर ने कहा कि करीब 70 फीसदी प्रस्तावित नई गैस उत्पादन इकाइयां उत्तर अमेरिका में हैं. 

हर साल 100 अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य 
वहीं, दूसरी जानिब भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन सीओपी 27 में जोर दिया है कि विकासशील देशों को अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हर साल 100 अरब डॉलर के स्तर से जलवायु वित्त में पर्याप्त वृद्धि और अमीर मुल्कों को संसाधनों को इकट्ठा करने के लिए नेतृत्व करने की जरूरत है. वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में सीओपी 15 में, विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए संयुक्त रूप से 2020 तक हर साल 100 अरब डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता जताई थी. हालांकि, अमीर मुल्क इस वित्तीय सहायता को मुहैया कराने में बार-बार नाकाम रहे हैं.

जलवायु योजनाओं को और तेज करने की उम्मीद 
मिस्र के शर्म अल-शेख में छह से 18 नवंबर तक आयोजित होने वाले इस वर्ष के सम्मेलन में विकसित देशों से विकासशील देशों को अपनी जलवायु योजनाओं को और तेज करने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद है. वहीं दूसरी तरफ, विकासशील देश जलवायु परिवर्तन और परिणामी आपदाओं से निपटने के लिए जरूरी वित्त और प्रौद्योगिकी के प्रति प्रतिबद्धता चाहते हैं. भारत ने जोर दिया है कि तकनीकी विशेषज्ञ स्तरीय संवाद संसाधन जुटाने की मात्रा और गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.   

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