Urdu Poetry in Hindi: जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी, महसूस ये हुआ...

Siraj Mahi
Jan 08, 2025

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ, खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह, इधर से मुद्दतों आया गया हूँ

लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए, भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ

जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी, महसूस ये हुआ तुझे हर बार देख कर

तस्कीन तो होती थी तस्कीन न होने से, रोना भी नहीं आता हर वक़्त के रोने से

परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका, गुज़री है रात शम्अ पे क्या देखते चलें

हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं, हज़ार हैफ़ कि अब तक हुआ न तू मेरा

ग़ुंचों के मुस्कुराने पे कहते हैं हँस के फूल, अपना करो ख़याल हमारी तो कट गई

ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है, तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है

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