Urdu Poetry in Hindi: ... दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता

Siraj Mahi
Jan 10, 2025

इस कड़ी धूप में साया कर के, तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के

शायद ये इंतिज़ार की लौ फ़ैसला करे, मैं अपने साथ हूँ कि दरीचों के साथ हूँ

तुझ से बिछड़ूँ तो कोई फूल न महके मुझ में, देख क्या कर्ब है क्या ज़ात की सच्चाई है

मैं इक शजर की तरह रह-गुज़र में ठहरा हूँ, थकन उतार के तू किस तरफ़ रवाना हुआ

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल, ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी

अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुत, बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी

शहर में किस से सुख़न रखिए किधर को चलिए, इतनी तन्हाई तो घर में भी है घर को चलिए

कुछ रोज़ नसीर आओ चलो घर में रहा जाए, लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता

मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता, दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता

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