Urdu Poetry in Hindi: ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता, मैं तुझ से जुदा हो के भी...

Siraj Mahi
Jan 12, 2025

कौन सी बात है जो उस में नहीं, उस को देखे मिरी नज़र से कोई

जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा, तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का, यही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का

शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है, रिश्ता ही मिरी प्यास का पानी से नहीं है

ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता, मैं तुझ से जुदा हो के भी तन्हा नहीं होता

सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है, इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को, मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है, ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है

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