Hindi Poetry in Urdu: मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त, कौन जंगल में...

Siraj Mahi
Jan 14, 2025

मेरे हालात ने यूँ कर दिया पत्थर मुझ को, देखने वालों ने देखा भी न छू कर मुझ को

ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी, अगर मैं ज़ख़्म हूँ उस का तो भर के देखूँगी

एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स, ग़ौर करते हैं तो उस का कोई चेहरा भी नहीं

अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा है, तुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को

मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त, कौन जंगल में उगे पेड़ को पानी देगा

मैं जब भी उस की उदासी से ऊब जाऊँगी, तो यूँ हँसेगा कि मुझ को उदास कर देगा

ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए, मेरी आँखों में कहीं बरसात बाक़ी रह गई

चराग़ बन के जली थी मैं जिस की महफ़िल में, उसे रुला तो गया कम से कम धुआँ मेरा

हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे, तो बढ़ के ज़िंदगी ने पेश कीं बैसाखियाँ हम को

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