CAA पर मुस्लिम तंजीमों का कड़ा विरोध, बोले इस सिद्धांत पर मिलनी चाहिए नागरिकता
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CAA पर मुस्लिम तंजीमों का कड़ा विरोध, बोले इस सिद्धांत पर मिलनी चाहिए नागरिकता

Muslim Organizations on CAA: सीएए पर मुस्लिम तंजीमों का बयान आया है. सभी ने इस कानून का कड़ा विरोध किया है और कहा है कि यह सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है. पढ़ें पूरी खबर

CAA पर मुस्लिम तंजीमों का कड़ा विरोध, बोले इस सिद्धांत पर मिलनी चाहिए नागरिकता

CAA: बीते रोज केंद्र सरकार ने सीएए लागू कर दिया है. कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं. सरकार के इस फैसले पर अब मुस्लिम तंजीमों का बयान आया है और उन्होंने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है. कई मुस्लिम तंजीमों ने एक ज्वाइंट स्टेटमेंट में यह बयान दिया है. 

कई मुस्लिम संगठनों ने जारी किया ज्वाइंट्स स्टेटमेंट

इस स्टेटमेंट पर मौलाना महमूद असद मदनी: अध्यक्ष, जमीतुल उलेमा हिंद, सैयद सदातुल्लाह हुसैनी: अध्यक्ष, जमात इस्लामी हिंद, मौलाना असगर इमाम मेहदी सलाफी: अध्यक्ष, जमीयत अहले हदीस हिंद, मौलाना फैसल वली रहमानी: अमीर, इमारत ए शरिया, मौलाना अनीसुर रहमान कासमी: उपाध्यक्ष ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल, मौलाना यासीन उस्मानी बदायूँनी: उपाध्यक्ष ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल, मलिक मोआतसिम खान: उपाध्यक्ष जमात इस्लामी हिंद, मोहम्मद सलीम इंजीनियर: उपाध्यक्ष जमात इस्लामी हिंद, मौलाना हकीमुद्दीन कासमी: महासचिव जमीअतुल उलेमा हिंद,  डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास मौलाना नियाज फारूकी, शेख मुजतबा फारूक डॉ. जफरुल-इस्लाम खान, पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दस्तखत किए हैं.

स्टेटमेंट में क्या कहा गया है?

इस स्टेटेमेंट में कहा गया है कि हम आम चुनाव के ऐलान से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 को लागू करने की कड़ी निंदा करते हैं. यह अधिनियम ऐसे प्रावधानों का परिचय देता है जो भारतीय संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को नुकसान पहुंचाते हैं. 

आर्टिकल 14 का दिया हवाला

अपने इस बयान में संगठन ने आर्टिल-14 का भी हवाला दिया है. उन्होंने कहा, "भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता के सामान्य सिद्धांतों का प्रतीक है और धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच अनुचित भेदभाव को रोकता है."

सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डालता है कानून

नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2 में खंड (बी) को शामिल करना, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्तियों का जिक्र करता है. जो 31 दिसंबर 2014 से पहले का भारत में आए, उसे अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा. इस प्रकार कानून के तहत समान व्यवहार के सिद्धांत को कमजोर किया जा रहा है. यह भेदभावपूर्ण कानून देश के सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डालता है, जिससे समावेशिता और विविधता के मूलभूत सिद्धांत नष्ट हो जाते हैं.

चना हुआ समय है संदिग्ध

स्टेटमेंट में कहा गया है, भारतीय संसद के जरिए सिटिजन एमेंडमेंट बिल की मंजूरी ने देश भर में हंगामा खड़ा कर दिया था और मुसलमानों और समाज के अन्य वर्गों ने इसका कड़ा  विरोध किया था. इस कानून को लागू करने के लिए चुना गया समय भी संदिग्ध है और यह संकीर्ण सोच वाले राजनीतिक हितों के लिए समाज में धार्मिक विभाजन पैदा करने के स्पष्ट राजनीतिक मकसद को दर्शाता है.

यह कानून हमारे देश को खतरे में डालता है

हमारा मानना है कि नागरिकता धर्म, जाति या पंथ के बावजूद समानता के सिद्धांतों के आधार पर दी जानी चाहिए. अधिनियम के प्रावधान सीधे तौर पर इन सिद्धांतों का खंडन करते हैं और हमारे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरे में डालते हैं. हम सरकार से नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को निरस्त करने और भारतीय संविधान में निहित समावेशिता और समानता के मूल्यों को बनाए रखने का आग्रह करते हैं.

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