Rahi Masoom Raza Poetry: राही मासूम रज़ा की कई रचनाएं भारत के विभाजन के परिणामों की पीड़ा और उथल-पुथल को साफ तौर से दिखाती हैं. पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर.
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Rahi Masoom Raza Poetry: राही मासूम रज़ा की पैदाइश 1 अगस्त 1927 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर जिले में हुई. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से तालीम हासिल की. उन्होंने हिंदुस्तानी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि पूरी की और साहित्य में अपना करियर बनाया. बाद में वह बंबई चले गए और एक सफल पटकथा लेखक बन गए और टीवी धारावाहिक महाभारत सहित 300 से अधिक फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद लिखे. 15 मार्च 1992 को मुंबई में उनका निधन हो गया.
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
ऐ सबा तू तो उधर ही से गुज़रती होगी
उस गली में मिरे पैरों के निशाँ कैसे हैं
ज़िंदगी ढूंढ ले तू भी किसी दीवाने को
उस के गेसू तो मिरे प्यार ने सुलझाए हैं
दिलों की राह पर आख़िर ग़ुबार सा क्यूँ है
थका थका मिरी मंज़िल का रास्ता क्यूँ है
ये चराग़ जैसे लम्हे कहीं राएगां न जाएं
कोई ख़्वाब देख डालो कोई इंक़िलाब लाओ
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हां उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
हां वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं
दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
ख़्वाबों के बादल आते हैं लेकिन आग बरसती है
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग
उस बस्ती के बाज़ारों में रोज़ कहें अफ़्साने लोग
ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहाँ
हम ने तो सहरा में बसर की तुम ने गुज़ारी रात कहाँ
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