"हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर", शेख इब्राहीम जौक के शेर
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"हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर", शेख इब्राहीम जौक के शेर

Mohammad Ibrahim Zauq Poetry: शेख मुहम्मद इब्राहिम ज़ौक उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. वह अदब और मजहब के भी जानकार थे. उन्होंने "ज़ौक" उपनाम से कविता लिखी.

"हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर", शेख इब्राहीम जौक के शेर

Mohammad Ibrahim Zauq Poetry: जौक को महज 19 साल की उम्र में दिल्ली में मुगल दरबार में शायर मुकर्रर किया गया. इसके बाद उन्हें खकानी-ए-हिंद की उपाधि दी गई. जौक ने इतिहास, धर्मशास्त्र और काव्यशास्त्र में तालीम हासिल की.

रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब 
करेंगे बज़्म में महसूस जब कमी मेरी 

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से 
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता 

तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे 
न ख़ुदाई की हो परवा न ख़ुदा याद रहे 

हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर 
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे 

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी 
हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके 

हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें 
शबनम की तरह से हमें रोना नहीं आता 

क्या देखता है हाथ मिरा छोड़ दे तबीब 
याँ जान ही बदन में नहीं नब्ज़ क्या चले 

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे 
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे 

आदमिय्यत और शय है इल्म है कुछ और शय 
कितना तोते को पढ़ाया पर वो हैवाँ ही रहा 

ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ 
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया 

बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए 
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही 

कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए 
ख़ाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए 

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