मार्बल की कब्र और फैंसी नेम प्लेट; पक्की कब्रों के खिलाफ उलेमा ने उठाया ये कदम
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मार्बल की कब्र और फैंसी नेम प्लेट; पक्की कब्रों के खिलाफ उलेमा ने उठाया ये कदम

कब्रिस्तानों में बढ़ते पक्की कब्रों के चलन से परेशान मुस्लिम समाज के उलेमा ने लोगों से ऐसा न करने की अपील जारी की है, और इसको लेकर आम लोगों में जागरुकता पैदा करने पर जोर दिया है. 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः इस्लाम धर्म में मरने के बाद मृतकों की कब्रों को पक्का करने और उनको निशानी बनाने से मना किया गया है. इसके बावजूद भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में कब्रों को पक्का बनाने का काम जारी है. इलाके के खाते-पीते लोग अपने परिजनों के मरने के बाद कब्रिस्तान में उनकी कब्रों को पक्का कर देते हैं, ताकि जिंदा रहते उनकी जो इज्जत और रसूख थी, वह मरने के बाद भी बरकरार रहे! ऐसे लोग कब्रों में ईंट और मार्बल लगाकर उसपर मुर्दे के नाम की बड़ी से पट्टी भी लगवा देते हैं. ऐसा करने की वजह से शहरों के कब्रिस्तान भर गए हैं, और वहां नए मुर्दों को दफनाने के लिए जमीन का बेहद अकाल पड़ गया है. ये समस्या लगभग हर छोटे-बड़े शहरों में हो रही हैं. यहां तक कि शहरों का ये कल्चर अब गांवों में भी पहुंच गया है और गांव के रसूखदार लोग भी अपने परिजनों की कब्रों को पक्का कर हमेशा के लिए उस जगह पर कब्जा कर ले रहे हैं. 

उलेमा ने लोगों से की अपील 
हालांकि, अब इस चलन के खिलाफ उलेमा और मुफ्ती जन जागरुकता फैलाने के लिए आगे आ रहे हैं. इस दिशा में सबसे पहला कदम मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दारुल इफ्ता और दारुल कजा विभाग ने उठाया है. यहां के जिम्मेदार लोगांं ने अवाम से अपील की है कि वह अपने परिजनों के कब्रों को पक्का न बनाएं और उसपर उनके नाम का नेम प्लेट न लगाएं. इससे समाज के दूसरे लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है. अगर सारे लोग ऐसा करने लगे तो एक दिन कब्रिस्तानों में मुर्दों को दफनाने के लिए किसी को जगह नहीं मिलेगी. इस अपील के साथ उलेमा ने बाजाब्ता हदीसों का भी हवाला दिया है. 

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हदीस में क्या है हुक्म 
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने फरमाया था कि कब्रों को निशानी न बनाओ और उन्हें पुख्ता न करो. फतवा महमूदिया, पेज 426, जिल्द-13.
वहीं, कुछ उलेमा कब्रों को पक्का करने को सीधे तौर पर हराम करार देते हैं और इसे इसाइयों का कल्चर बताते हैं. इस मामले में पाकिस्तान के मशहूर मुफ्ती तारिक मसूद कहते हैं, ’’पक्की कब्रों से बुत परस्ती और शिर्क पनपने का खतरा होता है. इन कब्रों को लोग आगे चलकर पूजने लगते हैं. उन्हें कोई पीर-फकीर, औलिया और बाबा का मजार बनाकर उसके सामने अपना सिर झुकाने लगते हैं. उनके सामने मिन्नतें मांगने लगते हैं. यानी जो काम उन्हें अल्लाह के सामने करना चाहिए वह काम वह कब्र के सामने करने लगते हैं.’’ 

क्या कहते हैं उलेमा
इस मसले में उलेमा कहते हैं कि मुसलमान खुद अपने दीन और धर्म से दूर होता जा रहा है. धर्म के मामले में उसका ज्ञान शून्य है. लोग मरने के बाद भी अपने परिजनों को गुनाह में धकेल रहे हैं. पक्की कब्रें बनाने से मरने वालों को क्या कोई फायदा है ? मौलाना इलियास कादरी कहते हैं, ’’आखिरकार मरने वालों को वहीं काम आएगा, जो उसने जिंदा रहते हुए अपने कर्म किए होंगे. पांच वक्त की नमाज अदा की होगी, रोजे रखे होंगे, जकात अदा की होगी,  सीधी राह पर चला होगा, भूखों को खाना खिलाया होगा, नंगों के तन ढके होंगे, मां-बाप की सेवा की होगी, रिश्तेदारों, बीवी, बाल-बच्चों का हक अदा किया होगा. बाकी का सब दिखावा है. लोगों का इससे बचना चाहिए. इस्लाम में दिखावा करने को ही हराम करार दिया गया है. 

Zee Salaam

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