Death Anniversary of Hazrat Ali:पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) के बिस्तर पर सोकर बचाई थी उनकी जान
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Death Anniversary of Hazrat Ali:पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) के बिस्तर पर सोकर बचाई थी उनकी जान

40 हिजरी के रमज़ान की 19वीं तारीख़ को नमाज़े फ़ज्र की पहले रकत के पहले सजदे में अली इब्ने अबी तालिब पर हमला किया गया. हमला इतना शदीद था कि आप ज़ख़्मों की ताब न ला सके और 21वीं रमज़ान को रसूलअल्लाह (स.अ.) के बाद कायनात की सबसे बड़ी हस्ती ने इस दुनिया-ए-फ़ानी से पर्दा कर लिया

Death Anniversary of Hazrat Ali:पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) के बिस्तर पर सोकर बचाई थी उनकी जान

शेबे अबी तालिब में जब अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) ने एलाने नबूवत किया तो तारीख़ ने लिखा कि सन्नाटे को तोड़ते हुए कमउम्र अली इब्ने अबी तालिब खड़े हुए और पैग़म्बरे आज़म(स.अ.) की बातों की ताईद करते हुए कहा कि 'मैं गवाही देता हूं अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और आप अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर हैं' पैग़म्बरे आज़म(स.अ.) ने 40 साल के बाद पहली बार इज़हारे नबूवत किया और अली पहले शख़्स थे जिन्होंने इसे क़ुबूल किया ये अलग बात की हज़रत अली के वालिद हज़रत अबू तालिब के इमान पर दुनिया आज भी सवाल उठा रही है

अली इब्ने अबी तालिब की शख़्सियत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आपकी विलादत ख़ाना-ए-काबा में हुई और शहादत मस्जिद-ए-कूफ़ा में हुई. यानी क़िब्ला से शुरु हुआ सफ़र मस्जिद में इख़्तेताम पज़ीर हुआ. इस सफ़र के दौरान क़दम क़दम पर आप ने दीने हक़ और पैग़म्बरे आख़िरुज़्ज़मा(स.अ.) की मदद-ओ-नुसरत की. हिजरत की वो वाक़्या भला कौन भूल सकता है. हुज़ूर नबी करीम(स.अ.) की मदीना हिजरत के वक़्त हज़रत अली की उम्र 30 बरस थी. सरवरे कायनात (स.अ.) ने मुशरेकीन-ए-मक्का के मुहासिरे और उनके बुरे इरादों की इत्तेला पाकर हज़रत अली मुर्तज़ा को अपने बिस्तर पर सोने का हुक्म दिया और मक्का के लोगों की अमानतें जो हुज़ूरे अकरम(स.अ.) के पास रखी थीं उन्हे भी अली के हवाले करते हुए उनके मालिकों के सुपुर्द करने की हिदायत दी. इस शदीद ख़तरे की हालात में भी हज़रत अली बिस्तरे पैग़म्बरे आज़म(स.अ.) पर सुकून और इत्मिनान के साथ महवे ख़्वाब हो गए. मुशरेकीन-ए-मक्का ये समझते रहे कि हुज़ूर नबी अकरम(स.अ.) अपने बिस्तर पर आराम कर रहे हैं. वो सुबह सवेरे अपने नापाक इरादों की तकमील के लिए अंदर आए तो ये देख कर हैरान रह गए कि हुज़ूर नबी करीम(स.अ.) की जगह आपका एक जांनिसार अपने आक़ा पर क़ुर्बान होने के लिए तैय्यार है. इधर रात के वक़्त ही पैग़म्बरे अकरम (स.अ.) मदीना जाने के लिए निकल चुके थे और मुशरेकीन-ए-मक्का आपस में अपने नाकाम हुए मंसूबे के लिए लड़ने लगे और आंहज़रत की तलाश में निकल गए. हज़रत अली पैग़म्बरे आज़म के जाने के बाद मक्के के पुरआशोब माहौल में रुके रहे और जिनकी अमानते थीं उन्हें लौटा कर ही मदीने गए

पैग़म्बरे आज़म(स.अ.) ने अपने आख़िरी हज के मौक़े पर लाखों मुसलमानों की मौजूदगी में अपने हाथों पर बुलंद करके अपना वली और वसी हज़रत अली को ही मुक़र्रर किया. लेकिन चौथे ख़लीफ़ा के तौर पर मुसलमानों ने सन 35 हिजरी में ख़िलाफ़त का मंसब हज़रत अली के सामने पेश किया. आपने पहले इंकार किया लेकिन जब मुसलमानों का इसरार बढ़ा तो आपने इस शर्त के साथ ख़िलाफ़त क़ुबूल की, कि मेरी अहदे ख़िलाफ़त में अदलो इंसाफ़ और तमाम निज़ाम ऐन क़ुरान-ओ-सुन्नत के मुताबिक़ होगा. लेकिन ज़माना आपकी ख़ालिस मज़हबी सल्तनत को बर्दाशत न कर सका आपके ख़िलाफ़ बनी उमइय्या और उनसे वज़ीफ़ा पाने वाले खड़े हो गए और मुख़ालिफ़त करने लगे. इन लोगों को इस ख़ालिस इस्लामी ख़िलाफ़त में अपने इक़्तेदार के ख़त्म होने का डर सताने लगा और आपने सबका मुक़ाबिला किया और बिल आख़िर आपको 40 हिजरी के रमज़ान की 19वीं तारीख़ को नमाज़े फ़ज्र की पहले रकत के पहले सजदे में आप पर हमला किया गया. हमला इतना शदीद था कि आप ज़ख़्मों की ताब न ला सके और 21वीं रमज़ान को रसूलअल्लाह (स.अ.) के बाद कायनात की सबसे बड़ी हस्ती ने इस दुनिया-ए-फ़ानी से पर्दा कर लिया

हज़रत अली 19वीं रमज़ान की सुबह नमाज़ पढ़ने जब मस्जिदे कूफ़ा तशरीफ़ लाए तो आपका क़ातिल अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम पेट के बल लेटा सो रहा था, पेट के नीचें 70 हज़ार बार ज़हर में बुझाई हुई तलवार छुपाए हुए था, हज़रत अली ने कहा कि ऐ इब्ने मुल्जिम उठ जा नमाज़ का वक़्त निकला जा रहा है नमाज़ अदा कर. वो ज़ालिम उठा इधर हज़रत अली सजदे में गए और उसने ज़हर में बुझी हुयी तलवार से हमला कर दिया मस्जिद-ए-कूफ़ा में शोर बरपा हो गया क़यामत का मंज़र था, तमाम चाहने वाले नाला-ओ-फ़रियाद करने लगे, इमाम हसन और इमाम हुसैन भी मस्जिदे कूफ़ा में तशरीफ़ लाए अपने बाबा को ख़ून में तर देखा तो गिराया करने लगे, नमाज़ियों को कांधों पर फ़ात्हे ख़ैबर अली घर लाए गए , घर में कोहराम मच गया , बेटियां बाप की हालत देखकर तड़प गयीं. जर्राह ने इलाज शुरु किया लेकिन ज़हर अपना काम कर चुका था , इधर आपके हमलावर को गिरफ़्तार करके लाया गया. आपने अपने क़ातिल को दूध का शर्बत पिलाने का हुक्म दिया और अपने बेटों से फ़रमाया कि बेटा ऐसा न हो कि मेरे हमले के एवज़ पूरे कूफ़े में इंतेक़ाम की आग भड़क उठे और अमीरुल मोमेनीन के क़त्ल के बदले में शहर जल जाए, बेटा देखो क़ातिल को भी उतना ही ज़ख़्म सज़ा के तौर पर लगाना जितना इसने मुझे ज़ख़्मी किया है

 

Zee Salaam

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