अफगानिस्तान में ये कैसी इस्लामी हुकूमत; भोजन के लिए तरस रहीं अकेली औरतें
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अफगानिस्तान में ये कैसी इस्लामी हुकूमत; भोजन के लिए तरस रहीं अकेली औरतें

अफगानिस्तान में महिलाओं को काम करना बंद करने के बाद वहां अकेली महिलाओं, विधवाओं के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है. लोग खाने-पीने की चीजों के लिए भी तरस रहे हैं. 

अलामती तस्वीर

नॉर्विचः अफगानिस्तान के हेरात में रह रहने वाली एक विधवा जैनब (बदला हुआ नाम) ने आठ साल पहले एक आत्मघाती हमले में अपने पति को गंवा दिया था. उसकी 18 साल की एक बेटी है, जो दोनों आंखों से देख नहीं सकती है. जैनब का एक 20 साल का बेटा भी है, बारूदी सुरंग में विस्फोट के दौरान अपने दोनों पैर गंवा चुका है. जैनब अब घरेलू सहायिका के तौर पर काम किया करती थी. लोगों के घरों में खाना पकाती थी और साफ-सफाई करती थी. इससे होने वाली आमदनी से वह अपनी बेटी और बेटे को दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाती थी, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद उसके लिए अपने बच्चों का पेट भरना बेहद अब बेहद मुश्किल हो गया है.

अफगानिस्तान की आबादी का 97 फीसदी आबादी गरीब 
गौरतलब है कि इस वक्त अफगानिस्तान की आबादी का 97 फीसदी लोग गरीबी में जी रहे हैं, जबकि 2018 में यह आंकड़ा 72 फीसदी था. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगठनों के दफ्तरों में महिलाओं के काम करने और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी मौजूदगी पर तालिबान के प्रतिबंध के बाद औरतों के लिए काम कर पाना मुश्किल हो गया है. मौजूदा हालात की वजह से जैनब ने अपने ग्राहकों को खो दिया हैं. वह इस वक्त आजीविका कमाने के लिए कठिन संघर्ष कर रही है. वह आर्थिक संकट से इस तरह घिर गई है कि मकान का किराया तक नहीं दे पा रही है. मकान मालिक ने अब उससे घर खाली करने के लिए कह दिया है.   

तालिबान ने बंद किए युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के पेंशन 
गौरतलब है कि पहले अफगानिस्तान में लगभग 10 प्रतिशत शिक्षित महिलाएं अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय संगठनों में काम किया करती थीं. अगर वे कम पढ़ी-लिखी होती थीं, तो वे घरेलू सहायिका के तौर पर काम करके, खाना पकाकर, कपड़े धोकर, शौचालय साफ करके, दूसरों के बच्चों की देखभाल करके, या ग्रामीण इलाकों में छोटे पशुओं की देखभाल या फसलें उगाकर आजीविका कमा लेती थीं. जैनब ने कहा, "पूर्ववर्ती सरकार में उसके परिवार को शहीद और विकलांग मामलों के राज्य मंत्रालय से मासिक वेतन मिलता था, जो सेवानिवृत्त सैनिकों या लड़ाई में मारे गए लोगों के परिवारों को दिया जाता था, लेकिन नयी सरकार जान की कुर्बानी देने वाले इन लोगों को शहीद नहीं मानती, इसलिए यह पैसा आना बंद हो गया है.’’

रोटी, कपड़ा और मकान को तरस रहे लोग 
जैनब ने कहा, "मेरा बेटा शारीरिक रूप से अक्षम अन्य लोगों की तरह पहले नगर निगम के एक कार्यालय की पार्किंग में काम करता था, लेकिन अब तालिबान ने वहां अपने लोगों को तैनात कर दिए हैं. इससे उसकी नौकरी चली गई, और अब वह भीख मांगने को मजबूर है. भीख में उसे जो पैसे मिलते हैं, उनसे परिवार के लोगों के लिए सिर्फ एक दिन की रोटी का इंतजाम हो पाता है. जैनब कोई अपवाद नहीं है. अफगानिस्तान में हजारों ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने हुकूमत में बदलाव की वजह से अपनी नौकरियां गंवा दी हैं. उनमें से कई कुपोषण की शिकार हैं और यह भी नहीं पता है कि अगले दिन की रोटी मिल पाएगी या नहीं. अकेली रहने वाली महिलाओं और विधवाओं के पास पैसे कमाने का कोई जरिया नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कई घरों का खर्च महिलाएं उठा रही थीं, क्योंकि उनके परिवार के पुरुष सदस्य या तो संघर्ष में मारे गए हैं या बुरी तरह से घायल हुए हैं. उनके सामने न सिर्फ खाना बल्कि रहने, पानी, ईंधन और कपड़ों की भी समस्या है. 

95 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा
गौरतलब है कि सत्ता में आने के बाद तालिबान ने महिलाओं के माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा हासिल करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. महिलाओं को किसी करीबी पुरुष संबंधी के बिना यात्रा करने की इजाजत नहीं है. तालिबान ने सभी सैलून, सार्वजनिक स्नानघर और महिला खेल केंद्र भी बंद कर दिया है, जहां महिलाओं को रोजगार मिल जाते थे. संयुक्त राष्ट्र कर्मी और मानवतावादी समन्वयक रामिज अलकबरोव ने कहा, ‘‘अफगानिस्तान में 95 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा. महिला-प्रधान परिवारों में यह आंकड़ा लगभग 100 प्रतिशत है.’’

Zee Salaam

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