मुस्लिम समाज को पिछड़ी जाति लिस्ट में शामिल करने पर नाराज़ हुआ NCBC; कर्नाटक सरकार को घेरा
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मुस्लिम समाज को पिछड़ी जाति लिस्ट में शामिल करने पर नाराज़ हुआ NCBC; कर्नाटक सरकार को घेरा

Karnataka News: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कर्नाटक सरकार के उस फैसले पर सवाल उठाया है, जिसमें राज्य सरकार ने रिजर्वेशन का फायदा देने के लिए रियासत में पूरे मुस्लिम समाज को पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिया है. 

मुस्लिम समाज को पिछड़ी जाति लिस्ट में शामिल करने पर नाराज़ हुआ NCBC; कर्नाटक सरकार को घेरा

Muslim Community OBC Reservation in Karnataka: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने कर्नाटक में रिजर्वेशन उद्देश्यों के लिए पूरे मुस्लिम समाज को पिछड़ी जाति के तौर पर वर्गीकृत करने के राज्य सरकार के फैसले की निंदा की है. रियासती सरकार ने इसकी आलोचना करने हुए कहा कि इस तरह का व्यापक वर्गीकरण सामाजिक न्याय के उसूलों को कमजोर करता है. कर्नाटक पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिम मजहब की सभी जातियों और तबकों को पिछड़े वर्गों की राज्य सूची में कैटेगरी IIबी के तहत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के तौर पर लिस्टिड किया गया है.

एनसीबीसी ने बीते साल इलाके का दौरा किया था और तालीमी इदारों और सरकारी नौकरियों में OBC के लिए रियासत की रिजर्वेशन पॉलिसी का जायजा लिया था. एनसीबीसी ने सोमवार रात एक बयान में कहा कि, कर्नाटक में मुस्लिम धर्म की सभी जातियों और तबकों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों में माना जा रहा है और उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला और नियुक्तियों में रिजर्वेशन प्रदान करने के लिए पिछड़े वर्गों की राज्य सूची में श्रेणी IIबी के तहत अलग से मुस्लिम जाति के तौर पर सूचीबद्ध किया गया है.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा कि, पिछड़ी जाति के तौर पर मुसलमानों का व्यापक वर्गीकरण खासकर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के तौर पर पहचानी जाने वाली हाशिए पर पड़ी मुस्लिम जातियों और समुदायों के लिए सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करता है. कमीशन ने इस बात पर जोर दिया कि, मुस्लिम समुदाय के अंदर हकीकत में वंचित और ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाले तबके शामिल हैं, लेकिन पूरे मजहब को बैकवर्ड मानने से मुस्लिम तबके के भीतर विविधता और जटिलताओं की अनदेखी होती है.

कमीशन ने बताया कि, राज्य सरकारों को हर 10 साल में अपनी रिजर्वेशन पॉलिसी के अलग-अलग पहलुओं का जायजा लेने की जरूरत होती है. लेकिन, रिजर्वेशन पॉलिसी का कोई जायजा नहीं लिया गया. आखिरी सरकारी ऑर्डर 2002 में जारी किया गया था. लेकिन, बीते 22 बरसों में कोई जायजा नहीं लिया गया.

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