Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो के सभी 11 दोषियों को पिछले साल दी गई सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है. पीड़िता का बयान आपको झकझोर देगा. पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे स्कॉल करें.
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Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को बताया गया कि बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों ने मुसलमानों को शिकार बनाने और उन्हें मारने के लिए 'खून के प्यासे नजरिया' के साथ उनका पीछा किया.
सभी 11 दोषियों को पिछले साल दी गई सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर बहस शुरू करते हुए बिलकिस बानो की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने कहा, "जब वह गर्भवती थीं तो उनके साथ क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके पहले बच्चे को पत्थर से कुचलकर मार डाला गया था. वह दलील देती रही कि वह उनकी बहन की तरह है. क्योंकि वह उन सभी को जानती है. वे आसपास के इलाके से थे. यह अचानक हुई घटना नहीं थी. दोषी खून के प्यासे होकर शिकार करने के लिए बिलकिस का पीछा कर रहे थे. उन्होंने नारे लगाए, ये मुसलमान हैं. उन्हें मार डालो."
हाई कोर्ट ने ध्यान दिया है कि उनके द्वारा किया गया अपराध असामान्य और सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित था. वकील ने अदालत को बताया कि "दोषियों को सजा में छूट के बाद 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया था और बिलकिस को इसके बारे में तब पता चला जब उसने जेल से बाहर आते ही जश्न मनाया." दोषियों को दी गई छूट का विरोध करते हुए गुप्ता ने कहा, "सीबीआई ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का विरोध करते हुए कहा था कि बड़े पैमाने पर समाज में गलत संदेश जाएगा क्योंकि अपराध इस तरह का है कि इसे माफ नहीं किया जा सकता है."
जानकारी के लिए बता दें कि अगली सुनवाई मंगलवार को फिर शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सभी 11 दोषियों को पिछले साल दी गई सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करने के लिए 7 अगस्त की तारीख तय की थी. SC ने 9 मई को उन दोषियों के खिलाफ गुजराती और अंग्रेजी सहित स्थानीय समाचार पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने का निर्देश दिया था. जिन्हें नोटिस नहीं दिया जा सका था.
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को सुनवाई तब टाल दी थी जब दोषियों के कुछ वकीलों ने उन्हें दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस नहीं दिए जाने पर आपत्ति जताई थी. केंद्र और गुजरात सरकार ने अदालत को बताया था कि वे अदालत के 27 मार्च के आदेश की समीक्षा के लिए कोई याचिका दायर नहीं कर रहे हैं. जिसमें दोषियों को दी गई छूट के संबंध में मूल रिकॉर्ड पेश करने को कहा गया है.
गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो की याचिका के अलावा इस मामले में दायर अन्य याचिकाओं के संबंध में प्रारंभिक आपत्तियां उठाई थीं और कहा था कि इसके व्यापक प्रभाव होंगे. क्योंकि समय-समय पर तीसरे पक्ष आपराधिक मामलों में अदालतों का दरवाजा खटखटाएंगे. SC ने 18 अप्रैल को 11 दोषियों को दी गई छूट पर गुजरात सरकार से सवाल किया था और कहा था कि नरमी दिखाने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था और आश्चर्य जताया था कि क्या इसमें दिमाग का कोई इस्तेमाल किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का कारण पूछते हुए जेल में बंद रहने के दौरान उन्हें बार-बार दी जाने वाली पैरोल पर भी सवाल उठाया था. इसमें कहा गया था, ''यह छूट एक तरह की कृपा है. जो अपराध के अनुपात में होनी चाहिए.'' बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या को भयानक कृत्य करार देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को गुजरात सरकार से पूछा था कि क्या दोषियों को सजा में छूट देते समय अन्य हत्या के मामलों की तरह समान मानक लागू किए गए थे.
बिलकिस बानो की याचिका के अलावा, CPI (M) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं ने छूट को चुनौती दी है. तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी छूट के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है.
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