भारत की महिलाओं में तेजी से फैल रहा है सर्वाइकल कैंसर, लक्षणों को न करें नजरअंदाज
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भारत की महिलाओं में तेजी से फैल रहा है सर्वाइकल कैंसर, लक्षणों को न करें नजरअंदाज

सर्वाइकल कैंसर के लिए जिम्मेदार मानव पेपिलोमावायरस के लिए डीएनए-आधारित परीक्षण अन्य आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली स्क्रीनिंग विधियों की तुलना में अधिक प्रभावी मानी जाती है.

 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः सर्वाइकल कैंसर भारत में महिलाओं को होने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है. हालांकि, डॉक्टरों की राय है कि इसे काफी हद तक रोका जा सकता है. भारत में हर साल लगभग 1.25 लाख महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं. वहीं देश में इस बीमारी से हर साल 75 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है. सर्वाइकल कैंसर का एक बड़ा हिस्सा (95 प्रतिशत से अधिक) मानव पेपिलोमावायरस (एचपीवी) के कारण होता है.

मानव पैपिलोमावायरस यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) का सबसे बड़ा कारण है. एचपीवी को त्वचा से त्वचा के यौन संपर्क के माध्यम से प्रसारित किया जा सकता है. इसलिए इसके फैलने के लिए संभोग की जरूरत नहीं होती है. अधिकांश यौन-सक्रिय महिलाएं अपनी जिंदगी में किसी वक्त  इन लक्षणों के साथ या बिना लक्षणों के इसके संक्रमण की चपेट में आ जाती हैं. हालांकि, एचपीवी से संक्रमित पाए जाने वाले 10 में से 9 लोगों में संक्रमण अपने आप ठीक हो जाता है, जिससे कैंसर होने की संभावना बहुत हद तक कम हो जाती है. 

डॉक्टरों के मुताबिक, 200 से ज्यादा तरह के एचपीवी वायरस होते हैं, जिनमें से लगभग 14 प्रकारों को कैंसर पैदा करने के लिए उच्च जोखिम वाला माना जाता है. टाइप-16 या 18 एचपीवी गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बनता है. हालांकि इस संक्रमण को फैलने और कैंसर में बदलने में 15-20 साल तक का वक्त लग सकता हैं. भारत में रिपोर्ट किए गए पांच सर्वाइकल कैंसर में से चार एचपीवी टाइप- 16 और 18 के संक्रमण के कारण होते हैं.

सर्वाइकल कैंसर के लिए सबसे प्रभावी रोकथाम रणनीति उपचार और एचपीवी टीकाकरण के साथ-साथ महिलाओं की व्यवस्थित जांच करना है. सर्वाइकल कैंसर का जल्द पता लगाने और रोकथाम के लिए पैप-स्मियर, एसिटिक एसिड के साथ दृश्य निरीक्षण और एचपीवी डीएनए परीक्षण जैसी कई स्क्रीनिंग विधियों का इस्तेमाल किया जाता है. एचपीवी के लिए डीएनए-आधारित परीक्षण अन्य आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली स्क्रीनिंग विधियों की तुलना में अधिक प्रभावी मानी जाती है. इस परीक्षण में, एचपीवी डीएनए की जांच के लिए योनि और गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं का पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन या पीसीआर परीक्षण (कोविड या तपेदिक के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक ही पीसीआर परीक्षण) का उपयोग करके परीक्षण किया जाता है.

मायलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस के मेडिकल अफेयर्स के निदेशक डॉ. गौतम वानखेड़े कहते हैं,  "टीकाकरण कैंसर स्क्रीनिंग को प्रतिस्थापित नहीं करता है, भले ही आपको एचपीवी टीका लगी है, आपको गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लिए जांच करने की जरूरत होती है. 21-65 वर्ष के बीच की सभी महिलाओं को हर 3 साल में नियमित रूप से पैप स्मीयर करवाना चाहिए. अगर किसी महिला की एचपीवी डीएनए जांच की जाती है, तो जांच के अंतराल को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है.

Zee Salaam

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