Maharana Pratap Jayanti 2023: साल में 2 बार क्यों मनाई जाती है महाराणा प्रताप जयंती
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Maharana Pratap Jayanti 2023: साल में 2 बार क्यों मनाई जाती है महाराणा प्रताप जयंती

Maharana Pratap Jayanti 2023: आज 9 मई को देशभर में महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जा रही है. महाराणा प्रताप जिन्होंने अपनी वीरता के दम पर कई युद्ध जीते. महाराणा प्रताप ने अकबर जैसे शक्तिशाली राजा को भी हराया. 

Maharana Pratap Jayanti 2023: साल में 2 बार क्यों मनाई जाती है महाराणा प्रताप जयंती

Maharana Pratap Jayanti 2023: हर भारतवासी के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज का दिन इतिहास में दर्ज है. आज 9 मई को भारत के महान शूरवीर सपूतों में से एक महाराणा प्रताप की जयंती है. महाराणा प्रताप का जन्म 1540 में आज ही के दिन राजपूत राज परिवार में हुआ था.  

कौन थे महाराणा प्रताप?
महाराणा प्रताप ने अपनी वीरता के दम पर ऐसे कई कार्य किए, जिनकी वजह से आज भी देशभर में उनके त्याग, शौर्य और बलिदान की गाथाएं सुनाई देती हैं. बता दें, महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह मेवाड़ा वंश के शासक थे. महाराणा प्रताप ने मुगलों के अतिक्रमणों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी थीं. अगर अकबर की बात की जाए तो उन्होंने अकबर को युद्ध में तीन बार हराया था. यही वजह है कि आज उन्हें वीरता का प्रतीक माना जाता है.

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क्या कहती है BBC की रिपोर्ट?
हालांकि बहादुरी के प्रतीक माने जाने वाले महाराणा प्रताप की जयंती को लेकर कई लोग दुविधा में रहते हैं, क्योंकि जब आप इनकी जयंती के बारे में इंटरनेट पर भी सर्च करते हैं तो आपको दो तारीखें मिलती हैं, लेकिन बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराणा प्रताप की जयंती 6 जून को मनाना सही होता है, क्योंकि पंचांग के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ महीने की तृतीया तिथि को गुरुपुष्प नक्षत्र में हुआ था, जिसे सनातन धर्म में शुभ माना जाता है. 

क्या है महाराणा प्रताप जयंती सही तारीख?
ऐसे में उनकी एक जयंती अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, 9 मई को होती है और दूसरी जयंती पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की तृतीया को होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को मनाया तय होता है जबकि हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह तारीख बदलती रहती है. 

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यह थी महाराणा प्रताप की खासियत
महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली था. उनकी लंबाई 7 फुट 5 इंच और वजन लगभग 110 किलोग्राम था. युद्ध के दौरान वे हमेशा अपने पास 104 किलो की दो तलवारें रखते थे. उनके कवच का वजन करीब 72 किलो और भाले का वजन 80 किलो था. यह उनकी खासियत थी कि वे कभी भी निहत्थों पर वार नहीं करते थे. 

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