Manali News: 42 दिन बाद स्वर्ग प्रवास से लौटेंगे गौतम-व्यास ऋषि और कंचन नाग देवता, वापस आने पर होगी सालभर की भविष्यवाणी
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Manali News: 42 दिन बाद स्वर्ग प्रवास से लौटेंगे गौतम-व्यास ऋषि और कंचन नाग देवता, वापस आने पर होगी सालभर की भविष्यवाणी

Manali News: मनाली के ऐतिहासिक गांव गोशाल में 42 दिन तक सन्नाटा रहने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि गांव के आराध्य देवों के मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं. इसके बाद पूरा गोशाल गांव एक आदेश के तहत बंध जाता है. 

Manali News: 42 दिन बाद स्वर्ग प्रवास से लौटेंगे गौतम-व्यास ऋषि और कंचन नाग देवता, वापस आने पर होगी सालभर की भविष्यवाणी

संदीप सिंह/मनाली: हिमाचल प्रदेश में मनाली के ऐतिहासिक गांव गोशाल में सन्नाटा छा गया है. यह सन्नाटा आने वाले 42 दिन तक रहने वाला है. गांव के आराध्य देवों के मंदिर के कपाट बंद होते ही गोशाल गांव सहित उझी घाटी देव आदेश में बंध जाती है. यह देव आस्था से जुड़ी मान्यता सदियों से चली आ रही है. 

मान्यताओं के अनुसार, बीते दिन से गोशाल के आराध्यदेव गौतम-व्यास ऋषि और कंचन नाग देवता विधि पूर्वक स्वर्ग प्रवास के लिए चले गए. इस दौरान देवता तपस्या में लीन रहेंगे, जिसके चलते मंदिर के प्रांगण सहित गांव का माहौल पूरी तरह आने वाले 42 दिन तक शांत रहेगा. देवलू देव विधि अनुसार, गांव में देव आदेश लागू करवातें हैं. 

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बीते दिन मंदिर में घंटियों की आवाज सुनाई दे रही थी, लेकिन आज सुबह होते ही गोशाल आराध्यदेवों का मंदिर सुनसान हो गया. आज से 42 दिन तक मंदिर में न पूजा होगी और न मंदिर की घंटियां बजेंगी. देवालय की घंटियां बांध दी गई हैं और कपाट विधि पूर्वक बंद कर दिए गए हैं. गोशाल गांव के घरों में अब न रेडियो बजेगा और ना ही टीवी चलेगा. इतना ही नहीं आने वाले 42 दिन तक यहां कोई जमीन भी नहीं खोद सकेगा. देवता गौतम ऋषि के मंदिर में कारकूनों द्वारा मिट्टी छानदिकर मृदालेप की विधि पूरी की गई. 

आज से 42 दिन बाद देवता के स्वर्ग प्रवास से वापस आते ही देवालय में रौनक लौटेगी और ग्रामीण देवता के आगमन की खुशी पर उत्सव मनाएंगे. देव आदेश के चलते उझी घाटी के नौ गांव गोशाल सहित कोठी, सोलंग, पलचान, रुआड़, कुलंग, शनाग, बुरुआ और मझाच के लोग आज से 26 फरवरी तक किसी उत्सव का आयोजन नहीं करेंगे और ना ही खेत-खलियानों में काम करेंगे. देवता के पुजारी चमन लाल और कारदार हरि सिंह ने बताया कि आज विधि पूर्वक देवता के देवालय बंद कर दिए गए हैं और मृदा लेप भी विधि पूर्वक लगाई गई. सदियों से चली आ रही इस अनूठी देव पंरपरा को घाटी वासी आज भी श्रद्धा पूर्वक निभा रहे हैं. 

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