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संदीप सिंह/शिमला: किसी भी मां बाप के लिए अपने बच्चों को खुद से दूर करना सबसे मुश्किल होता है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के झंझीड़ी इलाके में बीमार और लाचार पिता मोती लाल को अपने दो बच्चियों को खुद से दूर करना पड़ा. दो साल पहले मोती लाल को पैरालिसिस का अटैक पड़ा. इसके दो महीने बाद ही पैरालिसिस होने की वजह से मोतीलाल का रोजगार चला गया. कुदरत ने ऐसा खेल रचा कि दो महीने बाद ही पत्नी की भी मौत हो गई.
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मोतीलाल की तीन बेटियां और एक बेटा है. पहले बच्चों के सिर से बीमार पिता का दर्द और फिर सिर से मां का साया उठ जाना. बच्चों के लिए अपार दुख लेकर आया. मोतीलाल के आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि वे न तो अपनी दवाइयां ले सकते हैं और न ही मकान का किराया दे पा रहे हैं.
पैरालिसिस से पीड़ित बीमार मोती लाल ने कहा कि जब तक वह स्वस्थ थे, तब तक घर परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो रहा था, लेकिन अब हाथ पैर साथ नहीं देते. 2 साल तक जैसे-तैसे घर का गुजारा हुआ. बच्चों की मदद से ही घर पर सब काम करते हैं, लेकिन पैरालिसिस होने की वजह से रोजगार के साधन नहीं हैं. ऐसे में उन्होंने अपनी दो बेटियों को आश्रम भेजने का मन बनाया है. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की मदद से दोनों बेटियां आश्रम में रहकर पढ़ाई करेंगी, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके.
सीडब्ल्यूसी की चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने मोतीलाल से बड़ी बेटी और छोटी बेटी को भी आश्रम भेजने चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट भेजने के लिए मन बनाने को कहा है, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके. चेयरपर्सन अमिता भारद्वाज ने मोतीलाल के लिए जिला प्रशासन से भी बात करने की बात कही है.
बता दें, मोती लाल के चार बच्चे हैं. जिनमें तीन बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी की उम्र 14 साल, दूसरी बेटी की उम्र 10 साल, तीसरी बेटी की उम्र 7 साल जबकि सबसे छोटे बेटे की उम्र 6 साल है. बेटी मुस्कान ने बताया कि दो साल पहले पिता बीमार हुए. उसके बाद मां का साया भी सिर से उठ गया. अब सब बच्चे मिलकर घर पर पिता की मदद करते हैं. स्कूल जाने से पहले सारा काम करके स्कूल जाते हैं. उन्हें उम्मीद है कि पिता जल्द स्वस्थ होंगे और पहले की तरह काम पर जाने लगेंगे.
पैरालिसिस से ग्रसित बीमार मोती लाल ने बताया कि दो साल पहले जब वे रोजाना की तरह दुकान पर काम कर रहे थे, तो शिवरात्रि के दिन अचानक वे बीमार पड़ गए. अस्पताल जाकर पता लगा कि पैरालिसिस का अटैक पड़ा है. इसके बाद काम पर जाना भी मुश्किल हो गया. बीमार होने के 2 महीने बाद ही धर्मपत्नी की भी मौत हो गई. बच्चों के सिर से मां का साया उठ गया. अब बच्चे ही घर पर सारा काम करते हैं. न तो अपने घर परिवार से सहयोग मिलता है और न ही सरकार से. पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं. बीते एक साल से मकान मालिक ने भी कमरे का किराया तक नहीं लिया है. वह बच्चों को अपने से दूर तो नहीं भेजना चाहते, लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है. उन्हें उम्मीद है कि जब वे स्वस्थ होंगे, तो वापस बच्चों को अपने पास बुला लेंगे.
बेहद हैरानी की बात है कि शिमला शहर में ही रहने वाले मोती लाल को सरकार-प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती. न तो उन्हें सहारा योजना के तहत पेंशन मिलती है और न ही उनका हिम केयर कार्ड बना है. दवाई लेने के लिए भी शिमला से दूर जाना पड़ता है. टैक्सी से आने-जाने और फिर दवाई का खर्च इतना है कि वे हर महीने इतना पैसा नहीं खर्च सकते. मुश्किल के समय में मोती लाल के भाइयों का भी उन्हें कोई साथ नहीं मिलता. सिर्फ पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं.
मोती लाल का कहना है कि उन्हें सरकार-प्रशासन की मदद की जरूरत है. उन योजनाओं के लाभ की जरूरत है, जिसके वे हकदार हैं. जन औषदी दवा होने का दावा करने वाली सरकार को मोती लाल की मदद के लिए आगे आना चाहिए, ताकि वह जल्द से जल्द स्वस्थ हो और एक बार फिर बच्चों को अपने पास बुला सकें.
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