25 साल पुराना क्रूर चेहरा बदल पाएगा तालिबान, मान्यता देने को कौन बेकरार ?

2018 में तालिबान ने अमेरिका के साथ बातचीत शुरू की थी. 2020 में कतर की राजधानी दोहा में दोनों के बीच समझौता हुआ.   

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Aug 18, 2021, 04:06 PM IST
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25 साल पुराना क्रूर चेहरा बदल पाएगा तालिबान, मान्यता देने को कौन बेकरार ?

नई दिल्लीः अफगानिस्तान में तालिबानी राज को लेकर दुनिया के माथे पर शिकन है. जिस तरह की तस्वीरें अफगानिस्तान से आ रही हैं वो डरानेवाली हैं . सवाल है कि क्या ऐसे हालात को रोका जा सकता था ? संयुक्त राष्ट्र क्यों कुछ नहीं कर पा रहा ? अपने अतीत को बदल पाएगा तालिबान ? भारत क्या ऐसे तालिबान को मान्यता देगा  ?      

चीख पुकार और दहशत के बीच फिर से तालिबान राज
20 साल बाद अफगानिस्तान में फिर से तालिबान राज लौट आया है. 100 दिन से ज्यादा वक्त तक चले संघर्ष के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है तालिबान के आगे ना सिर्फ गनी सरकार ने सरेंडर कर दिया और बल्कि राष्ट्रपति गनी मुल्क छोड़ कर ही भाग गए . तालिबान शासन के बाद अफगानिस्तान में जिस तरह का खौफनाक मंजर है उससे पूरी दुनिया हिल गई है लोग बेसुध अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं वो किसी तरह बस अफगानिस्तान से निकलना चाह रहे हैं हजारों लोग शहर के हवाई अड्डे पर इस्लामी शासन के कट्टरपंथी ब्रांड से बचने के लिए निकलने की कोशिश में जुटे हैं.

गनी सरकार पर ठीकरा फोड़ निकल गया अमेरिका  
अफगानिस्तान की ऐसी हालत के लिए सुपर पावर अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. व्हाइट हाउस के बाहर अफगानी लोग अमेरिका के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन अमेरिका इसके लिए खुद को कसूरवार नहीं मानता . बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि अफगान में आज जो हालात बने हैं उसके जिम्‍मेदार अशरफ गनी खुद हैं. 

उन्‍हें तो अपने लोगों की मदद के लिए वहां मौजूद रहना था लेकिन वो खुद ही वहां से भाग निकले. जब अफगान सेना ही लड़ने को तैयार नहीं तो अमेरिकी सैनिक क्यों लड़े . बाइडेन ने कहा कि अमेरिका सैनिक "ना तो ऐसे युद्ध में लड़ सकते हैं, और ना लड़ना चाहिए, और अपनी जान देनी चाहिए, जिसे अफगान सेनाएं खुद लड़ने को तैयार नहीं हैं.” हम अपनी सेना को वहां कुछ समय और रख सकते थे लेकिन सेना को वहां से हटाने का हमारा फैसला सही है . यानी अमेरिका ने अपना पल्ला साफ झाड़ लिया है .

समझौते के बावजूद तालिबान ने अमेरिका को धोखा दिया  
2018 में तालिबान ने अमेरिका के साथ बातचीत शुरू की थी. 2020 में कतर की राजधानी दोहा में दोनों के बीच समझौता हुआ. जिसमें अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाने की प्रतिबद्धता जताई जबकि तालिबान ने कहा कि वो अमेरिकी सैनिकों पर हमले नहीं करेगा . समझौते में तालिबान ने अपने कंट्रोल वाले इलाके में अल कायदा और दूसरे चरमपंथी संगठनों की एंट्री पर पाबंदी लगाने की बात भी कही. राष्ट्रीय स्तर की शांति बातचीत में शामिल होने का भरोसा भी दिया था.

 लेकिन समझौते के अगले साल से ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के आम नागिरकों और सुरक्षा बल को निशाना बनाना जारी रखा.अमेरिकी सैनिकों की वापसी से तालिबान के हौसले और बढ़ गए उसने शांति और बातचीत की प्रक्रिया की बजाए बंदूक के दम पर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया .

अफगानिस्तान के हालात पर संयुक्त राष्ट्र असफल रहा ?
तालिबान की हालत के लिए जहां सुपर पावर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वहीं संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं आज अफगानिस्तान में खौफ और दहशत का मंजर है मानवता को पैरो तले कुचला जा रहा है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की सशक्त भूमिका नजर नहीं आ रही सवाल उठ रहे हैं कि अफगानिस्तान में शांति के लिए कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे . क्यों नहीं संयुक्त राष्ट्र अपने नेतृत्व में शांति स्थापित करने के लिए अफगानिस्तान में सभी देशों की सेना भेजता . 

हालाकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा है कि ‘‘अफगानिस्तान के लोगों को हम अकेले नहीं छोड़ सकते. मैं सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एकजुट होने, मिलकर काम करने और अफगानिस्तान में वैश्विक आतंकवाद को कुचलने के लिए सभी संसाधनों का इस्तेमाल करने और मानवाधिकारों की रक्षा करने की अपील करता हूं.’’ लेकिन सवाल है कि क्या ऐसा हो पाएगा . क्योंकि सभी को पता है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से पल्ला झाड़ लिया है चीन और रूस के अफगानिस्तान से जुड़े अपने हित हैं इसलिए वो तालिबान के खिलाफ नहीं जाएंगे .

तालिबान की मान्यता के लिए क्यों उत्सुक है चीन और रूस ?  
भले ही दुनिया तालिबान राज को इंसानियत की दुश्मन मान रही हो , अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अधिकतर देश काबुल में अपने दूतावासों को बंद करके अपने नागरिकों को निकालने में जुटे हों लेकिन चीन और रूस तालिबान से रिश्ते को लेकर को लेकर बहुत जल्दबाजी में नजर आ रहे हैं  चीन का कहना है तालिबान ने बार-बार चीन के साथ अच्छे रिश्ते की उम्मीद जाहिर की है और वे अफगानिस्तान के विकास और पुर्ननिर्माण में चीन की सहभागिता को लेकर आशान्वित हैं. हम इसका स्वागत करते हैं .

 चीन के अलावा रूस ने भी कह दिया है कि  अगर तालिबान का आचरण ठीक रहता है तो इसके शासन को मान्यता दी जा सकती है . दरअसल अफगानिस्तान में बन रहे नए हालात के बीच रूस-चीन और ईरान की एक तिकड़ी उभरती दिख रही है. ये तिकड़ी मध्य एशियाई देशों को साथ लेकर अफगानिस्तान में अपना निर्णायक प्रभाव कायम करने की कोशिश में है . अफगानिस्तान चीन की बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जबकि रूस उसे अपने नेतृत्व वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन में जोड़ना चाहता है . रूस और चीन चाहते हैं कि भविष्य में अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों की कोई भूमिका ना रहे  .

तालिबान को भारत देगा मान्यता ? 
तालिबान ने भारत को लेकर एक बयान दिया है, जिसमें तालिबान ने कहा है कि भारत अफगानिस्‍तान में जिन प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहा था, उसे  पूरा कर सकता है, क्योंकि वह अफगानिस्तान की अवाम के लिए है. लेकिन हम अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी भी मुल्क को अपना मकसद पूरा करने या अदावत निकालने के लिए नहीं देंगे . दरअसल भारत अफगानिस्‍तान में कई डेवलपमेंट प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहा है जिसमें तकरीबन 3 अरब डॉलर का निवेश लगा हुआ है वहीं UN में भारतीय राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने दुनिया से अपील की कि अफगानिस्तान में तुरंत हिंसा को रोका जाए. 

पड़ोसी देशों की चिंता तभी खत्म होगी, जब अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए ना होने दिया जाए . दोहा में 10 और 12 अगस्त को अफगानिस्तान को लेकर दो अलग अलग बैठके हुई थी जिसमें अमेरिका, चीन, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान, ब्रिटेन, भारत, जर्मनी, नॉर्वे, ताजिकिस्तान, तुर्की जैसे देश शामिल थे . बैठक में एक बात निकल कर सामने आई थी कि अफगानिस्तान में किसी सैन्य अधिग्रहण की कोई मान्यता नहीं होगी . लेकिन अब चीन ने पैतरा बदल दिया है भारत शुरू से हिंसा के खिलाफ रहा है फिलहाल बदलते घटनाक्रम पर नजर बना कर आगे की रणनीति बनाने में जुटा है .

तालिबान में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दुनिया चिंतित
तालिबान राज में महिलाओं की जिंदगी को लेकर काफी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं शरीया कानून के नाम पर तालिबान के पिछले शासन में उन पर की गई यातनाएं फिर से ताजा हो गई हैं तालिबानी नेता अफगानिस्तान में औरतों का अपहरण करने और उनके साथ जबरदस्ती शादी कर सेक्स स्लेव बनाने का काम भी कर रहे हैं.

 पहले तालिबानी आतंकी सिर्फ महिलाओं को शरिया कानूनों पर चलने को कहते थे लेकिन उनकी हालिया हरकत इराक और सीरिया में मौजूद इस्लामिक स्टेट के कट्टर आतंकवादियों जैसी दिख  रही है. जिनके लिए महिलाएं सिर्फ सेक्स गुलाम हैं .

हालाकि दुनिया की नजर में इस बार तालिबान अपनी एक अलग इमेज बनाना चाहता है. वो कह रहा है कि वो काबुल को रौंदने नहीं शासन करने आया है और उसके राज में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जाएगी. लेकिन वहां से आ रही तस्वीरें दुनिया और अफगानिस्तान के जेहन में फिर से 1996 के क्रूर तालिबान की छवि को ही ताजा कर रही हैं.

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