खुशखबरीः कोरोना का टीका बनाने से वैज्ञानिक केवल कुछ कदम दूर हैं

वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के लिए संभावित टीके का चूहे पर ट्रायल किया है और वायरस के प्रभाव को बेअसर करने के लिए जितनी मात्रा में यह वैक्सीन दिया जाना चाहिए उतनी ही मात्रा में इसने चूहों में कोरोना वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 3, 2020, 09:27 PM IST
    • चूहों में जब टीके पिट्सबर्ग कोरोना वायरस (पिट्टकोवैक) का ट्रायल किया गया, वैक्सीन दिए जाने के दो हफ्तों के भीतर ये एंटीबॉडीज बने.
    • यह 400 छोटी-छोटी सुइयों का उंगली के पोर के आकार का एक टुकड़ा है जो त्वचा के उस हिस्से में स्पाइक प्रोटीन के टुकड़ों को पहुंचाता है
खुशखबरीः कोरोना का टीका बनाने से वैज्ञानिक केवल कुछ कदम दूर हैं

नई दिल्लीः कोरोना वायरस के टीके बनाने से वैज्ञानिक लगातार प्रयोग कर रहे हैं और केवल कुछ कदम ही दूर हैं. प्रयोग सफल रहा तो जल्द ही सारी दुनिया को अपनी उंगली पर नचा रहा कोरोना वायरस का जल्दी ही सफाया होगा. मेडिकल साइंस के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के टीके पर प्रयोग किया है और उन्हें सफल होने की प्रबल आशा नजर आ रही है.  उन्हें चूहे पर किए गए प्रयोग के बेहतर परिणाम मिल रहे हैं. 

चूहों में बनने लगे एंटीबॉडीज
वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के लिए संभावित टीके का चूहे पर ट्रायल किया है और वायरस के प्रभाव को बेअसर करने के लिए जितनी मात्रा में यह वैक्सीन दिया जाना चाहिए उतनी ही मात्रा में इसने चूहों में कोरोना वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की.

रिसर्च में पाया गया कि चूहों में जब टीके पिट्सबर्ग कोरोना वायरस (पिट्टकोवैक) का ट्रायल किया गया इसने कोरोना वायरस, सार्स सीओवी-2 के खिलाफ बहुत मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित किया. वैक्सीन दिए जाने के दो हफ्तों के भीतर ये एंटीबॉडीज बने.

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एक खास प्रोटीन बनाता है रोग प्रतिरोधक क्षमता
अमेरिका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी की वरिष्ठ सह अनुसंधानकर्ता एंड्रिया गामबोट्टो ने कहा, “हमने सार्स-सीओवी पर 2003 में और 2014 में एमईआरएस-सीओवी पूर्व में ट्रायल किया है. सार्स-सीओवी-2 से करीब से जु़ड़े ये दो वायरस बताते हैं कि एक खास प्रोटीन जिसे स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है वह वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के लिए जरूरी है.

" मबोट्टो ने कहा, हमें पता है कि इस नए वायरस से कहां पर लड़ने की जरूरत है.  वैज्ञानिकों ने कहा कि वर्तमान रिसर्च में वर्णित वैक्सीन में ज्यादा प्रमाणिक रुख का पालन किया गया है, 

पत्रिका में प्रकाशित हुई है रिसर्च
इसमें वायरल प्रोटीन के लैब निर्मित टुकड़ों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाने के लिए किया गया है. उनका कहना है कि जैसे फ्लू के लिए अभी टीके दिए जाते हैं, यह वैक्सीन भी बिलकुल उसी तरह काम करता है. इस रिसर्च में अनुसंधानकर्ताओं ने टीके का प्रभाव बढ़ाने के लिए इसे देने का एक नया तरीका अपनाया है, जिसे मोइक्रो नीडल अरे कहा जाता है.

उन्होंने बताया कि यह 400 छोटी-छोटी सुइयों का उंगली के पोर के आकार का एक टुकड़ा है जो त्वचा के उस हिस्से में स्पाइक प्रोटीन के टुकड़ों को पहुंचाता है, जहां प्रतिरोधक प्रतिक्रिया सबसे मजबूत होती है. यह रिसर्च ‘ईबायोमेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

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