नई दिल्ली: Bindyarani Devi Silver medal: वेटलिफ्टर बिंदिया रानी देवी ने बर्मिंघम में जैसे ही रजत पदक जीता पूरे देश में उनके नाम की चर्चाएं होने लगीं. मणिपुर के बेहद गरीब परिवार में जन्मीं बिंदिया रानी जब मेडल जीतने वाली थीं, ठीक उसी समय उनके परिवार के लोग मैच देखने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
उनके परिवार के सदस्य एक टेलीविजन कनेक्शन पाने के लिए हाथ-पांव मार रहे थे ताकि वे मणिपुर के इम्फाल में अपने घर से मैच देख सकें. उनके परिवार में चार सदस्य हैं, जिसके यहां एक परचून की दुकान है.
पिता चलाते हैं किराने की दुकान
किराना दुकान चलाने के साथ-साथ उनके पिता खेती कर परिवार की देखभाल करते हैं. बर्मिघम में बिंदियारानी के खेल को देखने के लिए परिवार को टीवी कनेक्शन नहीं मिल पा रहा था, जहां वे दर-दर भटक रहे थे. समय पर कनेक्शन तैयार करने की जिम्मेदारी उसके बड़े भाई पर आ गई, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में है.
गोल्ड मेडल जीतने से चूक गईं बिंदियारानी
रजत पदक जीतने के बाद बिंदियारानी ने कहा, "खेल शुरू होने से कुछ घंटे पहले मेरे भाई ने टीवी कनेक्शन लिया और मेरे परिवार और रिश्तेदारों ने मुझे पदक जीतते हुए देखा." हालांकि, बिंदियारानी दूसरे चरण में 114 किलोग्राम के भार पर गलती कर बैठीं, जिससे वे गोल्ड मेडल पर कब्जा नहीं जमा पाईं. उन्होंने दूसरे स्थान पर कब्जा किया और देश के लिए रजत जीता.
22 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, यहां प्रदर्शन करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. इससे मेरा मनोबल और बढ़ा है. यहां प्रदर्शन करने के बाद मेरी नजर वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए तैयारी करने और पदक जीतने पर है. एक खिलाड़ी के पास खेल से जुड़ी चीजें होना बहुत जरूरी हैं लेकिन बिंदियारानी के पास तो जूते खरीदने के भी पैसे नहीं थे.
ऐसे में उनकी गरीबी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्हें स्टार वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने जूते गिफ्ट में दिए थे. बिंदियारानी के पिता खेती करते हैं और घर में एक किराना की दुकान है. कठिन परिस्थितियों ने निकलकर उन्होंने बर्मिंघम में तिरंगे का मान बढ़ाया जिसकी सराहना पीएम मोदी और राष्ट्रपति कर चुके हैं.
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