नई दिल्लीः चैम्पियन मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी ने मंगलवार को कहा कि एक बार वह उग्रवादी बनने की तरफ बढ़ रही थी लेकिन खेलों ने उनकी जिंदगी बदल दी. सरिता देवी ने ‘वाई20’ सम्मेलन में नब्बे के दशक के उन दिनों को याद किया जब मणिपुर में उग्रवाद अपने चरम पर था और कहा कि खेलों के कारण वह उग्रवादी बनने से बच गई.
उग्रवादियों को हथियार मुहैया कराती थी
उन्होंने कहा, मैं उग्रवादियों से प्रभावित होकर उग्रवाद की तरफ बढ़ रही थी. मैं उनके लिए हथियार मुहैया कराती थी, लेकिन खेलों ने मुझे बदल दिया और मुझे अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया. सरिता ने कहा,मैं एक छोटे से गांव में रहती थी और जब मैं 12-13 साल की थी तो हर दिन उग्रवादियों को देखती थी. घर पर रोजाना लगभग 50 उग्रवादी आते थे. मैं उनकी बंदूकें देखती थी और उनके जैसा बनना चाहती थी. मैं उग्रवाद की तरफ बढ़ रही थी.
उनके जैसा बनना ही मेरा सपना था
पूर्व विश्व चैंपियन ने स्वीकार किया कि एक समय वह उग्रवादियों के हथियारों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करती थी. उन्होंने कहा, ‘‘मैं उनके जैसा बनने का सपना देखती थी और मुझे बंदूकों से खेलना बहुत पसंद था. मुझे नहीं पता था कि खेलों से आप खुद को और देश को प्रसिद्धि दिला सकते हैं.
भाई की पिटाई ने बदली जिंदगी
एक दिन उनके भाई ने उनकी पिटाई की जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई. सरिता ने कहा, ‘‘मैं खेलों से जुड़ी और फिर मैंने 2001 में पहली बार बैंकॉक में एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रजत पदक जीता. चीन की मुक्केबाज ने स्वर्ण पदक जीता था. उनका राष्ट्रगान बजाया गया और सभी ने उसे सम्मान दिया. यही वह क्षण था जब मैं भावुक हो गई थी.
उन्होंने कहा,‘‘इसके बाद मैंने कड़ी मेहनत की और 2001 से 2020 तक कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर ढेरों पदक जीते. खेलों ने मुझे बदल दिया. मैं अपने देश के युवाओं में इसी तरह का बदलाव देखना चाहती हूं.
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