नई दिल्ली: Ram Mandir Pran Pratishtha: आज यानी 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का समारोह है. राम मंदिर को लेकर कई सालों से आंदोलन हो रहा था, अब यह मांग पूरी हो गई. अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बन रहा है. लेकिन जहां राम का नाम आता है, वहां रामराज्य का भी जिक्र होता है. रामराज्य को शासन की सबसे आदर्श व्यवस्था के तौर पर देखा जाता है. गाहे-बगाहे राजनीतिक दल इसकी बात कर ही देते हैं. चलिए, जानते हैं कि रामराज्य क्या है और इसकी परिकल्पना कैसी है?
क्या है रामराज्य
अवध के राजा राम के राज में सभी लोग सुखी थे, कोई दुःखी नहीं था. एक पंक्ति में राम का राज यानी रामराज्य इसे ही कहा जाता है. माना जाता है कि राम के राज में किसान, व्यापारी, मजदूर और महिलाओं समेत सभी सुखी थे, इन्हें किसी चीज की तकलीफ या समस्या नहीं थी.
तुलसीदास का रामराज्य कैसा था?
कवि तुलसीदास ने भी रामराज्य की परिकल्पना की है. गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार, रामराज्य वही है जिसमें हर व्यक्ति, नर-नारी अहंकार, दंभ छल और कपट से मुक्त हैं. सभी एक-दूसरे का आदर करते हैं. परिजनों को आदर देने वाले हैं. सभी मे एक-दूसरे के प्रति कृतज्ञता का भाव हो.
महात्मा गांधी की रामराज्य की परिकल्पना
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी रामराज्य की बात किया करते थे. उनका मानना था कि रामराज्य में लोकतंत्र हुआ करता था. यह उनकी परिकल्पना थी. 2 अगस्त, 1934 को अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशन हुए एक लेख में गांधी जी ने कहा था कि मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिए एक जैसे अधिकार सुनिश्चित करती है. उन्होंने साल 1937 में 'हरिजन' में लिखा कि मैंने रामराज्य का वर्णन किया है, जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है.
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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