मां काली के अनन्य उपासक थे विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस

गुरू ने अपनी आंखें बन्द करके पहचान लिया था अपने पहुंचे हुए शिष्य को किन्तु शिष्य के मन में थी प्रारंभ में कुछ शंका जो गुरू से दूसरी बार मिलने पर ऐसी तिरोहित हुई मानो थी ही नहीं..  

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Nov 24, 2020, 07:11 PM IST
  • मूर्तिपूजा के विरोधी थे नरेन्द्र
  • पहले लगा कि तांत्रिक हैं रामकृष्ण परमहंस
  • अलौकिक दृष्टि ने पहचान लिया शिष्य को
  • फिर मूर्तिपूजक परमहंस के प्रख्यात शिष्य बन गये नरेन्द्र
मां काली के अनन्य उपासक थे विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस

नई दिल्ली.   गुरू को ढूंढता हुआ पहुंच गया था शिष्य उनके पास. किन्तु भौतिक नेत्रों में अलौकिक गुरू का परिचय प्राप्त करना दुष्कर ही था. यहां गुरुकृपा ने सेतु बन कर अपना परिचय दिया अपने शिष्य की अंतरात्मा को. उसके बाद शिष्य विवेकानंद के पास कोई प्रश्न शेष नहीं रहा और वे जान गये कि उनके जीवन को मार्गदर्शक मिल गया है.

मूर्तिपूजा के विरोधी थे नरेन्द्र

रामकृष्ण परमहंस मां काली के उपासक थे और उस समय तक ब्रह्म समाज से प्रभावित विवेकानंद मूर्ति पूजा के खिलाफ थे. पहली मुलाकात में गुरु तो भाव-विभोर थे लेकिन शिष्य बेपरवाह ही रहा. क्योंकि विवेकानंद आस्था को भी तर्क की कसौटी पर कसते थे. लेकिन विलियम हेस्टी ने रामकृष्ण परमहंस के बारे में जब विवेकानंद को बताया तो इस बार उन्होंने दक्षिणेश्वर जाने का मन बना ही लिया. अपने कुछ दोस्तों के साथ वे पहुंच गए गंगा नदी के तट पर स्थित दक्षिणेश्वर. मिलते ही पहला सवाल यही कि क्या आपने भगवान को देखा है.

पहले लगा कि तांत्रिक हैं रामकृष्ण परमहंस

रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद स्वामी विवेकानंद आशंकित थे. बचपन से ही निर्भीक विवेकानंद के मन में पहली बार डर घर कर गया था. शुरू में रामकृष्ण परमहंस उन्हें तंत्र-मंत्र जादू-टोना करने वाले लगे. लेकिन इन आशंकाओं के बीच मन में प्रेम की ऐसी लौ जगी कि दोबारा वहां जाने से खुद को रोक नहीं पाए. दूसरी बार तो विवेकानंद के साथ जो हुआ उससे उनकी दुनिया ही बदल गई.

अलौकिक दृष्टि ने पहचान लिया शिष्य को

रामकृष्ण परमहंस तो अपनी अलौकिक शक्तियों से जान ही चुके थे कि जिस शिष्य की उन्हें तलाश थी वो कोई और नहीं नरेन ही है. अलौकिक गुरु ने शिष्य को पहचाना और गुरुकृपा से शिष्य ने भी गुरु की महिमा जान ली. जो नरेन तर्क और विज्ञान की कसौटी पर कसे बगैर ईश्वर की सत्ता को भी स्वीकार नहीं करता था वो मूर्ति पूजक, मां काली के भक्त रामकृष्ण परमहंस का अनन्य भक्त हो गया.

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