आकाशगंगा के सप्त ऋषियों में से एक थे स्वामी विवेकानंद

जो सनातनधर्मी हैं वे जानते हैं कि पिछले जन्मों के संस्कार जन्म-जन्मांतर तक साथ चलते हैं और सुप्त स्मृतियाँ प्रत्येक जन्म में आत्मा के साथ ही शरीर में अस्तित्वमान होती हैं.. 

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Nov 18, 2020, 03:14 PM IST
  • गुरु रामकृष्ण परमहंस ने बताई थी कहानी
  • ध्यानयात्रा में दर्शित हुए ध्यानमग्न सप्त-ऋषि
  • मां को दिखा था दूसरा स्वप्न
  • नरेन के बचपन का खेल था ध्यान
आकाशगंगा के सप्त ऋषियों में से एक थे स्वामी विवेकानंद

नई दिल्ली.    जीवन रहस्य है. बहुधा एक सामान्य मनुष्य के मस्तिष्क में भी जीवन की विचित्रता को लेकर प्रश्न उठते हैं, लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ और चकाचौंध के साए में ये सवाल मन से उठकर मन में ही दफ्न हो जाते हैं. स्वामी विवेकानंद के जीवन के बारे में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने एक बार अद्भुत कहानी अपने शिष्यों को बताई. 

गुरु रामकृष्ण परमहंस ने बताई थी कहानी 

स्वामी विवेकानंद के जीवन के बारे में उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने एक बार जो अद्भुत कहानी अपने शिष्यों को बताई उसमें उन्होंने कहा कि ध्यान की परम अवस्था में एक बार उनका मन ऊपर उठने लगा. वह सौर मंडल को पार करता हुआ तारों के समूह तक पहुंचा और फिर उसके ऊपर उठते हुए अखंड लोक में पहुंच गया. वहां का पवित्र अलौकिक प्रकाश मन को अद्भुत शांति देने वाला था. वहां उन्होंने देखा कि सात ऋषि अखंड ध्यान में लीन हैं. 

ध्यानमग्न थे सप्त-ऋषि 

ध्यान की इस विलक्षण यात्रा के दौरान यहां पहुंच कर फिर उसी दिव्य प्रकाश का एक टुकड़ा अपने मूल स्रोत से निकलता है और एक अनुपम बालक का रूप धर लेता है. वो बालक ध्यानमग्न सात ऋषियों में से एक के पास जाता है और अत्यंत स्नेह से ऋषि की धवल दाढ़ियों में अपने कोमल हाथ फेरकर उन्हें ध्यान से बाहर लाता है और फिर कहता है कि मैं जा रहा हूं आपको भी आना होगा. रामकृष्ण ने तब शिष्यों को कहा था कि नरेन और कोई नहीं बल्कि उन्हीं सप्त ऋषियों में से एक है. 

मां को दिखा था स्वप्न 

सच क्या है किसी को नहीं पता. विवेकानंद सप्त ऋषियों में से एक थे या मां के स्वप्न के अनुसार शिव के अंश, ये तय कर पाना आम इंसान के लिए बेहद मुश्किल है. लेकिन बचपन से ही उनके अंदर जो अलौकिक अद्भुत गुण दिखने लगे थे उससे ये तो साफ है कि वे एक सामान्य मनुष्य तो नहीं थे. 

बचपन का खेल था ध्यान 

बालक नरेन बचपन के दोस्तों के साथ तमाम खेल खेलते थे. उन्हीं खेलों में से एक था ध्यान. वो बच्चों के साथ बैठकर मुनियों की तरह ध्यान लगाने का खेल खेलते थे. बाकी बच्चों के लिए तो ये वाकई में खेल ही था लेकिन नरेन का तो सचमुच ध्यान लग जाता था. ऐसे ही एक बार अपने घर में बच्चों के साथ वो ध्यान-ध्यान खेल रहे थे. नरेन के साथ बाकी बच्चे आंखें मूंदे बैठे थे कि कमरे में एक भयंकर कोबरा आ गया. बाकी बच्चे चिल्लाते हुए भागे लेकिन नरेन तो निर्भीक निडर ध्यान में ही बैठे रहे. कोबरा फन काढ़कर उनके सामने था और नरेन ध्यानमग्न. घर के लोगों ने जब ये दृश्य देखा तो उनका कलेजा मुंह को आ गया

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