Parakram Diwas: वह दिलचस्प वाकया जब नेताजी ने कहा- मैं लौटने के लिए नहीं आया

सारी चुनौतियों, सारी बाधाओं को हराकर कर 11 मई 1943 को ये महामानव जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच गया. न किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष, न किसी सेना का कमांडर, न किसी देश का राजदूत, लेकिन जापान पहुंचकर सुभाष ने साफ कह दिया कि वो सीधा प्रधानमंत्री जनरल टोजो से मिलेंगे.

Written by - Ravi Ranjan Jha | Last Updated : Jan 23, 2021, 10:46 AM IST
  • खतरनाक समुद्री यात्रा कर जर्मनी से पहुंचे जापान
  • 21 अक्टूबर 1943 को बोस ने भारत की अस्थायी सरकार बनाई
Parakram Diwas: वह दिलचस्प वाकया जब नेताजी ने कहा- मैं लौटने के लिए नहीं आया

नई दिल्लीः तारीख 9 फरवरी 1943.  एक जर्मन सबमरीन अंडरसीबूट-180 टोक्यो स्थित जर्मन एम्बैसी के लिए डिप्लोमेटिक मेल लेकर रवाना हो रही थी. अपने बेहद विश्वस्त आबिद हसन सफरानी के साथ कभी हार न मानने वाला योद्धा सुभाष चंद्र बोस  (Subhas Chandra Bose) उसमें सवार हो गया. क्रू मेंबर्स को ये बताया गया कि दोनों इंजीनियर हैं. समंदर के रास्ते आधी से भी ज्यादा दुनिया का सफर तय करना था. दुश्मन तो ताक में थे ही. खतरनाक लहरें, तूफान सब की चुनौती थी. दक्षिण अंधमहासागर पार करने के बाद जैसे ही U-180 दक्षिण अफ्रीका से पूर्व की ओड़ मुड़ी ब्रिटिश टैंकर कॉर्बिस ने इसपर हमला कर दिया.

जर्मनी से जापान की रौंगटे खड़े करने वाली समुद्री यात्रा

जर्मन सबमरीन ने ब्रिटिश (British) टैंकर को वहीं डूबो के खत्म कर दिया. सुभाष और आबिद हसन को लेकर U-180 मेडागास्कर तक पहुंच गई. वहां सुभाष को जैपनीज सबमरीन I-29 में सवार होना था और यही आ गया आजादी के सबसे बड़े मसीहा की जिंदगी का सबसे खतरनाक मोड़.  U-180 और I-29 जब करीब पहुंचे तो समंदर में आ गया भयंकर तूफान. दोनों सबमरीन (Sub-marine) के कैप्टन्स ने तय किया कि अगर ये करीब आएंगे तो बेकाबू लहरों की वजह से दोनों सबमरीन्स में टक्कर हो जाएगी और सबकुछ तबाह हो जाएगा.

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ऐसे पहुंचे जापान

जर्मन (German) सबमरीन के कैप्टन ने नेताजी से कहा कि अब आपको वापस लौटना होगा, लेकिन हिम्मते मर्दा तो मदद-ए-खुदा. नेताजी ने जर्मन सबमरीन के कैप्टन को दो टूक कह दिया कि मैं लौटने के लिए नहीं आया हूं. सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) ने सर पर कफन बांधा और आबिद हसन सफरानी के साथ रबर बोट में सवार होकर समंदर की उफनती लहरों के बीच कूद गए. तब तूफान की वजह से समंदर की लहरें ऐसे वाचाल हो रही थीं कि कई बार लगा कि इसने नेताजी को लील लिया है. पर इंसान के इरादे फौलादी हों और जज्बा जीवट वाला हो तो समंदर की खतरनाक लहरें भी उसके आगे सरेंडर कर देती हैं. नेताजी सारी चुनौतियों को पार कर जापान पहुंच ही गए.

जापान पहुंचकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किया यलगार

सारी चुनौतियों, सारी बाधाओं को हराकर कर 11 मई 1943 को ये महामानव जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच गया. न किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष, न किसी सेना का कमांडर, न किसी देश का राजदूत, लेकिन जापान पहुंचकर सुभाष ने साफ कह दिया कि वो सीधा प्रधानमंत्री जनरल टोजो से मिलेंगे. सुभाष (Subhas Chandra Bose) और जनरल टोजो की मुलाकात हुई और इसी मुलाकात में ब्रितानी हुकूमत को समूची दुनिया से उखाड़ फेंकने की रणनीति तैयार हुई. सुभाष उसके बाद इंडियन नेशनल आर्मी के तत्कालीन प्रमुख रासबिहारी बोस से मिले.

रासबिहारी बोस ने सौंपी कमान

4 जुलाई 1943 को एक बोस ने दूसरे बोस को आजाद हिंद फौज ( Indian National Army) की कमान सौंप दी. इंडियन नेशनल आर्मी की कमान संभालते ही नेताजी ने उसमें जान फूंकनी शुरू कर दी.

5 जुलाई 1943 को सिंगापुर में टाउन हॉल के सामने आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर की हैसियत से नेताजी ने सेना को संबोधित करते हुए दिल्ली चलो का बिगुल फूंक दिया. 21 अक्टूबर 1943 को बोस ने भारत की अस्थायी सरकार बनाई, जिसे जर्मनी, जापान (Japan), फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, और आयरलैंड समेत 11 

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