श्रीकृष्ण के देह त्याग कारण बना था उनका ही पुत्र, जानें पूरी कहानी

भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में तो हम सब ही जानते हैं. लेकिन उनके जीवन से जुड़ी कई ऐसी बातें भी हैं जो ज्यादा प्रचलन में नहीं है.  इसी कड़ी में आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु से जुड़ी एक घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी वजह से उनके पूरे कुल का नाश हो गया था.

भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में तो हम सब ही जानते हैं. लेकिन उनके जीवन से जुड़ी कई ऐसी बातें भी हैं जो ज्यादा प्रचलन में नहीं है.  इसी कड़ी में आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु से जुड़ी एक घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी वजह से उनके पूरे कुल का नाश हो गया था.

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श्री कृष्ण को 8 पत्नियां थी. उनमें से एक का नाम जांबवती था जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी. श्रीकृष्ण के इस पुत्र का नाम साम्ब था. एक समय देवर्षि नारद, ऋषि विश्वामित्र और ऋषि दुर्वशा जैसे कई महान ऋषि मुनि भगवान कृष्ण से मिलने उनकी नगरी द्वारका पहुंचे थे.  

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भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब काफी शरारती थे. वो एक स्त्री को रूप धारण कर उन सब ऋषि मुनियों के पास पहुंच गए और उनसे पूछा की उनके पेट में पल रहा बच्चा कोई लड़का होने वाला है या फिर कोई लड़की.  

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उन सब ऋषियों में से एक ऋषि ने श्री कृष्ण के पुत्र की इस शरारत को भांप लिया था. इस शरारत के लिए उन्होंने साम्ब को श्राप दे दिया. ऋषि से श्राप देते हुए उन्हें कहा कि वो एक लोहे के तीर को जन्म देंगे जिससे उनके पूरे कुल का नाश हो जायेगा.

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साम्ब ने इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए तांबे के तीर का चूर्ण बनाकर इसे प्रभास नदी में प्रवाहित कर दिया. नदी में मौजूद एक मछली ने इस चूर्ण को निगल लिया. इसके बाद द्वारका के लोग छल कपट से भर गए थे. उनमें एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना काम होने लगी थी.  

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इन सब के बीच श्री कृष्ण ध्यान में थे, तभी वहां एक बहेलिया आए जिसने उन्हें हिरण समझकर उनपर तीर चला दिया था. वो तीर भगवान श्री कृष्ण के पैरों के तालू में लगा था. इस घटना के बाद उन्होंने अपने शरीर को त्याग कर दिया था, जिसके बाद वो बैकुंठ वापस लौट गए.  

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भगवान श्री कृष्ण को जो तीर लगा था वो तीर उसी मछली से बना था जिसने प्रभास नदी में तांबे के तीर का चूर्ण निगला था. उसके बाद वो मछली धातु बन गई थी जिससे मछुआरे ने तीर बनाया था. इसी के साथ भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार का अंत हुआ था. इसके बाद उनकी द्वारका नगरी भी समुंद्र में विलीन हो गई थी.