क्या है जातीय जनगणना का सियासी पेच, क्यों चला आ रहा है 90 साल पुराना आंकड़ा?

नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की मांग ऐसे वक्त उठायी है जब बीजेपी और केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की गतिविधियां तेज हैं.  

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Aug 9, 2021, 02:40 PM IST
  • जानिए क्या है इसका सियासी महत्व
  • क्यों आखिर अहम है ये जनगणना
क्या है जातीय जनगणना का सियासी पेच, क्यों चला आ रहा है 90 साल पुराना आंकड़ा?

नई दिल्लीः जातीय जनगणना का सवाल एक बार फिर राजनीतिक गलियारे में घूमने लगा है. विपक्ष में शामिल कई दलों के साथ-साथ एनडीए खेमे से भी जाति आधारित जनगणना की मांग उठ रही है. ये सियासत की एक ऐसी नब्ज़ है जिसके बिना राजनीति चल नहीं सकती. फिर ऐसा क्या है कि देश में 90 साल पुरानी जातीय जनगणना ही चली आ रही है.

राजनीति करना सबको जाति के आधार पर ही है लेकिन इस जनगणना को कराने में हिचक भी हैं. इस बार फिर क्यों ये मांग जोर पकड़ रही है. क्या है केंद्र सरकार का इरादा ? क्या है इसमें पेंच ? आइए समझने की कोशिश करते हैं...    

जातीय जनगणना पर नीतीश का PM को खत लिखकर दबाव
नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना की मांग उठाकर बिहार के साथ-साथ देश में नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है. उन्होंने इसके लिए बाकायदा प्रधानमंत्री को खत लिखकर मिलने का समय मांगा है. इससे पहले जेडीयू के सांसदों ने जाति आधारित गणना की मांग को लेकर गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी , जेडीयू इस मामले में अपनी विरोधी आरजेडी के साथ है.

दरअसल, बिहार विधान मंडल से जाति आधारित जनगणना कराने को लेकर दो - दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया लेकिन केंद्र फिलहाल इसके पक्ष में नजर नहीं आ रहा. नीतीश कह रहे हैं ये समय की मांग है और केंद्र को इसमें देर नहीं करनी चाहिए.

RJD के साथ JDU क्यों मिला रही सुर  ?  
नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की मांग ऐसे वक्त उठायी है जब बीजेपी और केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की गतिविधियां तेज हैं. राम मंदिर,सीएए ,370 जैसे कई मसलों पर बीजेपी से अलग राय रखने के बावजूद नीतीश कुछ कर नहीं पाए. लेकिन जातीय जनगणना में बीजेपी पर प्रेशर बनाने का उन्हें बड़ा स्कोप नजर आ रहा है. भले ही इस जनगणना से पिछड़ों की वास्तविक स्थिति पता कर उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ने की बात की जा रही हो. 

लेकिन बिहार के राजनीतिक हालात को देखें तो जेडीयू को आरजेडी से पिछड़ने का डर सता रहा है क्योंकि पिछड़ों की सियासत करनेवाली आरजेडी इस मसले पर शुरू से मुखर है. नीतीश ने भले ही अति पिछड़ों के बीच पकड़ बनाने की कोशिश की लेकिन वहां भी बीजेपी की नजर है. पिछले 2 दशकों से सियासत में ओबीसी का दबदबा बढ़ा है. बिहार में ओबीसी के बीच आरजेडी का प्रभाव अच्छा खासा रहा है, नीतीश के लिए जातीय जनगणना की मांग उठाना राजनीतिक मजबूरी भी है.    

SP-BSP ने भी उठाया जातीय जनगणना का मुद्दा
बीजेपी को छोड़ कर धीरे धीरे जातीय राजनीति करने वाले सारे राजनीतिक दल साथ खड़े हो रहे हैं. 2022 से पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बीजेपी को घेरने के लिए जातीय जनगणना का कार्ड खेल दिया है. अखिलेश यादव ने संसद में इसकी मांग उठाते हुए कह दिया कि अगर बीजेपी जातियों की गिनती नहीं करती तो ये पिछड़ों की जिम्मेदारी है कि वो बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दे. वहीं मायावती भी इस मसले पर पीछे नहीं रहना चाहतीं. 

मायावती ने कहा कि ओबीसी समाज की अलग से जनगणना कराने की मांग बसपा शुरू से ही करती रही है. अभी भी बसपा की यही मांग है और इस मामले में केंद्र की सरकार अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो फिर बसपा इसका समर्थन जरूर करेगी .  

बिहार में उठी 'कर्नाटक मॉडल' की मांग  
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कह रहे हैं  कि अगर केंद्र सरकार जातिगत जनगणना नहीं कराती है तो बिहार सरकार कर्नाटक मॉडल की तर्ज पर अपने खर्चे पर यह जनगणना करवा सकती है.  इस पर जेडीयू आरजेडी के साथ है. दरअसल 2015 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ‘सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण’ करवाया था, जिसे सियासी गलियारे में जाति-जनगणना का नाम दिया गया.

  लेकिन सर्वेक्षण के परिणाम सार्वजनिक नहीं किए गए. यह सर्वेक्षण राज्य सरकार ने अपने स्तर पर करवाया था और इसके लिए 162 करोड़ रुपए खर्च किए थे . मगर सिद्धारमैया से लेकर कुमारस्वामी और येदीयूरप्पा तक की सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में ही रखा . 2023 में कर्नाटक चुनाव से पहले बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में बनी नई सरकार के सामने भी जल्दी ही यह मुद्दा आ सकता है .

बीजेपी क्यों नहीं करवाना चाहती जातीय जनगणना ?
ओबीसी कार्ड खेलने में बीजेपी पीछे नहीं है. हाल में ही केंद्र ने मेडिकल एजुकेशन में 10 फीसदी आर्थिक पिछड़ों के साथ-साथ 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी है, तो वहीं मोदी मंत्रिमंडल में भी सबसे ज्यादा मंत्री ओबीसी से ही हैं . लेकिन सरकार फिलहाल जातीय जनगणना कराने के पक्ष में नहीं है.

पिछले दिनों लोकसभा में एक सवाल पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि 2021 की जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए गणना कराया जाएगा, जातीय जनगणना नहीं . दरअसल बीजेपी की राजनीति हिंदुत्व के मुद्दे पर टिकी है. हिंदुत्व का मतलब पूरा हिंदू समाज है, अगर जाति के नाम पर वो विभाजित हो जाता है तो जाति की राजनीति करनेवाले दलों का प्रभाव बढ़ जाएगा और बीजेपी को नुकसान होगा .
 
2015 में संघ प्रमुख के बयान से मचा था बवाल  
कहते हैं दूध का जला छांछ भी फूक फूक कर पीता है. जातीय जनगणना के मसले पर संघ की स्थिति भी वही है संघ को भी बीजेपी के लिए एकजुट हिंदू समुदाय वाली स्थिति ही ज्यादा सूट करती है. 2015 में बिहार चुनाव के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा वाले बयान पर खूब सियासी बवाल मचा था संघ प्रमुख  के बयान पर बीजेपी को बार बार सफाई देनी पड़ी थी कि आरक्षण खत्म करने का उसका कोई इरादा नहीं है. बाद में मोहन भागवत को भी इसी स्टैंड का सपोर्ट करना पड़ा कि आरक्षण से छेड़छाड़ के पक्षधर नहीं है .

2011 में कांग्रेस भी जातीय आंकड़े जारी करने से पीछे हट गई
आज जिस तरह बीजेपी के सहयोगी RPI ,HAM और JDU जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं वही हालत 10 साल पहले कांग्रेस की थी जब UPA सरकार के दौरान साल 2011 में पवार, लालू और मुलायम ने इसके लिए दबाव डाला था और सरकार को जातीय जनगणना करवाना पड़ा था , लेकिन इस रिपोर्ट में कमियां बता कर जारी नहीं किया गया.

साल 2016 मोदी सरकार में जनगणना के आंकड़े प्रकाशित तो किए लेकिन जातिगत आधार पर डेटा जारी नहीं किया . दरअसल बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी कभी नहीं चाहती कि देश में जाति आधारित जनगणना हो, ऐसा हुआ तो क्षेत्रीय राजनीति करने वाले जाति आधारित दलों का प्रभुत्व और बढ़ जाएगा और केंद्रीय पार्टियों को इसका भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.

11 साल पहले BJP ने भी की थी जातीय जनगणना की मांग  
आज भले ही बीजेपी संसद में इस तरह के जातिगत जनगणना पर अपनी राय कुछ और रख रही हो, लेकिन 2011 की जनगणना से ठीक पहले 2010 में संसद में बीजेपी के नेता गोपीनाथ मुंडे ने कहा था, "अगर इस बार भी जनगणना में हम ओबीसी की जनगणना नहीं करेंगे, तो ओबीसी को सामाजिक न्याय देने के लिए और 10 साल लग जाएंगे.

हम उन पर अन्याय करेंगे. इतना ही नहीं, पिछली सरकार में जब राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे, उस वक़्त 2021 की जनगणना की तैयारियों का जायजा लेते समय 2018 में एक प्रेस विज्ञप्ति में सरकार ने माना था कि नई जनगणना में ओबीसी का डेटा भी एकत्रित किया जाएगा.

90 साल पहले आखिरी बार हुई थी जातीय जनगणना
देश में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी. उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे. तब देश आबादी 30 करोड़ के करीब थी  अब तक उसी आधार पर यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं. 1951 में जातीय जनगणना के प्रस्ताव को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि इससे देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है.

 आजाद भारत में 1951 से 2011 तक की हर जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े ही जारी किए गए. मंडल आयोग ने भी 1931 के आंकड़ों पर यही अनुमान लगाया कि ओबीसी आबादी 52% है. आज भी उसी आधार पर देश में आरक्षण की व्यवस्था  है. जिसके तहत ओबीसी को 27 फीसदी , अनुसूचित जाति को 15 फीसदी तो अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी आरक्षण मिलता है

2021 की जनगणना में देरी क्यों ?
देश में जनगणना का काम हर 10 साल में होता है, 2011 की जनगणना को दो चरणों में पूरा किया गया था. पहले चरण में अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के बीच देशभर में घरों की गिनती की गई थी. वहीं, दूसरे चरण में 09 फरवरी, 2011 से 28 फरवरी, 2011 तक चली . इसी तर्ज पर 2020 में ही जनगणना का काम शुरू किया जाना था जिसे कोविड महामारी की वजह से स्थगित कर दिया गया .

2021 का आधा साल से ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन अभी तक देश में जनगणना का काम धरातल पर शुरू नहीं हो सका है . ये जब भी शुरू होगा सरकार साफ कर चुकी है इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जातिगत जनसंख्या की गणना नहीं होगी .

10 साल पहले भी जातीय जनगणना को लेकर राजनीतिक बहस तेज हुई थी आज 10 साल बाद भी वही एपीसोड दोहराया जा रहा है अब देखना है कि इस बार कहानी आगे बढ़ती है या पुराने मोड़ पर ही अगले 10 साल के लिए TO BE CONTINUED ...पर खत्म होती है .   

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.  

ट्रेंडिंग न्यूज़