नई दिल्लीः Surgical Strike: वो साल 2016 के सितंबर महीने के आखिरी दिन थे. कश्मीर में ठंड बढ़ने लगी थी, पर पूरे देश में गुस्से का उबाल था. हर किसी की मुट्ठियां भिंची हुई थीं. हर कोई बदला चाहता था. बात ही कुछ ऐसी थी. 18 सितंबर को आतंकियों ने उड़ी में आर्मी के 12वें ब्रिगेड हेडक्वॉर्टर में कायराना हमला जो कर दिया था. इस हमले में भारत ने अपने 18 जांबाजों को खो दिया था.
गम और गुस्से के इस दौर में हर भारतवासी के मन को सुकून तब मिलता है, जब खबर आती है कि भारत ने 38 आतंकियों को मारकर उड़ी हमले का बदला ले लिया है. भारत के कमांडो पीओके में घुसकर आतंकी ठिकानों को तबाह करते हैं और सुरक्षित लौट आते हैं. पर यह इतना भी आसान नहीं था. इसके पीछे सुनियोजित योजना बनी थी, ताकि आतंकियों को सबक सिखाया जा सके. आज भारतीय सेना के शौर्य को ऊंचा करने वाली सर्जिकल स्ट्राइक की घटना को 5 साल पूरे हो रहे हैं.
150 कमांडो ने पूरा किया ऑपरेशन
उड़ी हमले के बाद सरकार और सेना के बीच बातचीत होती है. तय होता है कि 28-29 सितंबर की दरम्यानी रात में उड़ी हमले का बदला लिया जाएगा. 28 सितंबर की आधी रात को MI 17 हेलीकॉप्टर्स में 150 कमांडो LOC के पास उतरते हैं. यहां से 4 और 9 पैरा के 25 कमांडो पीओके में घुसते हैं.
घातक हथियारों से लैस थे जांबाज
चूंकि पाकिस्तानी सैनिकों का भी खतरा रहता है इसलिए कमांडो रेंगकर 3 किलोमीटर का फासला तय करते हैं. Tavor 21 और AK-47 असॉल्ट राइफल, ग्रेनेड, स्मोक ग्रेनेड, अंडर बैरल ग्रेनेट लॉन्चर और नाइट विजन डिवाइसेज से लैस भारतीय जवान आतंकियों पर ताबड़तोड़ हमला करते हैं.
यहां वे भीमबेर, हॉटस्प्रिंग, केल और लीपा सेक्टर में छिपे आतंकियों के लॉन्चिंग पैड्स को तबाह कर देते हैं. करीब 4 घंटे में हमारे कमांडो 38 आतंकियों और 2 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारते हैं.
सबसे मुश्किल थी वापसी
सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद सबसे मुश्किल टास्क वापसी का था. चूंकि पाकिस्तानी सेना को पीओके में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी का पता चल गया था. ऐसे में कमांडो ने वापसी के लिए दूसरा और थोड़ा लंबा रास्ता चुना. दुश्मन सेना की मशीन गन से चल रहीं गोलियां उनके कान के पास से गुजर रही थीं. बीच में कुछ हिस्सा ऐसा भी आया, जहां उनके आड़ लेने के लिए कोई जगह नहीं थी. तब वे रेंगकर पाक सैनिकों से बचते हुए सुबह करीब साढ़े चार बजे भारत की सीमा में पहुंचत हैं.
टैंगो को सीओ लगाते हैं गले
सभी कमांडो को ऑपरेशन रूम में लाया जाता है. बताते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक की कमान संभालने वाले मेजर माइक टैंगो को कमांडिंग ऑफिसर गले से लगा लेते हैं. एक वेटर टैंगो के लिए ब्लेक लेबल व्हिस्की के गिलास लेकर आता है तो कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कहते हैं, इन्हें वापस ले जाओ और बोतल लेकर आओ. तुम्हें पता नहीं कि ये लोग गिलास खा जाते हैं.
दरअसल स्पेशल फोर्स के कमांडोज को गिलास खाने की ट्रेनिंग दी जाती है. वेटर ब्लैक लेबल बोतल लाता है. जनरल दुआ तब तक टैंगो के मुंह में व्हिस्की डालते हैं, जब तक वह बस नहीं कह देते. इसके बाद टैंगो भी जनरल दुआ के मुंह में व्हिस्की डालते हैं.
स्पेशल फोर्स के पास थी कमान
भारतीय सेना में स्पेशल फोर्स के जवान सबसे बहादुर माने जाते हैं. बहादुरी के साथ-साथ उनका दिमाग भी काफी तेज चलता है. कहा जाता है जिंदगी और मौत का सवाल हो तो इनके फैसले लेने की क्षमता और बढ़ जाती है. इसलिए स्पेशल फोर्स के जवानों की मदद आक्रमण के लिए ली जाती है.
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पीएम मोदी को दी जा रही थी पल-पल की खबर
भले ही कमांडोज ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया हो, पर सरकार और सेना के टॉप लीडर्स की इस पर पैनी नजर थी.
तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, एनएसए अजित डोभाल और सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ऑपरेशन की निगरानी कर रहे थे. वे पीएम मोदी को पल-पल की अपडेट दे रहे थे.
भारत ने किया सर्जिकल स्ट्राइक का ऐलान
सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता के बाद भारत बाकायदा पूरी दुनिया को इस ऑपरेशन के बारे में बताता है. 29 सितंबर को मिलिट्री ऑपरेशन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह संवाददाता सम्मेलन के जरिए इसकी जानकारी देते हैं. यह पहली बार था, जब भारतीय सेना ने पहली बार सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक करने की बात आधिकारिक रूप से कही थी.
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