नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान आदिवासियों की हत्या की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की मांग करने वाली मणिपुर ट्राइबल फोरम की याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह राहत शिविरों, विस्थापितों के पुनर्वास और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर ध्यान दे.
दो दिनों में मणिपुर में नहीं हुई है कोई हिंसा
शीर्ष अदालत ने केंद्र की दलीलों पर ध्यान दिया कि पिछले दो दिनों में मणिपुर में कोई हिंसा नहीं हुई है और स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है. केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य सरकार स्थिति ठीक करने के लिए कदम उठा रही है. कल, कर्फ्यू में ढील दी गई और कोई अप्रिय घटना नहीं हुई और आज भी कर्फ्यू में ढील दी गई और कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.
मेहता ने कहा- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 52 कंपनियां और सेना/असम राइफल्स के 105 कॉलम मणिपुर में तैनात किए गए हैं और अशांत क्षेत्रों में फ्लैग मार्च किया गया है. एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी को मणिपुर सरकार द्वारा सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया और एक वरिष्ठ अधिकारी को केंद्र सरकार से प्रत्यावर्तित किया गया और मुख्य सचिव के रूप में पदभार ग्रहण कराया गया.
उन्होंने पीठ से कहा कि राज्य में दो दिनों से कोई हिंसा नहीं हुई है और स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है. पूरे राज्य में 3-4 घंटे के लिए कर्फ्यू लगाया गया है, शांति बैठकें की जा रही हैं और लगातार चौकसी बरती जा रही है. पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला भी शामिल हैं.
केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा ये सवाल
मुख्य न्यायाधीश ने मेहता से पूछा- आपके पास वर्तमान में कितने राहत शिविर हैं, कितने लोग राहत शिविरों में हैं..राहत शिविरों में खाने-पीने की किस तरह की व्यवस्था है..क्या ये आर्मी रिलीफ कैंप हैं, ये कैंप कैसे चला रहे हैं? विस्थापित हुए विस्थापितों का क्या? क्या सरकार धीरे-धीरे इन लोगों को उनके घर वापस लाने की कोशिश कर रही है? हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये लोग वापस जा सकें, तीसरा, धार्मिक पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए भी कुछ कदम उठाए जाने चाहिए.
मेहता ने कहा कि वह अदालत द्वारा मांगी गई सभी जानकारियां हासिल कर लेंगे. मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता सत्य मित्रा की सहायता से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि अदालत को रविवार को उनके द्वारा दायर नवीनतम हलफनामे को देखना चाहिए. मेहता की इस दलील का विरोध करते हुए कि पिछले दो दिनों से सब कुछ ठीक है, उन्होंने कहा, देखिए, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को यह (हिंसा) कैसे बढ़ गई. हत्याएं हुईं, गांवों को जलाया गया.
गोंजाल्विस ने कहा कि वह आदिवासियों को उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों से निकालने की मांग करते हैं जहां वह घिरे हुए हैं और उन पर हमले की संभावना है. मेहता ने हस्तक्षेप किया और तर्क दिया कि बयानों का असर पड़ेगा, और हमें ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए जो प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है.
केंद्र को एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के समक्ष मूल याचिकाकर्ताओं के लिए उपस्थित हो रहे हैं और हां, जिन्हें आरक्षण की आवश्यकता है. शीर्ष अदालत ने मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश पर सवाल उठाया, जिसमें राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति की सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने के लिए केंद्र को सिफारिश करने का निर्देश दिया गया था. मुख्य न्यायाधीश ने हेगड़े से कहा- आपने उच्च न्यायालय को कभी नहीं बताया कि यह शक्ति उच्च न्यायालय के पास कभी नहीं है. यह एक राष्ट्रपति की शक्ति है. हाई कोर्ट ने कहा था कि आप भारत सरकार को सिफारिश भेजिए.
पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर ने कहा है कि राज्य द्वारा एक सक्षम फोरम के समक्ष कार्रवाई की जा रही है, इसलिए हम इसमें आगे नहीं जाएंगे. आपको उस फोरम को खुद को सही करने का अवसर देना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने गोंजाल्विस से कहा- हमने अपनी चिंताओं को सॉलिसिटर के सामने स्पष्ट कर दिया है. अभी, हमारा तात्कालिक लक्ष्य सुरक्षा और स्थिरीकरण है, इसलिए हम मानवीय समस्या से चिंतित हैं, हम जीवन के नुकसान, संपत्ति के नुकसान के बारे में चिंतित हैं और सरकार कदम उठा रही है. हमें अपनी चिंता व्यक्त करनी चाहिए और कार्रवाई करने के लिए इसे सरकार पर छोड़ देना चाहिए.
दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने केंद्र को मामले में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की आगे की सुनवाई 17 मई को निर्धारित की. मित्रा के अनुसार, गोंजाल्विस भाजपा विधायक और मणिपुर विधानसभा की हिल एरिया कमेटी (एचएसी) के अध्यक्ष डिंगांगलुंग गंगमेई के लिए भी पेश हुए, जो उच्च न्यायालय के 27 मार्च के निर्देश के खिलाफ शीर्ष अदालत में गए, जिसमें मैतेई/मेइतेई समुदाय को राष्ट्रपति सूची में अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने के लिए कहा गया था.
आदिवासियों की हत्या की एसआईटी द्वारा जांच के लिए मणिपुर ट्राइबल फोरम द्वारा एक अलग याचिका दायर की गई. घटनाक्रम मणिपुर में बड़े पैमाने पर हिंसा के बीच आया है, जिससे 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई है और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं. गंगमेई की याचिका में तर्क दिया गया है कि मैतेई/मेइतेई आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक रूप से उन्नत और प्रभावशाली हैं और उनके और आदिवासियों के बीच लंबे समय से तनाव चल रहा है.
(इनपुट- आईएएनएस)
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