नई दिल्ली: Rajasthan New CM: भाजपा ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत दर्ज की है. तीनों राज्यों में 10 दिसंबर को मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हो सकता है. पार्टी हाईकमान ने तीनों राज्यों के लिए पर्यवेक्षक भी नियुक्त कर दिए हैं. राजस्थान में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सरोज पांडे और विनोद तावड़े को भेजा जा रहा है. 10 दिसंबर को ये तीनों विधायक दल की बैठक में शामिल होंगे. इसी बीच सूबे के हलकों में एक पुरानी कहानी याद की जाने लगी है. कहानी के मुख्य किरदार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) हैं.
राजे ने नहीं उठाया राजनाथ का फोन
यह बात साल 2008 की है. राजस्थान में विधानसभा होने थे. चुनाव से पहले पार्टी हाईकमान प्रदेश अध्यक्ष बदलना चाहता था. उस समय राजनाथ सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे. वो चाहते थे कि राजस्थान में ओमप्रकाश माथुर पार्टी की कमान संभालें. इसके लिए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को फोन किया. लेकिन वसुंधरा को पहले ही भनक लग चुकी थी कि ओपी को बीजेपी स्टेट प्रेसिडेंट बनाया जा रहा है. नतीजतन, वसुंधरा ने राजनाथ का फोन ही नहीं उठाया. इस पर राजनाथ नाराज हुए और वसुंधरा की बिना सहमति के ही माथुर के नाम का ऐलान कर दिया.
'साजिश और दबाव के आगे नहीं झुकुंगी'
प्रदेश में चुनाव हुए, भाजपा को 78 सीटें आईं. जबकि कांग्रेस ने 96 सीटों पर जीत दर्ज की. अशोक गहलोत ने निर्दलियों के सहारे सरकार बना ली. वसुंधरा ने हार की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि पार्टी संगठन ने 30 टिकटें बांटी, इनमें से 28 पर हार हुई. जिम्मेदारी पार्टी लेगी, मैं नहीं. राजनाथ सिंह वसुंधरा के इस रवैये से नाराज हुए. साल 2009 में लोकसभा के चुनाव हुए. पार्टी को राजस्थान में 25 में से 4 सीटें मिलीं. आरोप लगा कि वसुंधरा ने सिर्फ अपने बेटे की झालावाड सीट पर फोकस किया, बाकी जगह नहीं. पार्टी के कहे अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष ओपी माथुर और संगठन मंत्री प्रकाश चंद ने इस्तीफा दे दिया. वसुंधरा पर भी नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा देने का दबाव बना. लेकिन राजे ने साफ़ कह दिया कि वो साज़िश और दबाव के आगे नहीं झुकेगी.
पार्टी में कर दी बगावत
राजनाथ नहीं माने तो वसुंधरा ने ब्रह्मास्त्र निकाला. 15 अगस्त, 2009 स्तंवत्रता दिवस पर वसुंधरा अशोक रोड स्थित भाजपा कार्यलय पर 57 विधायकों के साथ पहुंच गईं.
वसुंधरा ने कहा कि आलाकमान ने मुझ पर दबाव डाला तो मैं इन सबके साथ पार्टी छोड़ दूंगी. राजनाथ को कदम पीछे खींचने पड़े. 23 अक्टूबर को खबर आई कि वसुंधरा ने इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, ये बात और है कि इस्तीफा तब के विधानसभा अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह को मिला ही नहीं. इस तरह वसुंधरा ने राजनाथ के घुटने टिका दिए. हालांकि, अब दोनों के बीच के रिश्ते काफी अच्छे हैं. कहा जाता है कि केंद्र में गडकरी और राजनाथ ही वसुंधरा के पैरोकार बचे हैं.
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