नई दिल्लीः देश के 15वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान हो चुका है. सर्वोच्च पद पर बैठे अब तक कई महामहिमों के कई राजनीतिक और विवादित किस्से आपने सुने होंगे. राष्ट्रपति ऐसे भी हुए, जिन्होंने सरकार के फैसलों को पलट कर रख दिया और कई महामहिम ऐसे भी हुए जिन्हें सरकार का रबर स्टांप कहा गया. लेकिन, इन तमाम नामों में एक शख्सियत ऐसी भी हैं, जिनका जिक्र हर उस बार जरूर होता है, जब-जब बात देश के तमाम राष्ट्रपतियों की कर रहे होते हैं. ये नाम है केआर नारायणन का. वो इस देश के 10वें और पहले दलित राष्ट्रपति थे.
पढ़ाई के लिए टाटा को लेटर लिखा और जिंदगी बदल गई
केआर नारायणन का जन्म केरल के एक दलित परिवार में हुआ था. नारायणन पढ़ने के बहुत शौकीन थे. हमेशा टॉपर रहे. दिल्ली आए तो करीब दो साल तक पत्रकारिता भी की. इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का उस रोज इंटरव्यू किया जब वो मौन व्रत पर थे. स्लेट पर लिखकर उन्होंने अपने सवाल पूछे और उसके जवाब भी ऐसे ही मिले. लेकिन, पत्रकारिता की दुनिया नारायणन को जमी नहीं. उन्होंने विदेश में पढ़ाई के लिए टाटा को लेटर लिखा. टाटा ने उनकी बात मान ली और नारायणन विदेश पढ़ने चले गए.
नेहरू के नाम का खत लेकर विदेश से लौटे नारायणन
केआर नाराणयन जब लंदन से लौटे तो पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें भारतीय विदेश सेवा के लिए नियुक्त कर दिया. दरअसल, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में हेराल्ड लॉस्की, जो नारायणन के गुरू थे, उन्होंने एक लेटर लिखा था जो नेहरू के नाम था. इस लेटर में लॉस्की ने नेहरू से सिफारिश की थी कि वो नारायणन को कोई अच्छी नौकरी दें, क्योंकि लॉस्की नारायणन की समझ से काफी प्रभावित थे. नेहरू ने नारायणन को विदेश सेवा में नौकरी दे दी.
लव मैरिज, जिसके लिए कानून बदल गया
भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने के बाद नारायणन को पहली नियुक्ति में बर्मा (म्यांमार) भेजा गया. यहां उनकी मुलाकात स्थानीय लड़की मा टिंट टिंट से हुई. लेकिन उस समय सिविल सर्विस के नियम के अनुसार कोई भारतीय डिप्लोमेट विदेशी महिला से शादी नहीं कर सकता था. ऐसे में जवाहर लाल नेहरू ने नारायणन को विदेशी महिला से शादी करने की स्पेशल परमिशन दी. इसके बाद नारायणन ने बर्मा की नागरिक मा टिंट टिंट से शादी कर ली. शादी के बाद वह उषा नारायणन बन गईं.
जब नारायणन ने अमेरिकी राष्ट्रपति को 'धमकाया'
विदेश सेवा से रिटायर होने के बाद नारायणन ने जब राजनीति में एंट्री की तो कई बार मंत्री बने. देश के उपराष्ट्रपति भी बने. फिर 1997 में केआर नारायणन को कांग्रेस, संयुक्त मोर्चा की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया. उस समय बीजेपी ने भी नारायणन का समर्थन किया था. नारायणन की जबरदस्त जीत हुई, लेकिन बतौर राष्ट्रपति नारायणन के काम करने का तरीका बिल्कुल अलग था. उन्होंने दो बार कैबिनेट की तरफ से चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश को लौटा दिया था.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत यात्रा पर आए थे. इस दौरान राष्ट्रपति भवन में रात्रि भोज के दौरान किसी मुद्दे पर बात करते हुए केआर नारायणन ने अमेरिका को धमकी भरे लहजे में जवाब देते हुए कहा था कि भले ही दुनिया अब एक हो रही हो, लेकिन हमें किसी बॉस की जरूरत नहीं है. साल 2005 में नारायणन का देहांत हो गया.
यह भी पढ़िएः LuLu मॉल विवाद: यूसुफ अली को बड़े ईसाई धर्म गुरु ने क्यों दिया था 'कमांडर' का खिताब?
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.