UNSC में पीएम मोदी की अध्यक्षता से किसे लगी मिर्ची, जानिए भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर क्या है अड़चन?

परिषद में शामिल हर सदस्य देश को अल्फाबेटिकल ऑर्डर के नियम से अध्यक्षता का मौका मिलता है. भारत ने पहली बार जून 1950 में UN की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की थी.

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Aug 13, 2021, 09:18 AM IST
  • जानिए क्या है इसकी अहमियत
  • पाकिस्तान का क्या है रोल
UNSC में पीएम मोदी की अध्यक्षता से किसे लगी मिर्ची, जानिए भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर क्या है अड़चन?

नई दिल्लीः भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा करनेवाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए . लेकिन हमें यहां समझना होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अध्यक्षता करना और उसकी स्थायी सदस्यता पाने में अंतर है.

आखिर क्यों भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं बन पाया ? किन देशों को भारत से आपत्ति है ? UNSC में भारत की दावेदारी कितनी मज़बूत है ? आइए समझते हैं

देश के PM ने पहली बार की UNSC की अध्यक्षता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता कर इतिहास रचा . पीएम मोदी UNSC की अध्यक्षता करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए . पीएम ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए UNSC की उच्चस्तरीय बैठक में आतंकी घटना और समुद्रीय सुरक्षा पर जोर दिया.

75 सालों में ये 8 वां मौका है जब भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का सदस्य है इससे पहले 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, और 1991-92 फिर 2011-12 में UNSC का सदस्य रह चुका है.

परिषद में शामिल हर सदस्य देश को अल्फाबेटिकल ऑर्डर के नियम से अध्यक्षता का मौका मिलता है. भारत ने पहली बार जून 1950 में UN की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की थी. 1950 में भारतीय राजदूत सर बेनेगल नरसिंग राव ने भारत की तरफ से परिषद की अध्यक्षता की थी. लेकिन ये पहली बार है जब भारत की तरफ से प्रधानमंत्री ने सुरक्षा परिषद की बैठक में अध्यक्षता की .  

भारत की अध्यक्षता से पाकिस्तान को लगी मिर्ची
सुरक्षा परिषद के एक अस्थायी सदस्य के रूप में भारत का 2 साल का कार्यकाल 1 जनवरी, 2021 को शुरू हो चुका है, और बतौर अध्यक्ष भारत ने  1 अगस्त से कार्यभार सम्भाल लिया . भारत को UNSC की अध्यक्षता तब मिली है, जब अफग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो रही है और तालिबान मज़बूत हो रहा है.

इसके साथ ही 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म हुए 2 साल पूरे हो चुके हैं. पाकिस्तान के लिए दोनों मुद्दे अहम हैं ऐसे में भारत के पास UNSC की अध्यक्षता का जाना, उसे रास नहीं आ रहा .

 हाल ही में भारत की अध्यक्षता में अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा हुई, जिसमें पाकिस्तान को न्योता नहीं दिया गया जिससे उसकी खीज और बढ़ गई है . पाकिस्तान ने कहा कि अफगानिस्तान का सबसे करीबी पड़ोसी होने के बावजूद युद्धग्रस्त देश की स्थिति पर UNSC की बैठक में उसे आमंत्रित नहीं किया गया.

UNSC के 5 स्थायी सदस्यों में से चीन हमेशा से उसके साथ रहा है. लेकिन फिलहाल भारत के पास अध्यक्षता होने का मतलब है कि पाकिस्तान कश्मीर पर UNSC में बैठक बुलाने और अपना झूठा प्रोपेगेंडा चलाने में कामयाब नहीं हो पाएगा , क्योंकि भारत ने अपने एजेंडे में आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई को प्रमुखता देने की बात पर जोर दिया है .

भारत की स्थायी दावेदारी पर चीन का अड़ंगा
UNSC में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस 5 सदस्य हैं . भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का चारों देश समर्थन करते रहे हैं . लेकिन चीन को भारत की परमानेंट मेंबरशिप से दिक्कत है वो इसका समर्थन नहीं करता . दरअसल चीन नहीं चाहता कि एशिया में उसके मुकाबले कोई दूसरी महाशक्ति खड़ी हो .

इसलिए बाकी 4 देशों के समर्थन के बावजूद वो कभी भारत का समर्थन नहीं करेगा . यहां तक कि उसे IGN से भी दिक्कत है IGN (Intergovernmental Negotiations) संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का ग्रुप है.जो संयुक्त राष्ट्र महासभा में किसी प्रस्ताव, बदलाव को लेकर सुझाव देता है.लेकिन चीन इस ग्रुप के किसी भी सुझावों को वीटो के जरिए खारिज कर देता है. भारत ने IGN ग्रुप को लेकर चीन के इस अड़ंगे पर फटकार भी लगा चुका है .  

स्थायी सदस्यता पर अमेरिका ने बदला रुख ?
अमेरिका UNSC के विस्तार और भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता रहा है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन किया है . हाल में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने भी कहा कि हम UNSC में कुछ विस्तार के समर्थन में हैं और स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने के पक्ष में भी हैं .

लेकिन इसके वीटो के अधिकार का विस्तार नहीं होना चाहिए . बाइडन सरकार का ये स्टैंड पिछली अमेरिकी सरकारों के स्टैंड से अलग है . इससे एक बात तो साफ है कि भले ही सुपर पावर अमेरिका भारत के UNSC में परमानेंट सीट पर साथ हो लेकिन वो भी नहीं चाहता वीटो पावर का बंटवारा हो.

वीटो UNSC के 5 सदस्य देशों को मिला वो विशेषाधिकार है जिसके जरिए इनमें से कोई भी सदस्य किसी फैसले पर असहमति जताकर उसे रोक सकता है .  

स्थायी सदस्यता की मांग पर भारत आक्रामक
भारत UNSC में पिछले काफ़ी वक़्त से अपनी पक्की सीट की दावेदारी की मांग रखता रहा है लेकिन हालिया दिनों में सुरक्षा परिषद के विस्तार को लेकर भारत का रुख आक्रामक दिखाई दे रहा है .भारत का कहना है कि अगर हम UNSC के सदस्य नहीं बनते तो UN की साख पर सवाल उठता  है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में UNSC की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को पुरजोर तरीके से उठाया . पीएम ने सीधे शब्दों में कहा कि 'आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के फैसले लेने वाली संस्थाओं से अलग रखा जाएगा .

सभी बदल जाएं और संयुक्त राष्ट्र नहीं बदलेगा की नीति अब नहीं चलेगी .' दुनिया की 18 फीसदी आबादी के साथ भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है भारत ने UN में हमेशा विश्व कल्याण को प्राथमिकता दी है . लगभग 50 पीसकीपिंग मिशन में ना सिर्फ अपने जांबाज सैनिक भेजे बल्कि शांति की स्थापना में सबसे ज्यादा अपने वीर सैनिकों को खोया . आज भारत अपने योगदान को देखते हुए UN में अपनी व्यापक भूमिका देखना चाहता है . भारत को स्थायी सदस्यता मिलने से सुरक्षा परिषद की गरिमा बढ़ेगी .

स्थायी सदस्यता के दावेदारों में भारत अकेला नहीं

UNSC में स्थायी सदस्यता की दावेदारी में भारत अकेला नहीं है जी-4 ग्रुप  के बाकी तीनों सदस्य देशों - जर्मनी, ब्राजील और जापान - भी स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं अफ्रीकन देशों का समूह भी UNSC में विस्तार चाहता है, जिसका भारत भी समर्थन करता है. लेकिन चीन की वजह से UNSC के स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं की जा सकी है.

बीते सालों में देखा गया है कि पाकिस्तान ने भारत की दावेदारी का, दक्षिण कोरिया ने जापान की, इटली ने जर्मनी की और अर्जेंटीना ने ब्राजील की दावेदारी का विरोध किया है. चीन भारत और जापान का विरोध करता है तो अमेरिका भारत और जापान की दावेदारी का समर्थन करता है.

क्यों जरूरी है सुरक्षा परिषद का विस्तार ?

संयुक्त राष्ट्र के गठन के वक्त से अब तक इसके सदस्य देशों की संख्या तो बढ़ती गई लेकिन स्थायी सदस्यों की संख्या में बदलाव नहीं हुआ . UN के  बजट में जापान दूसरा सबसे बड़ा योगदान देने वाला देश है, जबकि जर्मनी तीसरा . लैटिन अमेरिका में ब्राजील क्षेत्रफल,आबादी, अर्थव्यवस्था के मामले में भी सबसे बड़ा देश है बावजूद इसके ये स्थायी सदस्य नहीं है UNSC का 75 फीसदी काम अफ्रीका पर केंद्रित है, फिर भी इसमें अफ्रीका का  प्रतिनिधित्व नहीं है .

भारत लगातार इसके विस्तार और सुधार की मांग करता रहा है लेकिन कुछ देशों के अडंगों की वजह से मामला अटक जाता है UN में भारत के परमानेंट रेप्रेजे़ंटेटिव टी एस तिरुमूर्ति ने एक कड़ी टिप्पणी करते हुए ये तक कह दिया कि 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद "एक ख़राब हो चुका अंग" बन गया है.'

चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने के तौर पर जिस तरह से WHO समेत दूसरी संस्थाओं का शोषण कर रहा है, उसमें भारत को नजरअंदाज करना ख़ुद UN की साख पर सवाल है.
 
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वीटो के अडंगे को दरकिनार कर UNSC में काबिज 5 महाशक्तियां जब तक खुले मन से इसका विस्तार नहीं चाहेंगी तब तक भारत समेत बाकी दावेदार देशों को परमानेंट सीट मिलना आसान नहीं है .    

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