मुस्लिम व्यापारी ने गीता लिखने के लिए सीखी संस्कृत, फिर गंगा जल की मदद से कपड़े पर ऐसे उकेर दिया धार्मिक ग्रंथ

मुस्लिम व्यापारी ने गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल पेश की है. उन्होंने भगवद गीता लिखने के लिए संस्कृत सीखी. फिर उन्होंने एक सफेद सूती कपड़े पर इस धार्मिक ग्रंथ को लिखा. वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित मशहूर हस्तियों को अपनी कलात्मक कृतियों का तोहफा देना चाहते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 16, 2023, 12:44 PM IST
  • गंगा की मिट्टी और पानी की मदद से लिखी
  • कुरान को भी कपड़े पर लिख चुके हैं इरशाद
मुस्लिम व्यापारी ने गीता लिखने के लिए सीखी संस्कृत, फिर गंगा जल की मदद से कपड़े पर ऐसे उकेर दिया धार्मिक ग्रंथ

नई दिल्लीः मुस्लिम व्यापारी ने गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल पेश की है. उन्होंने भगवद गीता लिखने के लिए संस्कृत सीखी. फिर उन्होंने एक सफेद सूती कपड़े पर इस धार्मिक ग्रंथ को लिखा. वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित मशहूर हस्तियों को अपनी कलात्मक कृतियों का तोहफा देना चाहते हैं.

गंगा की मिट्टी और पानी की मदद से लिखी
दरअसल, वाराणसी के एक मुस्लिम व्यापारी ने सफेद सूती कपड़े की बड़ी चादर पर गंगा की मिट्टी और पानी का इस्तेमाल कर सुलेख में श्रीमद भगवद् गीता लिखी है. साड़ी व्यवसायी हाजी इरशाद अली (53) ने सूती कपड़े पर पवित्र कुरान, हनुमान चालीसा और अन्य धार्मिक ग्रंथों को भी इसी शैली में लिखा है.

कुरान को भी कपड़े पर लिख चुके हैं इरशाद
इरशाद ने कहा, जब मैं 14 साल का था, तब मैंने शव को दफनाने से पहले कफन पर डालने के लिए आधे मीटर के कपड़े के टुकड़े पर शाहदतेन लिखना शुरू किया था. शाहदतेन का शाब्दिक अर्थ है विश्वास की घोषणा. लिखने का जुनून और बढ़ गया, और मैंने पवित्र कुरान को कपड़े पर लिखने का फैसला किया. 

उन्होंने कहा कि गंगा की मिट्टी, आब-ए-जमजम (जमजम पानी), जाफरान और गोंद से बनी स्याही से कुरान के सभी 30 पैराग्राफ को पूरा करने में लगभग छह साल लग गए. इस भारी-भरकम किताब की बाइडिंग के लिए मशहूर बनारसी सिल्क ब्रोकेड का इस्तेमाल किया गया है.

व्यवसायी ने इस तरह तैयार की स्याही
श्रीमद्भगवद् गीता को उसी शैली और आकार में लिखने के लिए उन्होंने गंगा जल के साथ गंगा मिट्टी और गोंद से स्याही तैयार की. उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को समझने के लिए संस्कृत सीखी.

स्थानीय पुजारी की मदद से सीखी संस्कृत
उन्होंने कहा, मैंने एक संस्कृत अनुवाद पुस्तक खरीदी और भाषा सीखने के लिए स्थानीय पुजारी की मदद ली. उन्होंने सूती कपड़े के टुकड़ों पर विष्णु शस्त्रनाम, हनुमान चालीसा और राष्ट्रगान भी लिखा है.

लेखन के काम में पूरा परिवार करता है मदद
दिलचस्प बात यह है कि उनका पूरा परिवार लेखन के इस जुनून से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि इस काम में पत्नी, दो बेटियों और दो बेटों समेत परिवार के सभी सदस्य उनका साथ देते हैं.

कपड़े की चादरें उनकी पत्नी और बेटियों तैयार करती हैं, जबकि स्याही उनके बेटे तैयार करते हैं.

(इनपुटः आईएएनएस)

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