नई दिल्ली. मणिपुर हाईकोर्ट ने 27 मार्च के उस फैसले बदल दिया है जिसे राज्य में जातीय हिंसा भड़कने का कारण बताया गया था. कोर्ट ने 27 मार्च के फैसले के उस पैराग्राफ को डिलीट कर दिया है जिसमें राज्य सरकार से मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति दर्जे की अनुशंसा करने का निर्देश दिया गया था. अब कोर्ट ने इस निर्देश को हटा दिया है. बता दें कि मणिपुर में बीते मई महीने में जातीय हिंसा ने बेहद आक्रामक रूप ले लिया था.
कोर्ट के फैसले का राज्य के कुकी समुदाय ने विरोध किया था. राज्य में हुई जातीय हिंसा में अब तक 200 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है. संसद सत्र के दौरान भी मणिपुर हिंसा बड़ा मुद्दा बना था और विपक्ष ने मोदी सरकार को जमकर घेरा था. कोर्ट ने कहा कि यह पैरा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा इस मामले में रखे गए रुख के विपरीत है. जस्टिस गोलमेई गैफुलशिलु की एकल एक पीठ ने बुधवार को एक समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान उक्त अंश को हटा दिया. पिछले साल के निर्णय में राज्य सरकार को मेइती समुदाय को एसटी सूची में डालने पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश देने वाले विवादित पैराग्राफ को हटाने का अनुरोध किया गया था.
तब फैसले के पैरा में कहा गया था कि राज्य सरकार आदेश प्राप्त होने की तारीख से ‘मीतेई/मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के अनुरोध पर शीघ्रता से यह संभव हो तो चार सप्ताह की अवधि के भीतर विचार करेगी. अब जस्टिस गाइफुलशिलु ने फैसले में अनुसूचित जनजाति सूची में संशोधन के लिए भारत सरकार की निर्धारित प्रक्रिया की ओर इशारा करते हुए उक्त निर्देश को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया.
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