नई दिल्लीः जनता के ठुकराए नेताओं को मरे हुए किसान आंदोलन का मुद्दा मुबारक हो, क्योंकि एक बात शीशे की तरह साफ हो गई है कि अब न तो किसान आंदोलन कोई मुद्दा रह गया है और न ही जनता के ठुकराए नेताओं के पास मरे हुए किसान आंदोलन के सिवा दूसरा कोई मुद्दा ही रह गया है. यही वजह है कि प्रशासन के आदेश पर गाजीपुर खाली करने से इंकार कर चुके किसान नेता राकेश टिकैत का मंच अब दगे हुए कारतूस सरीखे सियासतदानों के लिए नेतागिरी चमकाने का नया अड्डा बन गया है.
2019 के लोकसभा चुनाव में बाप की विरासत वाली बागपत की सीट बीजेपी के सत्यपाल सिंह के हाथों गंवा चुके आएलडी के जयंत चौधरी गाजीपुर पहुंचे और जार-जार आंसू बहा रहे राकेश टिकैत के ढह रहे हौसले को ढांढस के जरिए बचाने की बिंदास कोशिश की. सवाल तो बनता है चौधरी साहब से क्या सियासी फायदे के लिए यहां आए हैं. इस सवाल के जवाब में उन्होंने तपाक से कहा-'किसानों का फायदा तो पूरा देश ले रहा है.'
मिट्टी-पलीद हई तो बहने लगे अश्क
चलिए अच्छा है जयंत चौधरी ने मान लिया कि किसानों का फायदा तो पूरा देश ले रहा है. अच्छा होता जयंत चौधरी लगे हाथ ये भी बता देते कि सिर्फ नेता ही क्यों फायदा तो खुद को किसान नेता दिखाने का भ्रम फैला चुके राकेश टिकैत और योगेन्द्र यादव सरीखे लोग भी उठा रहे हैं.
अब देखिए न 26 जनवरी से पहले लाठी गोदी, बकल उतारने, इलाज भरने और शांतिपूर्ण ट्रैक्टर रैली की गारंटी की जुबान बोल रहे राकेश टिकैत और योगेन्द्र यादव जैसे किसान नेताओं ने लाल किला कांड के जरिए हिन्दुस्तान की साख पर कैसे बट्टा लगाने की कोशिश की. जब सारी मिट्टी-पलीद करा ली और नामजद मुकदमा दर्ज हुआ तो इनके अश्क हैं जो थमने का नाम ही नहीं ले रहे.
कलाकार से कम नहीं नेता
जहीन और मझे हुए नेताओं की यही तो खासियत होती है.ये हरफनमौला होते हैं. हर फन के महारथी. कभी इलाज भरने का यलगार करते हैं तो कभी इतने अश्क आंखों से उतार देते हैं कि पोछने वाले का काम बढ़ जाता है. आम आदमी पार्टी के नेता भी इस मामले में कम कलाकार नहीं होते हैं.
राकेश टिकैत ने दिल्ली का पानी पीने से इंकार किया तो अरविंद केजरीवाल के मंत्री सतेन्द्र जैन पार्टी नेता राघव चड्ढा के साथ दिल्ली जल निगम का पूरा टैंकर लेकर पहुंच गए गाजीपुर. मानो टिकैत से ये कहना चाह रहे हो दिल्ली सरकार का पानी अपने घर का ही समझो.
बस विरोध का मौका चाहिए
मोदी सरकार के विरोध का मौका हो तो केजरीवाल एंड टीम की सक्रियता लाजवाब हो जाती है. डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के लिए तो ऐसे मौके विरोध पर न्योछावर हो जाने वाले होते हैं. सिसोदिया सियासत चमकाने का ऐसा मौका हाथ से जाने देते ये हो ही नहीं सकता. इसलिए वो भी टिकैत से मिलने गाजीपुर पहुंचे. जैन साहब तो पानी लेकर का टैंकर लेकर पहुंचे थे सिसोदिया तो शौचालय का अभयदान भी दे आए.
कांग्रेस खेल रही है ट्वीट-ट्वीट
किसान आंदोलन के झूले की पींग का लुत्फ उठाने में कोई पार्टी पीछे रह जाना नहीं चाहती. राहुल गांधी ने तो ट्विटर को ही मशीनगन बना लिया है. किसान नाम की मैगजीन भरकर सरकार पर तड़ातड़ फायर कर रहे हैं. ताजा ट्वीट कुछ इस तरह है. 'पीएम हमारे किसान-मजदूर पर वार करके भारत को कमजोर कर रहे हैं. फायदा सिर्फ देश विरोधी ताकतों का होगा'
भाई राहुल गांधी को सियासत के सही ठिकाने लगाने की जिद बहन प्रियंका ने भी ठान ली है. इसलिए भाई की हर मुहिम में बराबर की साझीदार हैं प्रियंका वाड्रा. प्रियंका वाड्रा ने भी ट्वीट दागा है. 'किसान का भरोसा देश की पूंजी है. इनके भरोसे को तोड़ना अपराध है. इनकी आवाज न सुनना पाप है. इनको डराना धमकाना महापाप है. किसान पर हमला, देश पर हमला है. प्रधानमंत्री जी, देश को कमजोर मत कीजिए'.
राहुल और प्रियंका ने किसानों के प्रति सहानुभूति की ऐसी गंगा बहाई कि कांग्रेस नेता गाजीपुर आंदोलन स्थल को तीर्थ मान बैठे. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू गाजीपुर तीर्थ में पहुंचकर डुबकी लगाने से बाज नहीं आए. बाकायदा आंदोलन स्थल पहुंचे और राकेश टिकैत को पूरा भरोसा दिया कि उनकी जनाधार विहीन कांग्रेस पार्टी पूरे दम खम से उनके साथ है.
अखिलेश ने भी चलाया ट्वीट से काम
कांग्रेस पार्टी और उसके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी तो शुरू से ही आंदोलनकारियों के साथ हैं. राहुल नए साल का जश्न मनाने इटली गए तो वहां भी किसानों को नहीं भूले. इटली से ही लगातार ट्वीट दाग रहे थे. उधर साल 2017 के विधानसभा में राहुल गांधी के साथ केमेस्ट्री सेट करने के चक्कर में अपनी समाजवादी पार्टी का सामाजिक बहिष्कार करा चुके अखिलेश यादव भी एक्टिव हैं.
राकेश टिकैत को भरोसा दिया है कि वो खुद गाजीपुर पहुंचकर उनका हौसला बढ़ाएंगे. फिलहाल टिकैत को ट्वीट से काम चलाने का आग्रह किया है. अखिलेश ने ट्वीट किया है कि
'अभी भाजपाई उत्पातियों ने सिंघु बार्डर पर किसानों के आंदोलन पर पथराव किया है. सारा देश देख रहा है कि भाजपा कुछ पूंजीपतियों के लिए कैसे देश के भोले किसानों पर अत्याचार कर रही है. भाजपा की साजिश और बच्चों, महिलाओं और बुजुर्ग किसानों पर की जाने वाली निर्दयता घोर निंदनीय है'.
नेताओं को चमकानी है नेतागिरी
कुल जमा मसला यही है कि चुनावी समर में जनता का भरोसा खो चुके नेताओं को किसान आंदोलन में उम्मीद की नई किरण दिखाई दे रही है. इसलिए मरते आंदोलन में प्राण फूंकने का पूरा बंदोबस्त कर रहे हैं. कोई इसपर बात करने को राजी नहीं है कि उस कानून के विरोध में ये क्यों बल्लियों उछल रहे हैं जिसके अमल पर देश की सर्वोच्च अदालत ने रोक लगा दी है.
बहरहाल तर्क और लॉजिक की यहां कोई गुंजाइश नहीं हैं. यहां तो हाईवोल्टेज ड्रामा है. भावना का दिखावा है. संवेदना का प्रदर्शन है. अब जनता इस आंदोलन का खामियाजा भुगत रही है तो उसकी बला से. नेताओं को तो नेतागिरी चमकानी है.
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