नई दिल्ली: शाहीन बाग की तर्ज पर ही कैसे किसान आंदोलन की साजिश को रचा और बुना गया. कैसे इस साजिश का मकसद भी देश में गृह-युद्ध कराना था. इसका सच अब सामने आ रहा है, ये बात केंद्र सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत में कही है. जिसे अबतक देश किसान आंदोलन समझ रहा था, वो दरअसल विदेशी फंडिंग के दम पर देश को अस्थिर करने की खतरनाक साजिश का हिस्सा है.
आंदोलन के पीछे खतरनाक मकसद
आंदोलन के नाम पर नासूर बन चुके मसले को सुलझाने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने कई बड़े फैसले सुनाए. चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया, तीनों कृषि कानूनों को फिलहाल होल्ड पर डाल दिया गया, आंदोलन में शामिल बच्चे-बुजुर्ग और महिलाओं की घर वापसी करने का आदेश दे दिया. किसान आंदोलन (Farmer Protest) से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जो सबसे विस्फोटक और खतरनाक मामला सामने आया उसे जानना और समझना 135 करोड़ हिन्दुस्तानियों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, क्योंकि किसान आंदोलन और इस तरह के दूसरे आंदोलनों के पीछे के असली और खतरनाक मकसद का सनसनीखेज खुलासा है.
क्या आंदोलन में किसान सिर्फ मुखड़ा हैं?
क्या किसान आंदोलन विदेशी फंडिंग के दम पर चल रहा है?
क्या आंदोलन की आड़ में गृह-युद्ध भड़काने की तैयारी है?
क्या गणतंत्र दिवस समारोह में खलल डालने की साजिश रची जा रही है?
ये सवाल बेहद संगीन हैं, लेकिन सवाल उठाने की वजह आपको समझाते हैं. दरअसल, किसान आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर देश की सर्वोच्च अदालत में बहस के दौरान वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे (Harish Salve) ने चीफ जस्टिस (CJI) की बेंच के सामने कहा कि प्रतिबंधित खतरनाक संगठन आंदोलन की फंडिंग कर रहे हैं. हरीश साल्वे की ये दलील होश उड़ाने वाली है, लिहाजा चीफ जस्टिस की बेंच ने देश के अटॉर्नी जनरल (AG) वेणुगोपाल से सीधा पूछ लिया कि क्या आप इसे कन्फर्म कर सकते हैं? इसपर वेणुगोपाल ने कहा कि हां हम पुष्टि कर सकते हैं हमें एक दिन का वक्त दे दीजिए.
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देश के अटॉर्नी जनरल सर्वोच्च अदालत के सामने अगर प्रतिबंधित और खतरनाक संगठनों की ओर से फंडिंग की पुष्टि अगर कर रहे हैं तो इतना समझा जा सकता है कि बात हवा-हवाई नहीं है. केंद्र सरकार के पास खुफिया सूत्रों के हवाले से इसके पुख्ता सबूत मौजूद हैं. दिक्कत ये है कि हमारे भोले-भाले किसान नेता विदेशी धरती पर देश के खिलाफ रचे जा रहे षड्यंत्र की नामुराद तासीर से नावाकिफ हैं और कानून पर फौरी रोक के बाद भी आंदोलन जारी रखने पर अड़े हुए हैं.
किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद ये कहा कि जबतक कानून की वापसी नहीं होगी, तबतक किसानों की घर वापसी नहीं होगी. ट्रिपल कैप पर बंदूक का पहरा है. हमारा यही है कि कानून रद्द किया जाए.
विदेशी फंडिंग का शक और गहराया
सुप्रीम कोर्ट ने मामले का सर्वमान्य हल निकाल दिया है. कानून को फिलहाल होल्ड पर डाल दिया गया है, चार सदस्यों वाली कमेटी खुद सुप्रीम कोर्ट ने बना दी है. ये कमेटी ओपन टू ऑल है. किसान संगठन भी इसमें अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं. कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को ही सौंपेगी. यानी सरकार की मनमानी नहीं चलेगी, लेकिन उसके बाद भी अगर आंदोलनकारी किसान अड़े हुए हैं तो विदेशी फंडिंग का शक और गहरा जाता है. ऐसे में विदेशी धरती से रची जा रही साजिश के सिसलिसे को समझना बेहद जरूरी है.
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गणतंत्र दिवस (Republic Day) नजदीक है. आतंकवादी इसमें खलल डालने की फिराक में हैं. किसानों के जरिए सुरक्षा में सेंध लगाई जा सकती है, लेकिन अफसोस ये है कि सीधे-सादे निश्छल किसान इसकी गंभीरता को महसूस नहीं कर रहे. किसान नेता राकेश टिकैत ने तो ये तक कह दिया कि 'तो हम चर्चा करेंगे सब लोग चर्चा करके बयान जारी करेंगे. हम 26 जनवरी में तो चलेंगे ही सब लोग..'
कहां से जुड़े हैं विदेशी फंडिंग के तार?
किसानों को ये समझना होगा कि हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले कुछ वर्षों में आतंक के आकाओं की नकेल ऐसे टाइट कर दी है कि वे हिन्दुस्तान की सरजमीं में अपने नापाक कदम रखने के नाम पर थर-थर कांप रहे हैं. ऐसे में वो विदेश की नापाक सरजमीं से फंडिंग के जरिए दहशतगर्दी का कायराना खेल खेलने के ख्वाब पाल रहे हैं. अब फंडिंग चाहे पाकिस्तान (Pakistan) से हो रही हो, चीन (China) से हो रही हो या कनाडा (Canada) से.. इसकी नामुराद नेटवर्किंग एक ही है.
बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा ने भी इस आंदोलन पर ये कहा कि 'किसान आंदोलन की फंडिंग कनाडा से हो रही है. इतना ही उन्होंने किसान आंदोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ बता दिया. उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को अपराधियों को समर्थन मिल रहा है. उन्होंने कहा कि आंदोलन का हर एक प्रारूप खालिस्तानी जैसा दिखाई देता है.'
विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल भी कई तरीके से होता है. आंदोलन के लिए माहौल खड़ा किया जाता है. भोले-भाले हिन्दुस्तानियों को भड़काया जाता है, उनका ब्रेन वॉश किया जाता है और फिर उसमें जहर का खतरनाक डोज भर दिया जाता है.
साजिश के शिकार हो जाते हैं बुद्धिजीवी
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि विदेशी फंडिंग के जरिए ही विदेशी फंडिंग की साजिश को बेबुनियाद साबित करने की कोशिश भी होती है. इसका मतलब ये है कि कुछ पैसा इसके लिए भी खर्च होता है कि ये साबित किया जाए कि विदेशी फंडिंग के नाम पर इस या उस आंदोलन को बदनाम किया जा रहा है और लोग खासतौर से बुद्धिजीवी आसानी से इस साजिश के शिकार हो जाते हैं.
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ज़ी हिन्दुस्तान जो खुलासा लगातार कर रहा था, वही बातें अब देश की सर्वोच्च अदालत के सामने भी खुल गई है. देश के अटॉर्नी जनरल ने माननीय न्यायालय से एक दिन का वक्त मांगा है. आप बस इंतजार कीजिए, सच्चाई का विस्फोट होगा और कई चेहरे बेनकाब होंगे.
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