नई दिल्ली: आने वाले समय में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था व सबसे बड़े लोकतंत्र वाला देश भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरने जा रहा है. यूरेशिया समूह ने एक रिपोर्ट में यह दावा किया है. निक्केई एशिया के एडिटर-इन-चीफ शिगेसाबुरो ओकुमुरा ने हाल के एक लेख में लिखा, मेरे विचार से, 2023 को भारत के दुनिया के तीसरे ध्रुव के रूप में उभरने के लिए याद किया जाएगा.
आबादी बनेगी ताकत
ओकुमारा ने कहा है कि इस साल को संभवत: दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में भारत को उभरने के लिए याद किया जाएगा.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पिछले साल चीन की आबादी 1.426 अरब थी जबकि भारत की आबादी 1.417 अरब थी. जुलाई में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया था कि 2023 में चीन की आबादी गिर जाएगी, जबकि भारत की आबादी इससे आगे निकल जाएगी.
संयुक्त राष्ट्र को उम्मीद है कि 2050 तक भारत में 1.6 बिलियन और चीन में 1.3 बिलियन निवासी होंगे.
कामकाजी उम्र की आबादी
ओकुमारा ने कहा कि बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, इसलिए भारत का उदय इसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई शक्ति देगा.
इसके अलावा अमेरिका और चीन के बीच अलगाव और चीन को बाहर करने के लिए प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्निर्माण से भारत को लाभ होगा. एप्पल भारत में आईफोन 14एस बना रहा है.टाटा संस के अध्यक्ष नटराजन चंद्रशेखरन ने उपमहाद्वीप में अर्धचालक बनाने की योजना के बारे में बात की है.
आम चुनाव से पहले नेतृत्व दिखाने की कोशिश
मार्च में भारत पहली बार त्रिपक्षीय आयोग के पूर्ण सत्र की मेजबानी करेगा. इस वर्ष यह जी20 के समूह की अध्यक्षता भी कर रहा है. ओकुमारा ने लिखा, मोदी सरकार 2024 में भारत में आम चुनाव से पहले नेतृत्व दिखाने के लिए उत्सुक होगी.ओकुमारा ने निष्कर्ष निकाला, नया साल इस प्रकार एक त्रिध्रुवीय दुनिया की शुरुआत को चिह्नित कर सकता है. इसमें अमेरिका, चीन और भारत शामिल हैं. नई दिल्ली निर्विवाद रूप से आगे बढ़ रहा है.
पर क्या है चुनौती
हालाँकि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं, क्योंकि जीडीपी का अनुमान आधी सदी के निचले स्तर पर है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज ने एक नोट में अनुमान लगाया है कि लगातार दो वर्षों तक मजबूती से बढ़ने के बाद वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि घटकर 5.2 प्रतिशत हो जाएगी. धीमी वैश्विक अर्थव्यवस्था, कम होती मांग और आधार प्रभावों को सामान्य करने जैसे कारकों का एक संयोजन वास्तविक विकास को धीमा करने में योगदान देगा.
क्या अब सब बदलने वाला है
रिपोर्ट के मुताबिक कुल मिलाकर हम मानते हैं कि पिछले 12-15 महीनों के विपरीत वित्त वर्ष 24 में कथा उलट जाएगी. मुद्रास्फीति की चिंता पीछे हट जाएगी और विकास की चिंताएं फिर से उभरेंगी. यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी सच हो सकता है. साथ ही प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीति वित्तीय बाजारों को बढ़ावा देने में विफल होगी.
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