हरिशंकर तिवारी: अपराध-राजनीति के गठजोड़ के प्रतीक 'बाहुबली', शुरुआत कांग्रेस की फिर हर पार्टी ने दरवाजे खोले

रेलवे, कोयला सप्लाई और खनन से लेकर शराब तक के ठेकों पर उनका ही राज चला करता था. गोरखपुर के जटाशंकर मोहल्ले में उनका एक किलानुमा घर है. पूर्वांचल में कभी इसी 'हाता; में दरबार लगा करता था. ऐसा कहा जाता था कि जिस पार्टी का नाम हरिशंकर तिवारी से जुड़ेगा उसकी किस्मत पूर्वांचल में बदल जाएगी.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 18, 2023, 10:59 AM IST
  • हरिशंकर तिवारी ने कई बार विधायक का चुनाव जीता.
  • यूपी के बाहबलियों में वो सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे थे.
हरिशंकर तिवारी: अपराध-राजनीति के गठजोड़ के प्रतीक 'बाहुबली', शुरुआत कांग्रेस की फिर हर पार्टी ने दरवाजे खोले

नई दिल्ली. हरिशंकर तिवारी पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक ऐसा नाम जिसके लिए हर राजनीतिक दल ने अपने दरवाजे खोले. माना जाता था कि जिस दल के साथ तिवारी जुड़ेंगे उसकी किस्मत पूर्वांचल में बदल जाएगी. राजनीति में आने से पहले हरिशंकर तिवारी पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे खतरनाक गैंग लॉर्ड या बाहुबली थे. बाहुबली तो वह बाद में भी रहे लेकिन साथ में नेता भी बन गए. उत्तर भारत की राजनीति के वह पहले नेता थे जिन्होंने जेल के सलाखों के पीछे से चुनाव जीता. उनके बाद तो इस ट्रेंड को कई और बाहुबलियों ने फॉलो किया. 

जेल से चुनाव जीतने वाला पहला गैंगस्टर 
हरिशंकर तिवारी बाहुबली से राजनेता बनने वाले पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने जेल से चुनाव लड़ा और जीता भी. गोरखपुर की चिल्लुपार सीट से उन्होंने 1985 में चुनाव जीता. हरिशंकर तिवारी इस चुनाव को जीतने के बाद बाहुबली से राजनेता बन गए. इसके साथ ही सियासत में बाहुबलियों के लिए दरवाजे खोल दिए गए. जब वे चुनाव जीते तब उनके ऊपर 30 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे. पांचवी बार वो 'ऑल इंडिया इंदिरा कॉन्ग्रेस (तिवारी)' के टिकट पर जीते. 2002 में उन्होंने इसी क्षेत्र से 'अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कॉन्ग्रेस' के टिकट पर लगातार छठी बार जीते. 

हर दल ने उनका स्वागत किया
हरिशंकर तिवारी यहीं नहीं रुके. उन्होंने 5 और चुनाव भी जीते. यानी 20 साल तक वे लगातार गोरखपुर की चिल्लुपार सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे. खास बात यह है कि उन्हें हर पार्टी में जगह मिली. हालांकि उन्होंने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी लेकिन मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी, दोनों में उन्हें मंत्रालय दिया गया. मायावती की बहुजन समाज पार्टी का भी वह हिस्सा रहे. उन्होंने 1989, 91 और 93 में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की.

परिवार के अन्य लोग भी बड़े-बड़े पदों पर
2017 में उन्होंने बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा का टिकट दिला कर इस सीट से जितवाया. उनके एक दूसरे बेटे भीष्म शंकर तिवारी संत कबीर नगर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए थे. 2009-14 लोकसभा के काल में वो सांसद रहे थे. उन्हें उत्तर प्रदेश का सबसे प्रभावशाली ब्राह्मण चेहरा माना जाता रहा. भतीजे गणेश शंकर पांडेय उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति के पद तक पहुंचे. हालांकि  2007 और 2012 के चुनावों में उन्हें अपने गढ़ में ही हार झेलनी पड़ी थी.

पूर्वांचल में अपराध की शुरुआत और माफियाओं में गैंगवॉर
पूर्वांचल एक दौर शुरू हुआ था जब छात्रों को अपराध से जोड़ने का काम शुरू हुआ. तेज-तर्रार छात्रों को माफिया गिरोह में लाने का दौर चला. हरिशंकर तिवारी ने कई बार कहा कि उन्हें राजनीति में इसीलिए आना पड़ा, क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने उस पर झूठे केस चला कर उन्हें जेल भिजवा दिया था. 

80 के दशक में उनके ऊपर 30 से ज्यादा मामले दर्ज थे. इसमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, छिनौती, रंगदारी, वसूली और सरकारी कार्य में बाधा डालने सहित कई मामले शामिल थे. लेकिन, आज तक किसी भी मामले में उन्हें न्यायालय ने दोषी नहीं ठहराया. यह वह दौर था जब पूर्वांचल में विकास के नाम पर कई योजनाओं के टेंडर जारी हुए और उनके लिए अपराधियों में भिड़ंत हुई. हरिशंकर तिवारी धीरे-धीरे पूरे पूर्वांचल के ठेके अपने पास लेने लगे.

रेलवे, कोयला सप्लाई और खनन से लेकर शराब तक के ठेकों पर उनका ही राज चला करता था. गोरखपुर के जटाशंकर मोहल्ले में उनका एक किलानुमा घर है. पूर्वांचल में कभी इसी 'हाता; में दरबार लगा करता था. ऐसा कहा जाता था कि जिस पार्टी का नाम हरिशंकर तिवारी से जुड़ेगा उसकी किस्मत पूर्वांचल में बदल जाएगी.

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