बिहार में नीतीश की सर्वे रिपोर्ट से जातियों के आंकड़े बाहर आए, लेकिन उनके असल मुद्दे नहीं

बिहार सरकार ने दो अक्टूबर को जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट पेश की तो फिर से 1990 में पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंडल आयोग की रिपोर्ट की याद ताजा हो गई है. इस रिपोर्ट को लेकर एक ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक एक बात सामने आई की एक्सट्रीमली बैकवर्ड कम्यूनिटी यानी ईबीसी का वोट किसी खास पार्टी के साथ बंधा नहीं है.मुद्दे तय करेंगे कि इनका वोट किसको मिलेगा. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 8, 2023, 11:06 PM IST
  • क्या हैं बिहार के असल मुद्दे.
  • क्या जातीय सर्वे के हर कास्ट खुश?
बिहार में नीतीश की सर्वे रिपोर्ट से जातियों के आंकड़े बाहर आए, लेकिन उनके असल मुद्दे नहीं

नई दिल्ली. मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद ओबीसी के लिए तय हुए 27 फीसदी आरक्षण ने उत्तर भारत की राजनीति को बदल दिया. कई ओबीसी नेता उभरकर आए. अब तक ये लोग राजनीति में पैर जमाए हैं. बिहार के नीतीश कुमार हों या फिर लालू यादव, उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव हों या फिर कल्याण सिंह. यूपी के दोनों नेता अब नहीं हैं लेकिन मुलायम के उत्तराधिकारी अखिलेश यादव को विरासत में जो राजनीति मिली वे आज भी उसी रास्ते में चल रहे हैं. मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान के अशोक गहलोत. ये सभी नेता मंडल आयोग की रिपोर्ट की पैदावार हैं. 

एक बार फिर बिहार सरकार ने दो अक्टूबर को जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट पेश की तो फिर से 1990 में पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंडल आयोग की रिपोर्ट की याद ताजा हो गई है. इस रिपोर्ट को लेकर एक ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक एक बात सामने आई की एक्सट्रीमली बैकवर्ड कम्यूनिटी यानी ईबीसी का वोट किसी खास पार्टी के साथ बंधा नहीं है.मुद्दे तय करेंगे कि इनका वोट किसको मिलेगा. 

सर्वे में फिर ओबीसी का जनाधार आगे 
बिहार की 13,07,25,310  जनसंख्या में 63 फीसदी ओबीसी (OBC)और एक्सट्रीमली बैकवर्ड क्लास (EBC)हैं. 
अनुसूचित जनजाति 19 फीसदी हैं तो एक फीसदी आदिवासी हैं. 

बिहार में आज भी जातिगत व्यवस्था गहरी और मतदान का आधार हैं. एक न्यूज चैनल ने बिहार के एक जिले वैशाली में इस ताजा रिपोर्ट के आंकड़ों पर राय जानने के लिए एक ग्राउंड सर्वे किया.

एक्सट्रीमली बैकवर्ड क्लास-किसी खास पार्टी से नहीं कमिटमेंट  
बिहार में मौजूद 215 जातियों में एक्सट्रीमली बैकवर्ड क्लास यानी ईबीसी क्लास सर्वे में 36 फीसदी थी. अब यह वोट बैंक सभी पार्टियों के लिए बेहद जरूरी है. इसलिए सारे राजनीतिक दल इसे अपनी तरफ करना चाहेंगे, लेकिन पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो यह वोट बैंक बिल्कुल भी किसी एक पार्टी के लिए लॉयल नहीं है. 

अगर बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स को देखें तो जनता दल की ओबीसी पर मजबूत पकड़ है. लेकिन वहीं राष्ट्रीय जनता दल के पास 14 फीसदी यादव और 17 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक है. जनरल कैटेगिरी ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार 10 फीसदी हैं. ओबीसी और ईबीसी की कुछ आबादी बीजेपी को पसंद करती है. यही नहीं लोगों ने जाति आधारित सर्वे की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए. ईबीसी से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, ' सर्वे में कुछ कमियां हैं. यह एक तरह से जातियों को विभाजित करने की कोशिश है. नीतीश कुमार ने काफी अच्छा काम किया पहले लेकिन अब उनकी राजनीति बदल गई है. इस बार हम नीतिश कुमार विरोध करेंगे.'

ओबीसी-नीतीश और लालू आज भी नेता
राज्य में ओबीसी 27 फीसदी हैं. इसमें मुख्य तौर पर कुर्मी, कुशवाहा और धानुक हैं. उनका मानना है कि नीतीश ने उनके लिए बहुत कुछ किया है. वैशाल में रहने वाले एक व्यक्ति कहते हैं, 'मैं सीएम की जाति से आता हूं. उन्होने हमारे लिए कई काम किए. हालांकि कुछ काम होने बाकी हैं. उम्मीद है कि हमारा नेता उसे भी करेगा.'

लालू प्रसाद यादव बिहार में ओबीसी के मसीहा हैं. बावजूद इसके कि उनका नाम चारा घोटाले में हैं और उनके वक्त को लोग जंगल राज के रूप में  भी याद करते हैं. यादवों की आबादी 14 फीसदी है. बिहार में ओबीसी खासतौर पर यादवों में बीच लालू और उनके दोनों बेटे बेहद पसंद किए जाते हैं.

भाजपा लगा रही जोर
राज्य में बीजेपी के ओबीसी प्रेसिडेंट सम्राट चौधरी पसमांदा मुस्लिमों समेत ओबीसी और ईबीसी के बीच बीजेपी की पकड़ बनाने के लिए जोर लगा रहे हैं. अब तक कई प्रोग्राम भी किए जा चुके हैं. 

जनरल कैटेगिरी-आर्थिक आधार पर भी हो सर्वे, आरक्षण गरीबों को मिले
जनरल कैटेगिरी के लोग सर्वे की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. उनके मुताबिक सर्वे में जो आंकड़े सवर्णों के आए हैं वह असल आंकड़ों से बहुत कम हैं. 

दलित-महादलित में गुस्सा 
दलित और महादलित 21 फीसदी हैं. लेकिन इनकी स्थिति जस की तस है. महादलितों का एक ग्रुप कहता है, 'हमारे लिए कुछ भी नहीं किया गया. दशकों से हम पुल के नीचे रह रहे हैं. लेकिन हमें कोई सेल्टर नहीं दिया गया. मेले के वक्त हमारे घर तोड़ दिए जाते हैं और हम बिना घर के हो जाते हैं. इस सरकार ने हमें धोखा दिया है.' मोचियों के एक ग्रुप ने भी कुछ ऐसा ही कहा.

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