जब एक मुफ्ती के कहने पर रफी साहब ने गाना कर दिया था बंद, जानिए पूरा किस्सा

मोहम्मद रफी इस्लाम में बहुत मानते थे. अपने मजहब के प्रति उनका प्यार इसी से देखा जा सकता है कि एक बार सऊदी अरब गए. हज के सफर के दौरान एक मुफ्ती से बातचीत हुई. इस बातचीत ने उनके मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 31, 2022, 12:12 PM IST
  • फिल्मों में किशोर कुमार की आवाज बने मोहम्मद रफी
  • रफी साहब ने उनके लिए तकरीबन 11 गाने गाए
जब एक मुफ्ती के कहने पर रफी साहब ने गाना कर दिया था बंद, जानिए पूरा किस्सा

नई दिल्ली: गानों से सबकी आंखें नम करने वाले शहंशाह-ए-तरन्नुम जब हमेशा के लिए फैंस को रोता हुआ छोड़ गए. रफी साहब (Mohammad Rafi) के गाने आज भी दिल के उतने ही करीब हैं. वो दर्द, वो प्यार जो उनकी आवाज ने दिया, उसकी कमी को आज भी कोई पूरी नहीं कर पाया है. हिंदी के अलावा, उड़िया भोजपुरी, गुजराती, बंगाली, सिंधी, पंजाबी, कोंकणी, मगही जैसी भाषाओं को इन्होंने अपनी आवाज में बेहतरीन तराने दिए.

सदाबहार गायकी का सफर

13 साल की उम्र में एक लड़के की किस्मत तब बदली, जब उसे लाहौर में उसने पहली बार के एल सहगल के सामने गाया. 1948 में उनकी आवाज 'सुनो-सुनो दुनिया वालों बापूजी की अमर कहानी' इतना पसंद किया गया कि चाचा नेहरू ने उन्हें घर पर ही बुला लिया. सामने बिठाकर उनसे वही गाना सुना गया.

विदाई का वो कालजयी गाना

आज भी जब कोई लड़की शादी से अपनी जिंदगी का नया सफर शुरू करने जाती है तो उसके जीवन पर सबसे ज्यादा दुआएं उसके पिता की आखों से बरसती हैं. गाना आता है बाबुल की दुआएं लेती जा. ये गाना ऐसे ही इतना भावुक नहीं करता है. इस गाने को तो गाते समय खुद रफी साहब रो पड़े थे. इस गाने ने उन्हें नेशनल अवॉर्ड दिलाया.

किशोर कुमार को दी अपनी आवाज

वैसे किशोर दा की आवाज का चुलबुला पन किसी से छिपा नहीं है लेकिन ये बात है उस दौर की जब हर कलाकार की अपनी एक आवाज होती थी. जैसे पर्दे पर दिखने वाले किशोर कुमार की आवाज बने मोहम्मद रफी. रफी साहब ने उनके लिए तकरीबन 11 गाने गाए.

एक मुफ्ती के लिए छोड़ा गाना गाना

मोहम्मद रफी इस्लाम में बहुत मानते थे. अपने मजहब के प्रति उनका प्यार इसी से देखा जा सकता है कि एक बार सऊदी अरब गए. हज के सफर के दौरान एक मुफ्ती से बातचीत हुई. बातचीत का असर यूं हुआ कि रफी साहब की आवाज 19-20 महीनों तक लोगों के बीच नहीं पहुंची. इस्लाम में गाना हराम है इसलिए उन्होंने गानों से ब्रेक ले लिया था.

गानों के शहंशाह

रफी साहब साल 1980 को हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी आवाज में गाए तकरीबन 26000 गाने आज भी हमारे बीच हैं. 'क्या हुआ तेरा वादा', 'ये दुनिया ये महफिल', 'तेरी बिंदिया रे', 'गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं' और 'चांद सा रोशन चेहरा' आज भी गुनगुनाया जाता है.

मोहम्मद रफी आज भी किसी के घर पर कभी शाम, कभी तन्हाई कभी गर्मी की भरी दुपहरी में रेडियो या टीवी पर गुनगुनाते सुनाई दे ही जाते हैं.

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